चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Wednesday, October 27, 2010

दर्द का दवा हो जाना




उसने कहा दर्द बहुत है
जाने क्यों मै भी कराहती रही
न सोई न जागी
रात भर दर्द को पुकारती रही
उसने कहा ये दर्द
उसका अपना हो गया है
उसके साथ सोता है
जागता है रात भर
मुझसे अधिक वही तो
रहता है उसके खयालों मे
बस यही बात
मेरे मन को सालती रही
ये दर्द लगता है
अपनी हद पार कर गया
झलकता था जो आँखों से उसकी
आज सीने में उतर गया
मेरी तमाम कोशिशे
मुझे मुह चिढाती रही
बेदर्द तो है दर्द
बेवफ़ा भी हो जाता काश
छटपटाता,करवट बदलता
जाने कैसे-कैसे
मन को मै मनाती रही
किन्तु
बहुत मुश्किल है दर्द का
बेवफ़ा हो जाना
हद से गुजरना दवा हो जाना।

सुनीता शानू

Thursday, September 30, 2010

अब कैसा फ़ैसला

सोचती हूँ

फ़ैसला हो जाये अब तो
कैसा फ़ैसला?
जो सबका रखवाला है

नही करेगा अपनी रखवाली
सौप देगा कैसे
जन्मभूमि अपनी
रक्षक तो वही एक है
तो वही करेगा
वही करेगा
फ़िर भी आने दो फ़ैसला
कैसा फ़ैसला?


साच को आँच कैसी
हर घड़ी अग्नि-परीक्षा कैसी
टूटेगा कब तक
विश्वास राम का
लेने दो फ़िर भी
जिसके हक में हो  फ़ैसला
फ़िर वही... फ़ैसला!
कैसा फ़ैसला?


तुमसे नही माँगा जब कुछ
मेरा मुझे सौंपने में
अब विलम्ब क्यूं
राम जाने
रामदीन का
कब होगा निपटारा
अलादीन से
दोनो बंदे
एक दीन के
फ़िर जाने अब
क्या होगा फ़ैसला
फ़िर वही रट
बचकानी बात

कैसा फ़ैसला???

Thursday, September 23, 2010

एक हास्य-व्यंग्य कविता

गूगल से साभार



कौन घड़ी में भैया हम घर में टीवी लाये,
केबल वाले ने भी आकर झटपट तार लगाये,
झटपट तार लगाये , टी वी हो गया चालू,
दोसो रुपये में बिकने लगा दस रूपये का आलू,
दोसौ रूपये का आलू! हमने कान लगाये,
अंकल चिप्स दो लाकर बच्चे चिल्लाये,
कौन घड़ी में भैया हम घर में टी वी लाये।




देखते ही देखते सज गई सितारों की दूकान,
तेल बेचे बिग बी गंजे हुए किंग खान,
गंजे हुए किंग खान बोले डिश टी वी लगवायें,
टा-टा स्काई को अच्छा आमिर बतलायें,
ऎसा हुआ धमाल कि हमको चक्कर आये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।






बीवी बोली आज हमे नवरतन तेल लगाना है,
बिग बी जैसे ठंडा-ठंडा कूल-कूल हो जाना है,
ठंडा-ठंडा कूल कूल जो सर्दी का अहसास कराये,
दफ़्तर से श्रीमान जी आप तेल बिना न आयें,
तेल बिना क्या पूछ हमारी कोई हमको बतलाये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।






तेल लगा बालो में जब श्रीमती मुस्कुराई,
ऎश्वर्या ने कोका कोला की सी सीटी बजाई,
हम दौड़े घर के भीतर न हो जाये कोई फ़रमाइश,
बेटा बोला कोला रहने दो पापा लादो स्लाइस,
मां ने भी चाहा की बालो पर हेयर डाई लगवाये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।






चुन्नू बोला डेरी मिल्क हमको लगती प्यारी,
सनफ़िस्ट की रट लगाने लगी दुलारी,
टॉमी को भी अब हम पेडीग्री खिलायेंगे
वरना देखो प्यारे पापा हम भूखे ही सो जायेंगे,
बाल हठ के आगे हमको चक्कर आये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।






घर हमारा बन गया फ़रमाइशी दुकान,
विज्ञापनों की दौड़ में ऎसा हुआ नुकसान,
ऎसा हुआ नुकसान प्याज कटे बिन आँसू आये,
बदल दे घर का नक्शा  आप एल सी डी लगवाये,
सुनकर ये फ़रमान हम न रोये न हँस पाये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।






सुनीता शानू

Saturday, September 11, 2010

एक विचार (कविता)





कभी-कभी आत्मा के गर्भ में,
रह जाते हैं कुछ अंश-
दुखदायी अतीत के,
जो उम्र के साथ-साथ,
फलते-फूलते-
लिपटे रहते हैं-
अमर बेल की मानिंद...


अमर बेल-
जो 
पीडित आत्मा को सूखा कर-
बनादेती है ठूँठ
ठूँठ 
जिसपर-
नही होता असर-
खुशियों की बरसात का
जिस पर नही पनपती
उम्मीद कोई...


