चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Tuesday, July 31, 2007

दिल फेंक आशिक




है दिल फेंक आशिक जमाने में बहुत,
अपने दामन को बचा कर रखिये।




न ठहर जाये अश्क आँखों में कहीं,
अपनी पलकों को झुका कर रखिये।




इश्क में मिलती है बस तनहाई यहाँ,
अपने दिल को गुलशन बना कर रखिये।




गम में रोना न पड़ जाये उम्र भर तुझको,
उस सितमगर को मेहमां बना कर रखिये।




बेवफ़ा हैं ये जमाने के रहनुमा सारे,
दिल के आईने में खुद को सजा कर रखिये।





ऎसा न हो लग जाये चोट दिल पर कोई,
अपने दिल को पत्थर सा बना कर रखिये।


बदनाम न कर दे दुनियाँ की जालिम नजरे,
खुद को दुनियाँ की से नजरों से बचा कर रखिये।




सुनीता शानू




34 comments:

  1. वाह क्या बात है , सुभानअल्लाह बहुत सुन्दर हमें तो पता ही नहीं था कि आप खूबसूरत गजल भी लिख लेती है] ये तो ना इसाफ़ी थी हम पर इतने दिनों तक

    ReplyDelete
  2. शानू जी,बहुत बढिया गजल है।बधाई।

    एसा न हो लग जाये चोट दिल पर कोई,
    अपने दिल को पत्थर सा बना कर रखिये

    ReplyDelete
  3. अगर आगाज़ ऐसा है तो फिर , आगे की हम सोच ही सकते है ...

    ReplyDelete
  4. वाह शानू जी! आप तो गज़ल में भी छा गयीं. बहुत खूबसूरत गज़ल है. मगर दिल को पत्थर मत बनाइये वरना हमें ये भावपूर्ण रचनायें कहाँ पढ़ने को मिलेंगी.

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर.. भावपूर्ण गजल..दिल को छू गई..
    कवि कुलवंत..
    सुनीत जी आपके ब्लाग लिंक को मैं अपने ब्लाग http://www.kavikulwant.blogspot.com पर ’मेरे कवि दोस्त’ के अंतरगत डालना चाहता हूँ। कवि कुलवंत

    ReplyDelete
  6. एसा न हो लग जाये चोट दिल पर कोई,
    अपने दिल को पत्थर सा बना कर रखिये..

    चोट कम लगे इसी लिये तो ईश्वर ने दिल को लचक्दार बनाया है.... सुन्दर गजल..

    ReplyDelete
  7. हां एक बात और...
    आप आजकल ज्यादा समय लिखने को देने लगी हैं...कुछ वक्त हमारे ब्लाग पर भी आने के लिये बचा कर रखिये

    ReplyDelete
  8. इस नये क्षेत्र में पदार्पण काफी सफल रहा -- शास्त्री जे सी फिलिप

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

    ReplyDelete
  9. वाह-वाह!!

    इरशाद !!

    ख़ूब सारी बधाई!

    ReplyDelete
  10. Koshish safal rahi, mujhe yah kavita se jyada acchi lagi. ummed hai ese nagme uar padne ko milenge. aap ise ga kar bhi blog par daliye to aur accha lagega.

    ek baat aur
    अपने दिल को पत्थर सा बना कर रखिये...
    agar dil patthar ban gaya to kavita kahan hogi, mai to majak kar raha tha.

    Naye pyash ki badhai

    ReplyDelete
  11. दिल को पत्थर बनाया तो ग़ज़ल नहीं होंगीं, न प्यार होगा न भाव होंगें... ग़ज़ल अच्छी लगी...

    ReplyDelete
  12. काश! "दिल फेंक" के दिलों को "कैच" कर प्यार से सहला-नहला कर पावन करनेवाली देवी भी होती कोई...

    ReplyDelete
  13. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  14. वाकई सुनीता जी बहुत अच्‍छी गजल हैं, गजल में इश्‍क और बेवफाई की रूबाईयों में व्‍यंग व दर्द शामिल हो तो गजल और सुहानी लगती है । बधाई ।
    ईश्क में मिलती है बस तनहाई यहाँ,
    अपने दिल को गुलशन बना कर रखिये.

    बहुत खूब क्‍योंकि वीराने को भी गुलशन बना दे वही तो हमारा आत्‍मविश्‍वास है ।

    "www.aarambha.blogspot.com"

    ReplyDelete
  15. बढ़िया रचना. लिखते रहें और निखार आयेगा.

