चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Wednesday, April 18, 2007

प्रेम-प्रमाण-पत्र

सभी आदरणीय को मेरा नमस्कार,..बहुत दिनो से एक कविता लिखने कि कोशिश कर रही हूँ, मगर ना जाने क्यूँ हर कविता हास्य बन जाती है,अजब तमाशा सा हो गया है,इतनी भाग-दौड़ की ज़िंदगी में भी हास्य जाने कहाँ से आ जाता है,..सोचती हूँ अकेले परेशान होने से अच्छा है अपने मित्रजनों,गुरुजनों को भी थोड़ा हास्य-रस का पान कराया जाए,...

पत्नी बोली आकर पति से,
श्रीमान जी,इधर तो आओ,...
प्रेम बस मुझे करते हो,
प्रमाण-पत्र दिखलाओ...

पति ने कहा, हे प्राण-प्रिये...
ये कैसी बात है बचकानी,
प्रेम बंधन है जनम-जनम का,
इसमे कैसी बेईमानी,...

रूप बदल बोली वो आकर,
हमको मत समझाओ,
करके मीठी बाते हमसे,
हमको मत बहलाओ....

आज पडौ़स के शर्माजी की,
हुई है बडी़ पिटाई,
प्रेम किया पडौ़सन से,
शादी कहीं और रचाई...

जो भी हो तुम आज,
नगर-पालिका जाओ,
मेरे प्रिय प्रेम की खातिर,
प्रमाण-पत्र बनवाओ...

पत्नी-भक्त पतिदेव जी,
चले नगर-पालिका के दफ़्तर,
देख प्रार्थना-पत्र,
हँस दिये सारे अफ़सर...

जन्म-मरण का प्रमाण-पत्र,
सब कोई बनवाये,
प्रेम-प्रमाण-पत्र बनवाने,
पहले मूरख तुम आये...

फ़िर भी चलो नाम बतलाओ,
मेज़ के नीचे से नग़दी सरकाओ,

प्रमाण-पत्र कोई हो,
बन ही जाते है,
इसीलिए तो मैट्रिक पास,
प्रोफ़ेसर कहलाते जाते है,...

देख बहुत हैरान हुए वो,
आये मुँह लटकाकर,
बोले प्रिये नही प्रमाण है,
सुन लो कान लगाकर...

सब कुछ बिकता है दुनिया में,
प्रेम ना खरीदा जाये,
जो पाले इस धन को,
वो प्रमाण-पत्र क्यूँ बनवाये...

फ़िर भी तुमको यकिन नही है,
तो बस इतना बतलाओ,
प्रेम बस मुझे करती हो,
प्रमाण-पत्र दिखलाओ...

सुनीता(शानू)

Monday, April 9, 2007

बेचैनी

प्यार में अक्सर दिल बेचैन होता है,...
यादों में दिलबर के दिल का चैन खोता है...

एक अकुलाहट, बेताबी सी रह्ती है सीने में,
एक झुन्झलाहट,छ्टपटाहट रहती है जीने में,

व्याकुल तन-मन इस कदर अधीर होता है,
यादों में दिलबर के दिल का चैन खोता है...

एक रौला,एक हलचल में,होंठ खुले रह जाते हैं
बिन बोले हि बात अधूरी सी कह जाते हैं

बेचैन निगाहों में आसुँओ का सैलाब होता है,
यादों में दिलबर के दिल का चैन खोता है...

बन्द पिन्जर में पन्छी सा मन फ़ड़फ़ड़ाता है
चलते-चलते राह पथिक सब भूल जाता है,

इन्तजारे,बेताबी में तिलमिलाना भी खूब होता है,
यादों में दिलबर के दिल का चैन खोता है...

सुनिता(शानू)

रे मन तूं फ़िर उङ चला




मन किसी के बाँधे नही बँधा है जो मन को बाँध पाया है वो ही सच्चा साधु है,

रे मन तू बन पखेरू,
जाने कहाँ उड़ जाता है,
आ तनिक विश्राम भी करले,
ठहर नही क्यूँ पाता है,...रे मन तू...
हर रात मुझे तू दिव्य-स्वप्न दे,
जाने कहाँ ले जाता है,
बैठ मेरे ही नैनो के साये,
नीदरी मेरी चुराता है,...रे मन तू...
रे नीड़क तू चँचल क्यूँ है,
कहीं तेरा छोर न पाता है,
कभी इधर तो कभी उधर,
इक डाल पे टिक नही पाता है,...रे मन तू...
रहे सदैव निस्तन्त्र रे मन तू,
चैन नही क्यूँ पाता है,
रे पाखी मति-भ्रम लौट आ,
नीड़ से ही तेरा नाता है,...रे मन तू...
काम,वासना,लोभ,मद में,
भूले क्योंकर जाता है,
स्वप्न सदा ही स्वप्न रहे है,
सच कहाँ छुप पाता है,...रे मन तू...
रे पाखी अब मान भी जा तू,
क्यूँ अपमानित हुआ जाता है,
ये सच है कि सुबह का भूला,
लौट शाम घर आता है,...रे मन तू...

