चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Monday, December 30, 2013

कसम



कसम

कसम खाई थी दोनों ने,
एक ने अल्लाह की-
एक ने भगवान की-
दोनों ही डरते थे,
अल्लाह से भगवान से
मगर...
उससे भी अधिक डर था उन्हें
खुद के झूठे हो जाने का,
उस पाक परवर दिगार से-
मुआफ़ी माँग ली जायेगी
कभी भी
अकेले में॥

Thursday, December 26, 2013

तेरी किस्मत बाबू

कल बड़े दिन की खुशी में हम भूल गये उन सड़क किनारे के बच्चों को जिनके आगे से न जाने कितने सांता गाड़ियों में आये और रेड लाईट से होकर गुजर गये। उसी एक वाकये पर यह कविता लिखी है...देखिये जरा...




तेरी किस्मत बाबू
थोड़ा सा दे दो..
मेरी क्रिसमस...
नही… तेरी किस्मत
नही बच्ची कहो मेरी क्रिसमस
मगर कैसे कहे वो मेरी क्रिसमस
सान्ता आया था
गाड़ी में बैठ कर
कभी इस नेता के घर
कभी उस अभिनेता के घर
गाड़ी के शीशे पर गंदले हाथों से
थाप देती रही
मांगती रही वो बच्ची
कहती रही
बाबू आज तेरी किस्मत है
मुझे भी दे दो थोड़ा सा कुछ
मगर फ़ुर्सत नही
उस सांता बने बाबू को
इतना भरा था थोली में
लेकिन नही आता था नज़र
थोड़ा सा
झोली के किसी कौने में भी...:(

सुनीता शानू

अंतिम सत्य