ये दुखदायी अतीत के अंश
होते है जंमांध 
और कुँठित मन
सुन नही पाता
बदलते वक्त की आहट
कह भी नही पाता
मन की कड़वाहट


क्योंकि
इनकी काली परछाई
नही छोड़ती कभी
आत्मा को अकेले
सालती रहती हैं-
टीस बन कर
उम्र भर--


सुनीता शानू





Sunday, September 5, 2010

एक व्यंग्य कविता

गूगल से साभार




करामाती इंजेक्शन


होटल के एक कमरे में प्यारे लाल ठहरे
अभी आये भी नही थे उन्हे
खर्राटे गहरे
कि इतने में आवाज सुनी

किसी के रोने की
किसी के सिससने की
किसी के दर्द से कलपने की
साँप के फ़ुफ़कारने की  फ़िर-
हल्की सी घुटी-घुटी एक चीख आई
डर के प्यारे लाल ने बत्ती जलाई
और जोर से चिल्लाये
कौन है भाई?

ये होटल है या भूत प्रेत का  डेरा
आवाज सुन कर दौड़ता आया बेयरा
साहब क्या लाऊँ फ़रमाया
इतनी रात क्यों हमे जगाया

गुस्से में प्यारे लाल लाल हुए
बोले-
कैसा ये होटल है बतलाओ
क्या हो रहा इतनी रात समझाओ
वरना मै अभी पुलिस बुलाऊँगा
तुम सबको हवा जेल की खिलवाऊँगा

वेटर जो चुप खड़ा था
जोर से हँस दिया
प्यारे लाल ने गुस्से मे आ झापड़ जड़ दिया
कमबखत हमारा मजाक उड़ाता है
देर रात मुसाफ़िरों को डराता है

वेटर बोला लगता है आप
नही जानते कुछ माई बाप
नही यहाँ होता है कोई पाप
नही बगिया में है कोई साँप
ये तो इंजेक्शन का कमाल है
तभी तो कच्चा टमाटर भी हो जाता लाल है
सेब आम पपीते लौकी तुरई खीरे
जो खायेंगे आप सवेरे

ये करामाती इंजेक्शन
एक रात में करामात दिखलाता है
नवजात शिशु को ताकतवर बनाता है
प्यारे लाल झल्लाये
दिल किया एक इंजेक्शन इसे भी लागायें

फ़ल सब्जियां क्या इसान भी अब कृत्रिम हो गया है
दवाओ से फ़लता-फ़ूलता है दवाएं ही खाता है
विज्ञान का चमत्कार
परखनली का इंसान
भगवान की बनाई सृष्टि का
बन बैठा भगवान।

सुनीता शानू

Friday, August 6, 2010

मै मायके चली जाऊँगी

बहुत दिनो से ब्लॉग हमारा सूना-सूना पड़ा है। समझ नही पाये क्या लिखें। क्यों न कुछ हास्य ही हो जाये...आज जनमदिन है हमारा भई....जिसे केक खाना है उसे कविता भी सुननी ही पड़ेगी भैया... :)


गुगल से साभार स्पेशल केक मँगाया है आपके लिये बस खाते जाईये....


पत्नी बोली पतिदेव जी तुम पर भारी पड़ जाँऊगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मायके चली जाऊँगी।




दफ़्तर की खींचा तानी से जब थककर घर को आओगे,
एक चाय की प्याली भी तुम अपने हाथ बनाओगे।
कौन पिलायेगा फ़िर तुमको चाय वो अदरक वाली,
एक हाथ से प्यारे मोहन नही बजती है ताली।
चुन्नू,मुन्नू बंटी को भी सौप तुम्हे ही जाँऊगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मायके चली जाँऊगी।




टूटे पड़े बटन शर्ट के ये पतलून भी फ़टी हुई,
कौन धोयेगा गंदे कपड़े धोबन भी छुट्टी गई,
ढूँढ न पाओगे रखा कहाँ है कुर्ता और पाजामा,
आज पड़ेगा प्यारे तुमको ऎसे ही दफ़्तर जाना,
कपड़ो की अलमारी पर भी मै ताला कर जाऊँगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मायके चली जाऊंगी।




आलू गोभी,लौकी,बैंगन सब तुमको नाक चिड़ायेंगे,
बिना पकाये ये सारे तो ऎसे ही सड़ जायेंगे,
नही पकेगी दाल मूँग की कड़वा करेला खाओगे,
बच्चों के संग होटल जा अपनी जान बचाओगे,
बचे हुए जो घी के लड्डू वो भी साथ ले जाऊँगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मायके चली जाँऊगी।




टेबल पर बरतन पड़े हैं रखा है झूठा अचार,
लीची लुड़की फ़र्श पर और सोफ़े पर अखबार,
मित्रों को बुलाकर जो घर में दंगल मचाओगे,
बर्तन भी खुद रगड़ोगे चोट दिल पर खाओगे,
सच कहती हूँ अबके गई तो नानी याद दिलाऊँगी,
अगर न मानी बात मेरी तो मै मायके चली जाऊँगी।




सुनीता शानू

अंतिम सत्य