चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Tuesday, August 14, 2007

अमर शहिदो के नाम




साठ साल के इस बूढे भारत में,
क्या लौटी फ़िर से जवानी देखो,

आजादी की खातिर मर-मिटे जो,

क्या फ़िर सुनी उनकी कहा्नी देखो...


कहाँ गये वो लोग जिन्होने,

आजादी का सोपान किया था,

लगा बैठे थे जान की बाजी,

आजाद हिन्दुस्तान किया था...


मेरे भारत आजाद का कैसा,

बना हुआ ये हाल तो देखो,

अमीर बना है और अमीर,

गरीब कितना फ़टेहाल ये देखो...


माँ बहन की अस्मत को भी,

सरे-आम नीलाम किया है,

बेकारी और भुखमरी ने,

अंतर्मन भी बेच दिया है...


क्या पाया क्या खोया हमने,

छूट रही जिन्दगानी देखो,

आतंकवाद और भ्रष्टाचार की,

बढ रही रवानी देखो...


अमर शहिदो की शहादत को,

आज ही क्यूँ याद किया है,

क्यूँ आज नही फ़िल्मी चक्कर,

जो राष्ट्र-गान को याद किया है...



शराब और शबाब में डूबे,

मचा रहे धमाल ये देखो,

किन्तु राष्ट्र-गान की खातिर,

तीन मिनट में बेहाल ये देखो...



अब भी जागो ए वतन-वासियो,

याद करो वो कुर्बानी,

जिस देश में एक दूजे की खातिर,

आँखों से बहता था पानी...



आज लहराये तिरंगा हम सब,

और तिरंगे की शान तो देखो,

आओ आजादी का जश्न मनाये,

अमर शहिदो के नाम ये देखो...





सुनिता(शानू)

Sunday, August 12, 2007

हास्य कविता


(इस तस्वीर से किसी को आपत्ति हो तो हटाई जा सकती है )

छः महिने की छुट्टी लेकर हम तो बहुत पछताये,
दो हफ़्ते में ही देखो लौट के बुध्दू घर को आये...

सिगरेट,कोकीन के जैसे ही ब्लागिन ने नशा चढा़या
इस ब्लागिन के चक्कर ने निकम्मा हमें बनाया...


जाकर ऑफ़िस में जब बैठे, लेखन का ही ध्यान रहा
बिजिनेस मीटिंग में भी ,कविता का ही भान रहा...

चाय के सब ऑडर हमने उलट-पलट कर डाले
मैनेजर,क्लर्क सभी को कविता पर भाषण दे डाले...

छोड़ काम-धाम सभी जब बैठे तुकबंदी करने
एक-एक कर लग गये सभी कविता लिखने...


कुछ ना पूछो भैया सबने कैसा हुड़दग मचाया
अच्छे खासे ऑफ़िस को कवि-बंदर-छाप बनाया...


दो हफ़्ते की इस दूरी ने कितना हमे रूलाया
भूले बिजिनेस हम ,जब ख्याल कविता का आया...


न जायेंगे अब छोड़ तुम्हे ए कविता,
कहते है गुड़ खाके...
रहे सलामत अपनी ब्लागिन
करें टिप्पणी बरसाके...


सुनीता(शानू)

Wednesday, August 1, 2007

अलविदा मित्रों

अलविदा दोस्तों आज मै आप सब लोगों से विदा लेती हूँ कुछ समय उपरांत मै अवश्य लौट कर आऊंगी आपकी हमारी इस छोटी सी दुनिया में मगर अब मुझे कुछ जरूरी काम करने हैं यही समय है जब मेरा चाय का बिजिनेस पुरे जोरो पर होता है...अतः अब मुझे ६ महिने का ब्लागर्स की दुनिया से अवकाश चाहिये...मै जानती हूँ मै आप सभी को बहुत miss करूंगी मगर मेरा एक कर्तव्य अपने पति और बच्चों के प्रति है,आप लोगो से बस एक निवेदन है मुझे भूल मत जाना मै फ़िर लौट कर आऊंगी...और हाँ अगर हो सका तो कविताओं पर कभी-कभार टिप्पणी अवश्य करूंगी...मगर मै 6 महिने तक कोई कविता नही लिख पाऊँगी.............

आपके प्यार और स्नेह के लिये बहुत-बहुत आभारी हूँ

आपकी सुनीता(शानू)

अंतिम सत्य