    ReplyDelete
  16. ईश्क में मिलती है बस तनहाई यहाँ,
    अपने दिल को गुलशन बना कर रखिये...

    bahut hi sundar aur pate ki baat kah di sunita ji aapne ..[:)]

    ReplyDelete
  17. बढ़िया रचना, लगता है आपकी प्रयोगधर्मिता जाग उठी है।
    अच्छा है जारी रखिए!!

    गनीमत है नही तो शीर्षक पढ़कर अपन ने सोचा कि आप किसी दिलफ़ेंक आशिक़ से टकरा गईं कहीं॥

    ReplyDelete
  18. न ठहर जाये अश्क आँखों में कहीं,
    अपनी पलकों को झुका कर रखिये...

    अच्छा लगा ये शेर !

    ReplyDelete
  19. न ठहर जाये अश्क आँखों में कहीं,
    अपनी पलकों को झुका कर रखिये...

    खूबसूरत गजल है |लिखते रहें और निखार आयेगा.

    ReplyDelete
  20. आपका ब्लाग मुझे बहुत पसंद आया । अभी तक जितने भी हिन्दी ब्लाग देखे उसमें आपका ब्लाग सबसे खूबसुरत हैं । बहुत अच्छा ।लिखते रहिए ।
    NishikantWorld

    ReplyDelete
  21. है दिल फेंक आशिक जमाने में बहुत,
    अपने दामन को बचा कर रखिये...

    ye chere pe muskraahat de gaya...

    न ठहर जाये अश्क आँखों में कहीं,
    अपनी पलकों को झुका कर रखिये...
    ahhaa!! purani baat par naye dhang se pyara hai...
    गम में रोना न पड़ जाये उम्र भर तुझको,
    उस सितमगर को मेहमां बना कर रखिये...
    1st misre ka flow thoda kam hai..
    so...rok raha hai..
    एसा न हो लग जाये चोट दिल पर कोई,
    अपने दिल को पत्थर सा बना कर रखिये...
    badhiya hai..!!

    esa mujhe lagta hai..
    with love
    ..masto...

    ReplyDelete
  22. बदनाम न कर दे दुनियाँ की जालिम नजरे,
    खुद को दुनियाँ की से बचा कर रखिये...

    बेहतरीन।

    सादर

    ReplyDelete
  23. न ठहर जाये अश्क आँखों में कहीं,
    अपनी पलकों को झुका कर रखिये...

    और दिल को पत्थर बना कर रखिये ..गज़ब है ..सुन्दर गज़ल

    ReplyDelete
  24. न ठहर जाये अश्क आँखों में कहीं,
    अपनी पलकों को झुका कर रखिये...

    बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  25. sunder rachna ..
    dekha tha kisi ne aapki rachna hi churayi hai ...afsos ki log blog se bhi chori karte hain ...par ye achchha raha aapne pakad bhi liya ..!!
    ab bloggers ke liye bhi koi kanoon hona chahiye vaise ...

    ReplyDelete
  26. आपकी कविता अच्छी थी इसीलिए चोरी हुयी और आपने चोर को पकड़ कर माफ कर दिया?

    ReplyDelete
  27. खूबसूरत गजल.आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  28. vaah bahut achchi ghazal padhne ko mili.pahli bar aapke blog par aai hoon.aana sarthak raha.jud rahi hoon aapki shrankhla se.

    ReplyDelete
  29. एसा न हो लग जाये चोट दिल पर कोई,
    अपने दिल को पत्थर सा बना कर रखिये...भावपूर्ण रचना.....

    ReplyDelete
  30. वाह! सुन्दर ग़ज़ल....
    सादर...

    ReplyDelete
  31. bahut sundar gazal...yu hi likhte rahiye...abhar

    ReplyDelete
  32. अरे मैं तो गुनगुना रहा था...बड़े दिन बाद गज़ल गाने का जी चाहा है....कोशिश करुंगा..गले का बैंड सालों पहले बजा चुका हूं...एक बार कोशिश करके देखने में हर्ज क्या है...कामयाब हुआ तो बताउंगा कहां अपलोड किया है....

    ReplyDelete
  33. आज 01/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  34. बहुत ही सुन्दर रचना.
    बहुत ही बढ़िया......

    ReplyDelete

स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य