चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Thursday, January 24, 2013

माँ




माँ आज फिर ’तुम’
याद आने लगी हो

कई सालों से
नही मिला आँचल तुम्हारा
वो आँचलजिसकी ओट में
खेलती थी छुपछुपाई
वो आँचल जिसके कौने से
पोंछती थी तुम मेरे आँसू
उसी आँचल की छाँव में
बसता था मेरा नन्हा संसार
कई बार 
तुमसे डाँट खा कर
छुपा लेता था वही आँचल
माँ आज फिर तुम
बहुत याद आने लगी हो

आज फिर जरूरत है
तुम्हारी गोद की
तुम्हे याद है न
रात को अचानक
किसी बात से डर कर
मेरा चौंक कर उठना
और तुम्हारे सीने से लिपट
सो जाना
जैसे कुछ हुआ ही नही
आज फिर जरूरत है माँ
तुम्हारी
मेरे चारों तर
बुन गया है भयानक मकड़जाल
और मेरी साँसे घुटने लगी हैं
शायद अब मै चौंक कर उठने वाली हूँ
लेकिन ऎ माँ अब कौन सुलायेगा
फिर से मुझे?
माँ आ जाओ एक बार
कई दिनों से
मै
सोई नही हूँ

Sunday, January 20, 2013

आँखें




आँखें

होंठ चुप रहें सवाल पूछती हैं आँखें
देखें कैसे बेहिसाब बोलती हैं आँखें
मौन ठहरा है दोनों के बीच में मगर
खामोशियों को फिर भी तोड़ती हैं आँखें...

शानू

अंतिम सत्य