ऊँ नमः शिवाय... |
मेरे और तुम्हारे बीच
एक मौन पसरा हुआ है
अनन्तकाल से
मगर फिर भी
मै समझती हूँ, तुम्हारे इस
मौन की परिभाषा
मेरे हर सवाल पर-
तुम मौन ही रहते हो-
क्योंकि तुम जानते हो-
जवाब भी तो-
मुझे मेरे अनुरुप ही चाहिये
तुम कुछ पूछते नही
मगर मै सब बताती हूँ तुम्हें
मुझे पता है तुम्हारी ये चुप्पी भी
मेरी हाँ मे हाँ ही होगी
मगर फिर भी
कुछ तो होगा अन्त
इस चुप्पी का
कब तुम्हारे पथरीले होंठ
हिलेंगे और तुम बाहर आओगे
इस गहरे मौन से
अनन्तकाल से बस मै ही
कर रही हूँ सवालों पर सवाल
और जवाब?
बस मेरे ही होते हैं...
शानू
इस गहन चुप्पी को तोडने की लालसा ...बहुत खूब
ReplyDeleteक्योंकि तुम्हारे शब्द मेरे ही तो हैं अनादिकाल से
ReplyDeleteजवाब अपने अनुरूप चाहिए तो फिर मौन ही श्रेष्ठ था !
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