चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Friday, March 14, 2014

अधिकार या...




बनिये की बीवी बनियाईन
पंडित की बीवी पंडिताईन
या कहें कि
पति पर पत्नी का अधिकार
या फिर पत्नी को विरासत मे प्राप्त
ऎसी कुर्सी
जो मिल गई ब्याहता बनते ही
कुछ भी कहेंगें...
लेकिन 
खुद को
डॉक्टर की बीवी डॉक्टरनी
मास्टर की बीवी मास्टरनी
कहलाने वाली पत्नियाँ
उतारी जा सकती हैं
कभी भी
इस पद से
इस अस्थायी कुर्सी से
अनपढ़, गँवार, ज़ाहिल कह कर
अपमानित होकर
क्योंकि
खुद को घर, पति और बच्चों के बीच
होम करती स्त्री 
नहीं सोच पाती इतनी गहराई से
कि उसे भी चुनने होंगे
रास्ते अपने
मंजिले अपनी
स्वाभिमान के साथ
क्योंकि आज के परिवेक्ष में
गाड़ी के दोनों पहिये
हर तरह से
समान होने आवश्यक हैं।

शानू

Wednesday, March 5, 2014

ये ज़िंदगी किताब है...





ये ज़िंदगी किताब है
बस इक हसीन  ख्वाब है
पढ़ी गई, कि छोड़ दी,
आधी पढी ऒ मोड़ दी
जो जान के अंजान है
कहे कि दिल  नादान है
पल-पल यही खिताब है
गलतियाँ बेहिसाब है

खाई कसम ओ तोड़ दी
रंगत भी सब निचोड़ दी
ये छाँव है वो धूप है
ये प्रीत है वो भूख है
चेहरे पे इक नकाब है
फिर भी ये लाजवाब है
ये ज़िंदगी किताब है
बस इक हसीन ख्वाब है...


पा ली कभी खो दी
हँस दी कभी रो ली
छीन ली या बाँट दी
पल में उम्र गुजार दी
प्यार है एतबार है
या बनावटी श्रंगार है
मोतियों सी आब है
ये कुदरती नवाब है


लिपट गई सिमट गई
खुल गई बिखर गई
इश्क है जुनून है
पानी है या खून है
बंदिशो की अजाब है
फिर भी आफ़ताब है
ये ज़िंदगी किताब है
बस इक हसीन ख्वाब है...

शानू

Sunday, March 2, 2014

एक हॉस्य कविता



जब से सिमट गया है
सारा घर मोबाइल में
इमोशन खो गये हैं 
व्वाट्स अप की स्माइल में
बच्चे सामने आने से 
कतराते हैं
अब बस मोबाइल पर ही
बतियाते हैं
पहले यदा-कदा
प्यार भरे दो बोल 
कह दिया करते थे
डाल गले में बाहें
झूल लिया करते थे
अब तो मोबाइल पर ही
मुस्कुराते हैं
टाटा बाय-बाय
हाथ हिलाते है
बस लव यू मम्मा
कह पाते हैं....
शानू

अंतिम सत्य