चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Monday, July 30, 2007

है कौन जिसे प्यास नही है....



है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है,
जीने की किसे आस नही है...

प्यास जहाँ हो चाहत की,
जिन्दा दफ़नाएं जाते है,
हर दिल में मुमताज की खातिर,
ताज़ बनाएं जाते है...
विरान है वो दिल जिसमे मुमताज नही है
है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है,

प्यास जहाँ हो पिया मिलन की
वहाँ स्वप्न सजोंये जाते है
प्रियतम से मिलने की चाहत में
नैन बिछाये जाते है
प्यासे नैनो में आँसू की थाह नही है
है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है

प्यास जहाँ हो बस जिस्म की
दामन पे दाग लगाये जाते है,
कुछ पल के सुख की खातिर
हर पल रूलाये जाते है
माटी के तन की बुझती प्यास नही है
है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है

प्यास जहाँ हो दौलत की,
कत्ल खूब कराये जाते है,
अपने निज स्वार्थ की खातिर,
दिल निठारी बनाये जाते है...
खून बहा कर भी मिलती एक सांस नही है
है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है,

प्यास जहाँ हो शौहरत की,
रिश्ते भुलाये जाते हैं,
एक नाम को पाने की खातिर,
हर नाम भुलाये जाते हैं
भाई से भाई लड़े रिश्तों में आँच नही है
है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है

प्यास जहाँ हो वतन की,
वहाँ शीश नवाये जाते हैं,
धरती माँ के मान की खातिर,
सर कलम कराये जाते हैं
आज़ादी की रहती किसको आस नही है
है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है

है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है
जीने की किसे आस नही है॥


सुनीता(शानू)

14 comments:

  1. Sunita ji kuch dino pahle aapne ek comment kiya tha,

    sunita(shanoo) said,
    July 19, 2007 at 10:49 pm

    सागर जी क्या पते की बात बताई है आपने मुझे तो इस संदर्भ में अभी तक कोई नही मिला…न ही जानकारी थी एसा भी होता है…आपका बहुत-बहुत शुक्रिया…लोग पैसा कमाने के ना जाने कितने तरिइके ढूँढ निकालते है….
    [:)]

    Mai hi hu jisne apne blog par adsense lagaya aur nahar ji se uspar click karne ke liye bhi kaha tha, logo ne apne apne dimaag ke hisaab se comment kiya, but i like u r comment very much and its true ki log paisa kamane ke liye Raste nikaal lete hai. thanx a bunch :-)

    ReplyDelete
  2. अच्छा लिखा है।

    ReplyDelete
  3. सुनिता जी अल्फाज भी कम है तारीफ के लिये ।

    ReplyDelete
  4. शानू जी,बढिया रचना है।

    प्यास जहाँ हो वतन की,
    वहाँ शीश नवाये जाते हैं,
    धरती माँ के मान की खातिर,
    सर कलम कराये जाते हैं
    आज़ादी की रहती किसको आस नही है
    है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है

    ReplyDelete
  5. Pyas ke itane aayam dekh aur pyase hogaye, jahan nahi dikhati thi vahan bhi dikhane lagi hai ab ye. kuch bhujhane pe bhi ho jaye ab. aap shabdo ko bahut accha bandhti hai.

    ReplyDelete
  6. बढिया है... बधाई..

    ReplyDelete
  7. है कौन यहॉं प्‍यास नहीं है
    कुछ पल के सुख की खातिर
    हर पल रूलाये जाते है

    निखरती जा रही है आपकी कविताऍं
    लिख डालों अब कुछ नई क्षणिकाऍं

    बहुत सुन्‍दर

    ReplyDelete
  8. है कौन यहाँ जिसे प्यास नही है
    जीने की किसे आस नही है॥


    --बहुत खूब. पसंद आयी यह रचना. बडा डूब कर लिखा है.

    ReplyDelete
  9. प्यास ही पूर्णता की ओर ले जाती है.हमारी अतृप्ति ही हमारे मुस्तक़बिल को तय करती है.ज़रूरी है प्यास...वरना पानी का वजूद ही बिसरा देंगे हम.जय श्रीकृष्ण.

    ReplyDelete
  10. विकास का नाम जिज्ञासा है और जिज्ञासा ही परम प्यास है… जीवन के प्रत्येक पहलु में यह तृष्णा बनकर विकास भी करता है और विनाश भी…
    अच्छी कविता है… लय है…प्यास की तरफ बहते हर कदम को उभारा है…।

    ReplyDelete
  11. वाह क्‍या पिरोया है भावों को एवं शव्‍दों को ।
    बधाई सुनीता जी, टिप्‍पणी के लिए शव्‍द बन नही पड रहे हैं ।

    बधाई !
    संजीव तिवारी का - आरंभ

    ReplyDelete
  12. मानव प्रकृति का सही एवं गंभीर चित्रण है यह -- शास्त्री जे सी फिलिप

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

    ReplyDelete
  13. ab kisi manch par sunaaye to log khub waah karege...
    sab kuch ek hi kavita me...

    Alag alag pyaas ko ek hi syaahi se likhna ek hi panne me...
    yahi iski achhaii bhi hai aur khami bhi...

    esa mujhe lagta hai.
    with love
    ..masto...

    ReplyDelete
  14. कविताए अच्छी है, भावपूर्ण भी...शायद आप कनाडा मे रहती है...www.vagarth.com पर जाकर पहले पेज के नीचे लिखे अक्तूबर ०४ तथा दिसम्बर ०५ क्लिक करिए.. मेरी कहानी जब वहा उजाला होता है... तथ... इतिवार गीत मिलेगी.. पढे, अच्छी लगेगी... पहली कहानी मे कनाडा का जिक्र है...

    ReplyDelete

स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य