चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Thursday, August 31, 2017

ख्वाब एक माँ का...



 बढे जा रही हैं उम्र और
 मेरी उम्र के साथ-साथ बढ रहे हो 
तुम भी
और तुम्हारे साथ जी रही हैं
 मेरी उम्मीदें, मेरे ख्वाब
मै एक अलग ढँग की माँ हूँ
शायद अपनी माँ से भी अलग
मैने तुम्हें भी पा लिया था 
बचपन के अनछुये ख्वाबों में
वो ख्वाब 
जो शायद कम ही देखे जाते हैं
वो ख्वाब
जिनमें नहीं होता कोई राजकुमार या प्रेमी
हाँ अगर प्रेम था तो
सूर्य की तेज़ किरणो से
चाँद भी मेरे प्रेम में 
झाँकता था बादलों की ओट से 
प्रेम था तो माटी से 
जो सर्र से सरकती थी मेरे हाथों से
किसी रेशमी परीधान सी
मेरे प्रेम की गवाही 
ये पागल मस्त हवायें भी दे सकती हैं
जिनके साथ मेरे ख्वाब 
आसमान की ऊँचाईयों को छू पाते थे
शायद मै भी आजमाना चाहती थी
कुन्ती की तरह
ईश्वरीय शक्तियों को
मैने भी बुन लिये थे ख्वाब
माँग लिया था तुम्हें सपनों में ही
और शायद इसीलिये 
एक रोज तुम सचमुच आ गये
मेरे ख्वाबों को आकार देने
एक खूबसूरत  शिल्पकार से तुम 
तुम्हारे आते ही बदल गई थी जिंदगी
तुम्हारे आते ही मैने देखा था
तुम्हारे पिता की आँखों में खुशियों का सैलाब
तुम्हारे आने की महक से 
फ़ैल गई थी माटी की सौंधी खुशबू
धूप के साथ बरसता था पानी
तो कभी चाँद की चाँदनी झाँक रही थी
हमारी खिड़की से
तब लटका दिया था तुम्हारे गले में
नजर बट्टू नानी ने
कि बचाये रखना बाहर की तेज़ हवाओं से
धूप में झुलस न जाये देखना कहीं
और यह कह कर बंद कर दिये थे 
खिड़की के दरवाजे कि
काली रात को चली आती हैं
अलाये-बलायें
और तुम एक पाँव पर दूसरा पाँव धरे
जब मुस्कुराते नजर आये
मैने कहा था माँ से
देखो न ये तो वही रूप है
जिसे मैने कई मर्तबा देखा है
हाँ माँ भी जानती थी सब कुछ
माँ से कभी कुछ छुप नही पाता
जैसे नहीं छुप पाये तुम भी
है न आदित्य! 

सुनीताशानू

Tuesday, August 1, 2017

इंतज़ार


इंतज़ार तेरे पास आने का
इंतज़ार तुझे देख भर लेने का
इंतज़ार तुम्हे गले से लगा लेने का
इंतज़ार तुम्हारा माथा चूम कर हौले से हाथ दबाने का
इंतज़ार यह कहने का कि मै हूँ तुम्हारे लिये
इंतज़ार तुझसे मिलने का
मिलकर शिकायत करने का
कि तुम अब तक अकेले कैसे रहे
शिकायत यह भी कि
तुमको अब तक याद आई नहीं
आई भी तो उतनी नहीं ही आई होगी
जितनी की मुझे आती है
काश याद का कोई पैरामीटर हो
तो कही जाये वो तमाम बातें
तुम्हारे बग़ैर बीती हुई रातें
और जमाने भर की शिकायतें
शायद कहते वक्त
जुबां का साथ न दे पाये
आँख दे जाये धोखा और दिल बंद करदे धड़कना
और भी बहुत सी बातें हैं
मेरे-तुम्हारे इस इंतज़ार में
सुनो... सच कहूँ तो...
तुम्हें भी यह समझना होगा कि
मेरे तुम्हारे दरमियाँ
कभी दूरी होती ही नही है...।
#सुनीता शानू

Sunday, July 30, 2017

सैंड टू ऑल




सैंड टू ऑल की गई
तुम्हारी तमाम कविताओं में
ढूँढती हूँ वो चंद पंक्तियाँ
जो नितान्त व्यक्तिगत होंगी
जो लिखी गई होंगी
किसी ख़ास मक़सद से
किन्हीं ख़ास पलों में
सिर्फ मेरे लिये
नहीं होगा उन पर
किसी और की वाह वाही का ठप्पा भी
लेकिन
सैंड टू ऑल की गई सारी कवितायें
बिछी पड़ी हैं सबके आगे
सुनो!
कुछ नया लिखो न
सिर्फ मेरे लिये...
शानू

अंतिम सत्य