चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Tuesday, August 12, 2008

प्यार की पहली बारिश








एक मुद्दत से कुछ लिख नही पाई हूँ,आज एक प्रयास किया है,बस और कुछ नही...



वो उतरी है जिस रोज आसमान से
रिम-झिम सावन की फ़ुहार बनके
झिलमिलाती रही ऎसे आँगन में मेरे
असंख्य मोतियों का श्रृंगार बनके।




छूती हूँ जब भी मै होठों से उसे
महक उठती हूँ सोंधी बयार बनके
चमकती रही ऎसे जीवन में मेरे
आई हो खुशियों का संसार बनके।




एक नन्ही सी बूँद मिली जब उसे
खिल गई हर कली बहार बन के
मुस्कुराई फ़िर ऎसे गजरे में मेरे
सज गई हो जूही का हार बनके।




चाँद की खामोशी खली फ़िर उसे
चमकी बादल में अंगार बनके
बरसती रही ऎसे मधुबन में मेरे
सावन की पहली बौछार बनके।




अहसास प्रेम का हुआ जब उसे
बह चली आँसुओं की धार बनके
पिघलती रही वो हृदय मे मेरे
प्रियतम का पहला प्यार बनके...






सुनीता शानू





अंतिम सत्य