माँ आज फिर ’तुम’
याद आने लगी हो
कई सालों से
’वो आँचल’ जिसकी ओट में
खेलती थी छुपछुपाई
वो आँचल जिसके कौने से
पोंछती थी तुम मेरे आँसू
उसी आँचल की छाँव में
बसता था मेरा नन्हा संसार
कई बार
तुमसे डाँट खा कर
छुपा लेता था वही आँचल
माँ आज फिर तुम
बहुत याद आने लगी हो
आज फिर जरूरत है
तुम्हारी गोद की…
तुम्हे याद है न
रात को अचानक
किसी बात से डर कर
मेरा चौंक कर उठना
और तुम्हारे सीने से लिपट
सो जाना
जैसे कुछ हुआ ही नही
आज फिर जरूरत है माँ
तुम्हारी
मेरे चारों तरफ
बुन गया है भयानक
मकड़जाल
और मेरी साँसे घुटने लगी हैं
शायद अब मै चौंक कर उठने वाली हूँ
लेकिन ऎ माँ अब कौन सुलायेगा
फिर से मुझे?
ऎ माँ आ जाओ एक बार
कई दिनों से
’मै’
सोई नही हूँ…