कसम खाई थी दोनों ने,
एक ने अल्लाह की-
एक ने भगवान की-
दोनों ही डरते थे,
अल्लाह से भगवान से
मगर...
उससे भी अधिक डर था उन्हें
खुद के झूठे हो जाने का,
उस पाक परवर दिगार से-
मुआफ़ी माँग ली जायेगी
कभी भी
अकेले में॥
कल बड़े दिन की खुशी में हम भूल गये उन सड़क किनारे के बच्चों को जिनके आगे से न जाने कितने सांता गाड़ियों में आये और रेड लाईट से होकर गुजर गये। उसी एक वाकये पर यह कविता लिखी है...देखिये जरा...