चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Friday, August 6, 2010

मै मायके चली जाऊँगी

बहुत दिनो से ब्लॉग हमारा सूना-सूना पड़ा है। समझ नही पाये क्या लिखें। क्यों न कुछ हास्य ही हो जाये...आज जनमदिन है हमारा भई....जिसे केक खाना है उसे कविता भी सुननी ही पड़ेगी भैया... :)


गुगल से साभार स्पेशल केक मँगाया है आपके लिये बस खाते जाईये....


पत्नी बोली पतिदेव जी तुम पर भारी पड़ जाँऊगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मायके चली जाऊँगी।




दफ़्तर की खींचा तानी से जब थककर घर को आओगे,
एक चाय की प्याली भी तुम अपने हाथ बनाओगे।
कौन पिलायेगा फ़िर तुमको चाय वो अदरक वाली,
एक हाथ से प्यारे मोहन नही बजती है ताली।
चुन्नू,मुन्नू बंटी को भी सौप तुम्हे ही जाँऊगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मायके चली जाँऊगी।




टूटे पड़े बटन शर्ट के ये पतलून भी फ़टी हुई,
कौन धोयेगा गंदे कपड़े धोबन भी छुट्टी गई,
ढूँढ न पाओगे रखा कहाँ है कुर्ता और पाजामा,
आज पड़ेगा प्यारे तुमको ऎसे ही दफ़्तर जाना,
कपड़ो की अलमारी पर भी मै ताला कर जाऊँगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मायके चली जाऊंगी।




आलू गोभी,लौकी,बैंगन सब तुमको नाक चिड़ायेंगे,
बिना पकाये ये सारे तो ऎसे ही सड़ जायेंगे,
नही पकेगी दाल मूँग की कड़वा करेला खाओगे,
बच्चों के संग होटल जा अपनी जान बचाओगे,
बचे हुए जो घी के लड्डू वो भी साथ ले जाऊँगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मायके चली जाँऊगी।




टेबल पर बरतन पड़े हैं रखा है झूठा अचार,
लीची लुड़की फ़र्श पर और सोफ़े पर अखबार,
मित्रों को बुलाकर जो घर में दंगल मचाओगे,
बर्तन भी खुद रगड़ोगे चोट दिल पर खाओगे,
सच कहती हूँ अबके गई तो नानी याद दिलाऊँगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मै मायके चली जाऊँगी।




सुनीता शानू

अंतिम सत्य