चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Friday, October 19, 2012

ये कैसा पिता है जियाउद्दीन युसफजई


ये वो कविता है जो हर दिल की आवाज़ है इस कविता को मैने पढ़ा। मै मलाला और उसके पिता की बहादुरी को सलाम करती हूँ...और साथ ही हिंदुस्तान के वरिष्ठ सम्पादक प्रताप सोमवंशी जी को धन्यवाद करती हूँ...

ये वो कविता है जो हर दिल की आवाज़ है इस कविता को मैने पढ़ा। मै मलाला और उसके पिता की बहादुरी को सलाम करती हूँ...और साथ ही हिंदुस्तान के वरिष्ठ सम्पादक प्रताप सोमवंशी जी को धन्यवाद करती हूँ...
आप सब भी पढ़े...


ये कैसा पिता है जियाउद्दीन युसफजई
*(पाकिस्तान की स्वातघाटी का एक शिक्षक जो उस 14 साल की लड़की मलाला का पिता है, जिसपर तालिबानियों ने स्कूल छोड़ने का फरमान मानने के विरोध में जानलेवा हमला किया था)
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कौन है ये जियाउद्दीन युसुफजई
क्या चाहता है
जब पूरी स्वात घाटी बंद कर लेती है किवाड़े
तालिबानियों की दशहत से
लोग दुबके जाते हैं घरों में
एक फरमान की बेटियां गई स्कूल
तो फेंक दिया जाएगा उनके चेहरे पर तेजाब
माएं आंचल में छुपा लेती हैं बेटियां
लेकिन ठीक इसी वक्त एक शिक्षक जियाउद्दीन युसुफजई
बो रहा होता है अपनी बेटी मलाला में हिम्मत के बीज
इस उम्मीद के साथ कि जब ये बीज पौधा फिर पेड़ बनेगा
तब आएंगे फल और बंजर नहीं कही जाएगी स्वात घाटी
स्वात घाटी का मशहूर कवि जियाउद्दीन युसुफजई
अपनी बेटी के हाथ में रखता है रवींद्रनाथ टैगोर की किताब
समझाता है एकला चलो रे का सबक
बेटी मलाला निकल पड़ती है स्कूल के लिए
उस वक्त भी जब सड़को पर साथ होती है सिर्फ दहशत
टेलीविजन के कैमरों के सामने निडर मलाला
पूछ रही होती है सवाल कि क्यों नहीं जा सकती है वह स्कूल
कौन सा मजहब इजाजत देता है
कि बेटियां स्कूल जाएं तो उन पर फेंक दिया जाए तेजाब
बरसाए जाएं कोड़े, मार जी जाएं गोलियां
गर्व से छाती फुला रहा होता है कवि
जियाउद्दीन युसुफजई
ये वो क्षण हैं जब वो कविता लिख नहीं
जी रहा होता है घाटी की सड़को पर
बेटी मलाला बनना चाहती है डाक्टर
पिता चाहता है कि वह बनें सियासतदां
और करे लोगों में छिपे डर का इलाज
ताकि बेटियां वो बन सकें जो बनना चाहती हैं
कि किसी मलाला नाम के डाक्टर को
किसी दहशतगर्द के तेजाब से डरना पड़े
बेटी मलाला के सिर पर हाथ रखे
हिमालय की तरह खड़ा है जियाउद्दीन युसुफजई
दहशतगर्दों को इस जवाबी ऐलान के साथ कि
वो घाटी छोड़ेगा मलाला स्कूल
क्योंकि अब डरने की बारी तुम्हारी है


-प्रताप सोमवंशी

Wednesday, September 12, 2012

कविताई होती भी नही आजकल

नन्हा अक्षु



हर बात तुमसे कही नही जाती
कविताई होती भी नही आजकल
किसी की प्यारी बातों ने 
बाँधा है कुछ इस कदर 
कि न चाह कर भी लिख बैठी हूँ
कुछ शब्द कागज़ पर बस
हर बात तुमसे कही नही जाती
कविताई होती भी नही आजकल…

साफ़गोई इतनी अच्छी तो नही
मगर पाकिजा सी तेरी मूरत 
टकटकी लगाये निहारती
मोह सा जगा देती है मुझमें 
कि न चाह कर भी लिख बैठी हूँ मै
कुछ शब्द कागज पर बस. 
हर बात तुमसे कही नही जाती
कविताई होती भी नही आजकल

शानू

Monday, June 25, 2012

मेरी गुड़िया कहाँ है तू


बचपन में गुड़िया के साथ खेलना बहुत पसंद था।  बस यूंही बचपन की याद में लिख डाला कुछ ऎसे ही बैठे ठाले...


