चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Friday, March 1, 2013

उसने कहा तो लिख डाला...

कहोगे कि कोई नया संग्रह बन रहा है या कोई बात है? किसी से प्यार का चक्कर तो नही। अब बताओ  ये तमाम बातें होंगी क्या तभी कविता बनेगी। ये फ़ेसबुक भी बड़ी अज़ीब जगह है दोस्तों... न लिखने दे न पढ़े आखिर कोई करे तो क्या करे :(

दो चार ठौ कविता बन पड़ी सो है सो यहीं पर ठेले जा रहे हैं... :)



उसने कहा तुम्हारी हँसी में 
मुझे दर्द सा क्यों लगता है?
क्या बेवजह कोई 
इतना हँसता है?
मुझे भी लगा किस बात पर 
हँस रही हूँ मैं!
कि राज़ दिल के सबको
कह रही हूँ मै--
किसी की याद हद से ज्यादा आने लगे
कोई अंदर से गहरा सताने लगे
तो ऎ दिल
कोशिश कर
खुद को समझाने की
कोशिश कर
खुद को हँसाने की...
शानू( बस यूँही) एक उदास शाम... मै... और..मेरी चाय :)





(२)


बस यही परिणति है 

किसी के मासूम एहसासों की
कि सिसकी बन के 
शीशे सी पिघलती रही याद सीनें में
और कहीं दूर उसे
खबर तक न हो पाई...

(३)


जमीं पर ही चलते देखा है अभी तक
मेरे पैरो के पँखों को तुमने देखा नही है
ऎ आसमाँ इतना गुरुर भी अच्छा नही
मेरे हौसलों की उड़ान अभी बाकी है...


शानू

6 comments:

  1. अच्छा लिखा है आपने शुभकामनायें ...कभी समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  2. हंसी में दर्द सा क्यों है ...
    शुभकामनायें आपको !

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  3. बहुत सुंदर सुनीता जी .. बधाई लीजिये...

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (2-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  5. सुनीता जी ...मन पखेरू उड़ चला फिर की प्रति मेरे एक मित्र ने दी...आपकी कवितायेँ अच्छी लगीं. आपकी सफलता की कामना करता हूँ...

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य