सुनीता(शानू)

Sunday, April 8, 2007

तुम कैसे हो



उषा कि आंखमिचोली से थक कर,
निशा के दामन से लिपट कर,
जब अहसास तुम्हारा होता है...
अविरल बहते आंसू मेरे
मुझसे पुछ्ते हैं
तुम कैसे हो?
श्यामल चादर ओढ बदन पर
,जो चार पहर मिलते हैं,
मेरे मन के ऐक कोने में,
तेरी आहट सुनते हैं...
डर-डर कर सांसे रुक जाती हैं
धड्कन मुझसे कह्ती है
तुम कैसे हो?
तन्हा रात के काले साये पर,
जब कोई पद्चाप उभरती,
खोई-खोई पथराई आखें...
राह तेरी जब तकती हैं
हर करवट पर मेरी आहें
मुझसे पुछती मुझसे पुछ्ती...
तुम कैसे हो?
सुनिता चोटीय़ा(शानू)

बच्चे ऒर उनकी परवरिश

फ़ैशन की मारी है ये दुनिया सारी,
देश भर में फ़ैली रहे चाहे बेकारी।

हमारी सभ्यता,संस्कृति,परम्पराएँ सारी,
सिसक रही है पहन के छः मीटर साड़ी।

आधा मीटर कपडा़ काफ़ी हो गया है,
अच्छा खासा लहंगा मिनी स्कर्ट हो गया है।

किसको दे ताने किस पर लगायें लांछ्न,
खुद हमसे उजड़ गया है आज हमारा आंगन।

न जाने कैसी चली है ये हवा...
फ़ैशन में गिरफ़्तार है हर एक जवां।

ऎश्वर्या जैसी चाल रितिक जैसे बाल,
चाहते है सारे आज माँ के ये लाल।

आज युवा पीढी दिशाहीन हो गई है,
स्वतंत्रता की आड़ में बेलगाम घोडे़ सी दौड़ रही है।

दौलत ऒर शौहरत पाने की चाह में,
खो गये है, नैतिक मूल्य न जाने किस राह में।

आदर संस्कार जो मिले थे विरासत में,
गंवा बैठे है सभी कुछ परिवर्तन की राह में।

माना कि परिवर्तन है प्रकृति का शाश्वत नियम,
परंतु आगे बढने की चाह ने तोङ दिये सारे संयम।

तुलसी,रहीम,गुरुनानक किताबों में दफ़न हो गये है,
पढना लिखना छोड कर सब फ़ैशन शो में चले है।

माँ से मम्मी, पिता से डैड हो गये है,
अच्छे खासे बच्चे भी आजकल मैड हो गये है।

इसके लिये शर्मिंदा है वे सारे लोग,
जो बिगङते बच्चों पर लगाते नही रोक।

अगर माता-पिता की परवरिश हो अच्छी,
तो कैसे बिगङेगी बच्चो की ये उम्र कच्ची।

कुछ नही कर सकते ये सिनेमां-दूरदर्शन,
अगर बच्चो को मिले घर में थोरा सा मार्गदर्शन।

सुनिता (शानू)

हुआ निकम्मा आदमी

क्या कहिए उन इन्सानो से, जिनकी फ़ितरत मक्कारी है…
अपनी ही जेबे भरते रहना, जिनकी पेशेवारी है॥

दोस्ती का जो दम भरते हैं, उम्मीद वफ़ा की करते हैं,
देकर भरोसा अहले वतन को… करते वही गद्दारी है॥

देश के नेता बनते है जो, बात अभिनेता सी करते हैं…
झुठे वादे करते रहना ही, इनकी अदाकारी है॥

भोली-भाली सूरत है इनकी, पर अक्ल बला की रखते है…
हुआ निकम्मा हर वो आदमी, जिसकी मदद ये करते हैं॥

अंतिम सत्य