वैसे समझने वाला ही समझ पायेगा मैने ये क्यों लिखा है...बहुत दुख की बात है कि सब कुछ लुटा कर भी मेरी गुड़िया की कोई खबर नही :(

पारुल 



मेरी गुड़िया तू कब लौटेगी बता
एक दिन जब ब्याह कर गई थी तू
अब तक खबर तेरी आई भी नही न

वो झमनियें का गुड्डा बड़ा ही था नटखट
फेरों में भी की थी बहुत उसने खटपट
कहीं उसने तुझको सताया तो नही न

वो टीणू भी तुझको सताता था गुड़िया
हँसी कितनी तेरी उड़ाता था गुड़िया
फिर उसने मुह चिढ़ाया तो नही न

माँ की साड़ी से बनाई थी कुछ साड़ी
वो सबकी सब रखी थी बक्से में तुम्हारे
किसी ने वो बक्सा चुराया तो नही न

दीदी का दुप्पटा भी बहुत काम आया
जब मिन्को बनियाइन ने गोटा लगाया
वो दुप्पटा हवा से फटा तो नही न

बाबा के पाजामे से बनी कुछ चादरें भी
सोमा धोबन ने धोकर रखी थी बक्से में
उनसे झाड़न किसी ने बनाया तो नही न

कहा था माकली ने भेजेगी वो तुझको
मगर पीठ मोढे भी न भेजा तुझको
कोई रस्म उसने निभाई ही नही न

तेरी शादी में किसी ने नही कुछ छोड़ा
गुल्लक भी मेरा मोटू ने फोड़ा
तू नही तो गुड़िया बचा कुछ नही न

रोती है आँखे तुझको विदा कर
मेरी गुड़िया कहाँ है कहाँ है बता
चूल्हे में किसी ने जलाया तो नही न?

सुनीता शानू 

नोट:-
कविता के सभी किरदार अपने परिवार में अपने बच्चों के साथ खुश हैं:) किसी को फ़िक्र नही मेरी गुड़िया की :)



Tuesday, May 1, 2012

सेवा सम्पादक

गुगल से साभार तस्वीर बच्चे की ही मिल पाई :)







मुझे देख कर वो मुस्कुराता है
पानी रख धीरे से पूछता है
चाय?
मै भी उसकी मुस्कुराहट की
अभ्यस्त सी हो चली हूँ
मुझे भी इंतजार रहता है कि
अब वो मुस्कुरायेगा
चाय या कॉफ़ी कुछ कुछ
कहेगा अवश्य
मेरी हाँ सुनकर
वह एक बार फिर मुस्कुराता है
सैंडविच या कुछ औरले आऊँ
अटक-अटक कर कुछ शब्द
फ़ूटते है उसके मुह से
और मै ना चाहते हुए भी कह देती हूँ
नही बस चाय।
स्निग्ध कोमल सी मुस्कुराहट
चेहरे पर चस्पाये
चल देता है वो बाहर
कभी-कभी लगता है
कितना आवश्यक है
उसका होना
एक भी दिन उसका आना
मेरी सोच से परे होगा
हाँ शायद-
कुछ प्यास लगी है
चाय मिल जाती अगर
साथ सैंडविच चलेगी
कुछ खाया भी नही सुबह
आवाज लगाती हूँ
श्याम
ओह्ह सॉरी आज वह छुट्टी पर है J

Friday, April 13, 2012

ऎ कामवाली तुम्हे बस कामवाली ही बने रहना है...


google se sabhar



हल्लो कौन!
घरवाली?
नही मै कामवाली….
खट
और कनैक्शन कट
लेकिन मै जानती हूँ तुम्हारी उपयोगिता
सच कहूँ
तुम्हारे होने से
घरवाली का ठाठ-बाठ
उसका सजना सँवरना हो पाता है
नख से शीश तक सजी-धजी वह
डरती है 
तुम कहीं अवकाश न ले लो
तुम् अपने सिर दर्द, बदन दर्द की 
परवाह किये बिना
दो कप चाय पीकर
लगा देती हो सिर में तेल
मल देती हो कमर भी

गुदड़ी में छिपे लाल सी
खूबसूरती तुम्हारी
छिपी रहती है
बेतरतीब उलझे बालों और
मैली कुचैली पेबंद लगी साड़ी
या पसीने से उठती दुर्गंध
के बीच
मगर फिर भी
कुछ भी आपत्तिजनक नही होता
लेकिन हाँ
भूल कर भी मत चली आना
केश संवार कर
या इस्त्री किये कपड़े पहन कर
काम से हटा दी जाओगी
इर्ष्यावश या भयवश

घरवाली के सौंदर्य का खयाल रख तुम्हें
बने रहना है पूर्ववत
कामवाली तुम्हे बस काम से मतलब रखना है
तुम्हारा पति 
तुम्हारे बच्चे 
तुम्हारा सजना सँवरना
शाम होने और दिन निकलने के
बीच का मामला है
तुम जानती हो

बेचारी, गरीब, अनपढ़
सभी नाम तुम पर फ़बते हैं मगर,
पढ़ी-लिखी खूबसूरत जवान कामवालियाँ
शिकार हो जाती हैं
किसी की हवस का
या फ़िर रह जाती हैं बेरोजगार

सुनो!
तुम्हारी ढकी-छुपी अप्रतिम सुंदरता
बन सकती है तुम्हारी दुश्मन
ये मैली कुचैली साड़ी,
तुम्हारे चारों तरफ़ लिपटी ये पसीनें की दुर्गंध
रक्षाकवच है तुम्हारा
इस आवरण से निकल कर
झाँकने की कोशिश भी
तुम्हे कामवाली रहने नही देगी
लेकिन
तुम फ़िक्र मत करो
घर का बचा खाना
मेरे और बाबूजी के पुराने कपड़े
बच्चों के पुराने कपड़े और खिलौने
सब दूँगी तुम्हे
पगार भी बढ़ा दूँगी मगर
ऎ कामवाली 
तुम्हे बस
कामवाली ही बने रहना है...

अंतिम सत्य