चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Wednesday, August 21, 2019

रिश्ते






रिश्ते निभाये जा रहे हैं 
सीलन, घुटन और उबकाई के साथ
रिश्ते निभाये जा रहे हैं 
दूषित बदबूदार राजनीति के साथ
रिश्तों में नही दिखती जरूरत अपनापन
रिश्ते दिखने लगे हैं दंभ के चौले से
मेरी तमाम कोशिशें नाकाम करने की ख़्वाहिश में
रिश्तों ने ओढ़ ली है काली स्याह चादर
डर है कहीं ये साज़िशें अपने नुकीले डैनो से 
तोड़ न दे संसार हमारा। 
सुनीता शानू

अंतिम सत्य