चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Monday, March 9, 2009

होली मुबारक हो



ओढ़ चुनर सतरंगी
जो बदला रंग धरती का
नीला हठीला आसमां भी
अचानक हो गया रंगीन
कि आज होली है...


चाँदी से उजले मतवाले बादल
ज्यौं बिनौलों से गुथे हुए
चमकीले रूई के फ़ूल
कि अभी-अभी
निकल भागी है उजली कपास
कि आज होली है...


दूर कहीं कलरव करती
चली परिन्दों की बरात
बजी बाँस में शहनाई सी
बह चली महकती
रंगीन पुरवाई
कि आज होली है...


और कहीं छाई है लाली
जैसे गोरी का सिन्दुरी रूप
कहीं सरसों के बागानों सी
चिलचिलाती धूप
खिलखिलाई
कि आज होली है...


पूरब ने पश्चिम में फ़ेंका
एक दहकता लाल गुब्बारा
चोट लगी पर काम तो आया
ढलता सूरज मुस्काया
हर पल जीवन हो सतरंगी
कि आज होली है...


सुनीता शानू

अंतिम सत्य