चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Friday, January 10, 2014

छिपकली




कितनी बार कहा है
दीवार से चिपकी 
मत सुना कर लोगों की बातें
मगर वो न मानी थी, 
आखिरकार गुस्से मे आ 
हाथ की पँखी से
काट डाली थी पूँछ आम्गुरी लोहारिन ने
कुछ देर बिलबिलाती रही
और शाँत हो गई, 
मगर वो जिद्दी 
पूँछ कटी होकर भी 
सुनती रही लोगों की बातें, 
कितनी बार कहा है धीरे बोला करो, 
वो अबतक 
चिपकी है दीवार से 
मैने कहा था न 
दीवारों के भी कान होते हैं...

शानू

Wednesday, January 8, 2014

नही पड़ता फर्क





नही पड़ता फर्क 
तेरे कुछ न कहने से
तेरे दूर होने या 
पास होकर भी न होने से
किन्तु 
होती है बेचैनी
भर जाती हूँ एक अज़ीब सी चुप्पी से
या चहकती हूँ बेवजह मै
कैसी कशमकश है 
मुझे खुद से जुदा किये है
फिर भी नही कह पाती
ये खुदकुशी है...

शानू

अंतिम सत्य