चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Thursday, September 26, 2013

खामोशी से बरस गया

आज बहुत तेज़ बारीश आई बस यूँही लिख डाला एक पैगाम  उस आवारा बादल के नाम जो एक हवा के झोंके से कहीं भी बरस जाता है...


गुगल से साभार





बहुत दिनों से
घुटन सी
घिर आई थी
कली-कली भी
कुम्हलाई थी
प्यास कोई एक
भटक रही थी
धरती सी
बिन पानी के तड़प  रही थी
रुकी-रुकी सी सांसों ने
आधी-अधूरी बातों ने
जाने क्या समझाया
कि
न वादा तोड़ा न साथ चला
बस खामोशी से बरस गया...
शानू

Saturday, September 21, 2013

फिर आई एक याद पुरानी...

ये वो कविता है जिसे हिन्दी के अक्षरों में लिखने में बहुत समय लग गया था। मै देवनागरी से परीचित नही थी और बहुत मुश्किल से सुषा फोंट्स का जुगाड़ कर लिख पाई थी। इसके बाद कृति देव और अब बराहा देवनागरी :) बहुत ही आसान हो गया है हिन्दी लिखना...बहुता पुरानी कविता है जिसे पुराने ई कविता ग्रुप के लोगों ने पढ़ा और सराहा भी था... तथा कमिया भी बताई थी।



Ref :-102_sunita         DATE_05.08.2006

ना जाने क्या हो जाता है ...

ना जाने क्या हो जाता है...आती है जब याद तेरी...
दिल खो जाता है... जाने क्या हो जाता है...

तनहा-तनहा दिन कटते हैं, तनहा-तनहा राते है ;
तनहा-तनहा मन है मेरा... तनहाई मे बातें हैं ।
तेरे आने की खुशी में...जाने कब वक्त कट जाता है
जाने क्या हो जाता है,

जबसे तुझसे लगन लगी है...एक तस्वीर बसी है मन में,
रातों में तेरे सपने हैं...एक हुक जगी है तन में।
तुझको पाने की चाहत में...दिल बाग-बाग हो जाता है
जाने क्या हो जाता है...

कल मुलाकात हुई तुमसे तो...दिल को कोई होश नही है
तन-मन मेरा  ऎसे डोले,..आंखें भी खामोश नही हैं।
बेचैनी बड. जाने से...दिल को रोग लग जाता है।
जाने क्या हो जाता है...

...गर है मरहम कोई तो...इस दिल को आज दवा देदो,
मायूस ना हो जाये ...दिल में थोङी जगह देदों।
मिल जाने दो दिल को दिल से...दिल आज मेहरबां हो जाता है,
ना जाने क्या हो जाता है...

सुनीता चोटिया   
 (सुनीता शानू)


Tuesday, September 10, 2013

कहानी की कविता

दोस्तों एक कहानी लिखी है "एक अकेली" कहानी के भीतर की कविता यहाँ प्रस्तुत है ये खत कहानी की नायिका सौम्या ने अपने प्रेमी शेखर को लिखा था उसी खत का थोड़ा सा अंश प्रस्तुत है...

आज पहली बार चली हूँ दो कदम

तुम्हारे बिन

आज पहली बार कुछ किया है मैने

तुमसे कहे बिन

तुम्हारी नाराजगी या तुम्हारी हाँ की

परवाह किये बगैर

प्यार में हद से ज्यादा परवाह कहीं

बंदिशे तो नहीं...

शायद आज तुम भी सोच पाओगे जीना

मेरे बिन

पहल मैने कर दी है और शुरुआत भी

मेरी ही थी....
सुनीता शानू

अंतिम सत्य