चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Monday, November 2, 2009

आ गई कुछ यादें चुपके से...

यूँ हीं आई जब याद बात कोई तो कागज़ पर कलम फ़िर चल पड़ी....





















आधी बात कही थी तुमने


और आधी मैने भी जोड़ी

तब जाकर बनी तस्वीर

सच्ची-झूठी थोड़ी-थोड़ी

नटखट सी बातों के पीछे

दुनिया भर का प्यार छुपा

मुस्काती आँखो ने भी

जाने कितने स्वप्न दिखा

लूटा था भोला-सा बचपन

और मिला जब

पहला-पहला खत तुम्हारा

तुड़ा-मुड़ा, कुछ भीगा-भागा

भोर के स्वप्न सा

आधा सोया, आधा जागा

कैसे तुमने ओ लुटेरे

दिल को चुराया चुपके से

न दस्तक न आहट ही

दिल में मचाया शोर

चुपके से...



सुनीता शानू

अंतिम सत्य