दोस्तों मेरी यह कविता १३ तारीख को रेडियो द्वारा राष्ट्रीय प्रसारण दिल्ली केंद्र से प्रसारित होगी...रेडियो या अखबार जिसे शायद आज सब भूल गये हैं मगर हर खासोआम के दिल तक पँहुचता है आज भी रेडियो और अखबार...:) ... कृपया आज ही खरीद कर लाईये एक छोटा सा रेडियो और सुनिये आपके प्रिय कवि की दर्द भरी कविता...:)
देख कर लाल की खूबसूरत छवि,
मन ही मन बावरी मुस्काती रही,
डर न जाये कहीं मेरा लाडला...
मुँह आँचल से अपना छिपाती रही।
मगर एक दिन ये हवा जो चली,
ले उड़ी आँचल वो पकड़ती रही,
देख कर लाल तो डर ही गया...
मै माँ हूँ... तेरी वो बताती रही।
पोंछ कर आँसू आँखे छिपाती रही,
खुद को नजरों से खुद की गिराती रही,
आँसूओं लग न जाये बददुआ लाल को,
दोनो हाथों को दुआ में उठाती रही।
छोड़ कर गया वो राह तकती रही,
देर तक वो रोती सिसकती रही,
एक दिन तो आ जाना मेरे लाडले,
हर साँस में आस एक पलती रही।
याद में पुत्र की साँसे चलती रही,
आत्मा भी मिलन को तड़पती रही,
अन्तिम समय आ गया जानकर...
आँसुओ से चिट्ठी वो लिखती रही।
-मेरे लाल जान ले मजबूरी मेरी-
उम्र भर जिस चेहरे से तूने नफ़रत करी,
एक रोज बचाने तूझे आग से...
जल गई थी ये सूरत मेरी।
खुद जलकर भी खुद को बचाती रही,
अपनी आँखों से दुनियाँ दिखाती रही,
मै खुश हूँ मै हर पल तेरे साथ थी,
तेरी आँखों मे मै सदा मुस्काती रही।
खत पढ़ा पढ़कर आँखें ही रोती रही,
आत्मा पुत्र की माँ को बिलखती रही,
जब तक माँ थी मै समझा नही...
इन आँखो से माँ दुनियां दिखाती रही।
माँ जैसी भी हो मेरे लाडलो,
जन्म जिसने दिया न नफ़रत करो,
सौ जन्मों में भी क्या चुका पाओगे,
कर्ज दूध का अदा क्या कर पाओगे,
बन कर लहू को रंगो में बहा...
कतरा-कतरा क्या उसको कर पाओगे-?
सुनीता चोटिया (शानू)
बहुत सुंदर कविता , भावनाओं के धरातल पर उपजी हुई मानवीय संवेदनाओं का सारगर्भित उदगार , बधाईयाँ !
ReplyDeletemun bhar aaya..SUNITA JI....MAA hoti hi aisii hai,naa janey kis mitti ki banaataa hai isey bhagvaan ...
ReplyDeleteमानवीय संवेदनाओं को समेटे हुए,बहुत बढिया रचना है।बधाई।
ReplyDeletemaa hoti hi pyar ki murat hai,ansoon aagaye padhte padhte,sundar behad sundar.
ReplyDeleteक्या कहूँ ? कुछ अजीब सा लगा आप की रचना पढ़ कर. ज़िंदगी के न जाने कितने flashback दिखला गई ये कविता.
ReplyDeleteकिसी भी व्यक्ति/चीज की अहमियत उसके न होने पर ही समझ में आती है और फिर मां की तुलना तो असंभव है क्योंकि
ReplyDeleteमां जैसी सिर्फ मां ही हो सकती है।
बढ़िया कविता!!
ममत्व का अच्छा चित्र खींचा है आपने।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है। मां जैसी ही।
ReplyDeleteदिल को छू गयी आपकी कविता।
ReplyDeleteमाँ जैसी भी हो मेरे लाडलो,
जन्म जिसने दिया न नफ़रत करो,
सौ जन्मों में भी क्या चुका पाओगे,
कर्ज दूध का अदा क्या कर पाओगे,
बहुत-बहुत सुन्दर !
सुन्दर रचना, करूणा व प्रेम के भावों को संजोंने का बेहतर प्रयास किया है आपने सुनीता जी । शव्दों व छंदों में कुछ और कसावट हो तो लाजवाब भाव हैं, भावों को बिखरने न दें तारतम्यता में शव्दों के साथ भावों की धारा को बहने दें ।
ReplyDeleteकानों में सुनने पर शव्दों में आरोह अवरोह लाने से यह कविता पढनें से भी अच्छी लगेगी ।
संजीव
माँ जैसी भी हो मेरे लाडलो,
ReplyDeleteजन्म जिसने दिया न नफ़रत करो,
सौ जन्मों में भी क्या चुका पाओगे,
कर्ज दूध का अदा क्या कर पाओगे,
बन कर लहू को रंगो में बहा...
कतरा-कतरा क्या उसको कर पाओगे-?
सच में हृदय को छूती हुई यह रचना है.... माँ के ममत्व की बराबरी कोई भी नहीं कर सकता।
रचना अच्छी लगी.....
बधाई स्वीकारो।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह कविता सुनीता जी ...माँ के बारे में लिखा वैसे भी मुझे बहुत पसंद है !!
ReplyDeleteसच! मां के प्यार की शब्दों में अभिव्यक्ति कर पाना बहुत मश्किल हॆ.इसे तो बस महसूस किया जा सकता हॆ.
ReplyDeleteमां के प्यार को शब्दों में अभिव्यक्त कर पाना बहुत मुश्किल हॆ.इसे तो केवल महसूस किया जा सकता हॆ.बहुत ही अच्छी भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteसुनीता जी,
ReplyDeleteभावना प्रधान सुन्दर रचना... एक ऐसी ही कहानी पढी थी जिसमे अपनी मां को बेटा छोड जाता है क्योंकि उस लाज आती है कि उसकी मां की एक आंख नहीं है...मगर उसे बाद में पता चलता है कि मां ने उसी को अपनी एक आंख दे दी थी ताकि लोग उसे काणा न कहें..सचमुच सच कितना कडवा होता है
भावों से ओतप्रोत.. दिल को छू लेने वाली..दुख के कितने ही स्वरूप होते हैं...
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