चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Monday, July 8, 2013

मन पखेरु के विमोचन पर रुठे साथी...

मन पखेरु का विमोचन न हुआ बीरबल की खिचड़ी बन गई जिसे सुनीता जी पकाये जा रही हैं...पकाये जा रही हैं। क्यों यही सोच रहे थे न आप?  :)  देखा आखिर मैने आपके मन की बात भी पढ़ ही ली है। खैर खाने को तो तैयार हैं न खिचड़ी... 

तो दोस्तों बात शुरु होती है तब से जब मेरे दिल में कविताओं को एकत्र करने का कोई इरादा ही नही था। दोस्तों की कविताओं की किताबें देखना पढ़ना अच्छा लगता था। 
लेकिन कुछ दोस्तों की मेहनत और मुझसे अपेक्षायें मेरे इस काव्य-संग्रह की वजह बन गई। ये संग्रह उन सभी दोस्तों का ऋणी है।

मैने पहला विमोचन पिलानी में किया था। दूसरा दिल्ली के कॉंस्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर हॉल में हुआ। जाने कितनी उम्मीदें आशाएं जुड़ी थी मेरे इस कार्यक्रम से बता नही सकती। सभी दोस्त इस तरह रुठे थे जैसे बेटे की शादी में जाने से पहले बराती रुठ जायें। जो दोस्त लम्बी-लम्बी साँसे भर के दोस्ती का दम भरते थे। आज उन्हे शिकायत थी कि मैने फ़ोन क्यों नही किया।फ़ेसबुक पर ही मैसेज़ दे दिया।
अच्छा है न ऎसे समय पर ही पता चलता है। 
शिकायतें तो बहुत सारी है... लम्बी लिस्ट है.नाम गिगने लगी न तो बस...




मंच पर काव्य-पाठ तो बीसियों बार किया था। हर बार सामने बैठे दर्शकों की भीड ही देखी थी किन्तु ये भीड़ जो नज़र आ रही थी उन तमाम दोस्तों की थी जो ये जानते थे कि उनके होने का मेरी ज़िंदगी में बहुत  महत्व है जो उन्हें मेरे गीत में मेरी आवाज़ में नज़र भी आया था। कई बार हम कुछ लोगों को बहुत दूर समझते हैं लेकिन वक्त आने पर वही सबसे पास नज़र आते हैं। प्रभात प्रकाशन से पियुष अग्रवाल  तथा अयन प्रकाशन से भोपाल सूदद ्ने आकर ये साबित भी कर दिया।



इस प्रोग्राम को सफ़ल बनाने में पवन जी ने( मेरे पति) पूरी मेहनत की थी। मुझे लगता था कि जैसे ये उन्हीं का सपना है जो आज साकार होने जा रहा था। भीड़ में कुछ जानी-मानी हस्तियाँ भी थी जिनका आना सौभाग्य की बात थी। कुछ लोग बस विमोचन तक रुके थे भोजन नही कर पाये। परंतु उनका आना किसी उपलब्धि से कम नही था।  ... तो दोस्तों मन पखेरु उड़ चला का दूसरा विमोचन भी बहुत ही खूबसूरत हुआ। इसका श्रेय शैलेश को भी जाता है जो मेरे और पवन जी से एक ऎसे स्नेह बंधन में बधा है जिसका टूटना मुश्किल है।

मेरी खुशी में शामिल थे प्रताप सोमवंशी जी पत्नी तथा बच्चे को ही नही अपने साथ लाये थे ढेर सारी शुभकामनाएं। आनन्द कृष्ण जी तथा ललित भाई मेरे घर ही ठहरे थे। उनका आना मेरे घर परिवार को अपना बना लेना था। दूर से आने वालों में सिध्देश्वर जी भी थे।... आप जानते हैं मै सिध्देश्वर जी को बहुत गुसैल समझा करती थी। लेकिन उनसे दोस्ती होना सौभाग्य की बात है।

नन्हा सा अमन जिसे मै बहुत सालों से जानती हूँ आया और अपनी मघुर आवाज़ में गीत भी सुनाया। आने वालों में प्यारी सखी अंजु भी थी। मुझे लगता नही था वो आयेगी मगर वो आई और गई भी सबसे आखिर में।

दिल्ली,फ़रीदाबाद,नोयडा से आने वालों की एक लम्बी लिस्ट थी, नाम लेते लेते सुबह से शाम हो जायेगी। मै बहुत खुश हूँ सचमुच मै अपने दोस्तों के साथ बहुत खुश हूँ जिन्होने मेरा कार्यक्रम अपना समझा और मेरी दोस्ती को दिल में स्थान दिया।






मैत्रेयी जी ने कहा कि हर लेखक पहले कवि होता है बाद में कुछ और होता है। दिल को सुकून मिला सुन कर वरना तो घर में कवि का होना बहुत अपशकुन की बात समझा जाता है भैया। कवि को देखते ही लोग भाग खड़े होते हैं। जैसे भूत लिपट गया हो। :)



अब सोच रहें है कि हम सड़क पर बैठे क्या कर रहे हैं... अजी अगला विमोचन कहाँ होगा बस यही योजना बना रहे हैं। अब रोज-रोज किताब थोड़े ही लिखते रहेंगें। हाँ पार्टी-शार्टी होती रहनी चाहिये।

 पोस्ट लिखते-लिखते दो महिने हो गये। आज पोस्ट करने का मतलब समझते हैं न आप। मतलब की समय बीत जाये तो बीत जाये। उम्र बीत जाये तो जाये... मन बूढा नही होना चाहिये... मन पखेरु लो फ़िर उड़ चला...

राम-राम जी की...
सुनीता शानू

अंतिम सत्य