चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Tuesday, November 3, 2015

तुम से "मै"

दिन बहुत हुये...
दिन नहीं साल हुये हैं
हाँ सालों की ही बातें है
जाने कितनी मुलाक़ातें है
गिन सकते हैं हम उँगलियों पर लेकिन
दिन...महिने...साल...
गिन लेने के बाद भी
गिनकर बता सकोगे!
बाल से भी बारीक उन लम्हों को 
जो बिताये है तुम्हारे साथ 
और साथ बिताने के इंतज़ार में 
ढुलकते आँसुओं का सूख जाना
लेकिन आज
उम्र के साथ और भी गहरे में
बैठ गया है तुम्हारा प्यार 
बेचैनी बढ़ जाने से 
आँखें ज्यादा नमीदार हो गई है
हाँ इंतज़ार आज भी उतना ही है
मेरे तुम से मिलने का
क्योकि तुमने ही कहा था एक दिन
मुझसे पूरे होते हो तुम 
और तुमसे मैं
तभी से मै 
मेरे भीतर बसे "तुम" से मिलकर 
हर दिन पूर्ण हो जाती हूँ...।
शानू


अंतिम सत्य