क्यों आते है गम
हर रोज
जिन्दगी में
क्योंकि तुम बुलाते हो,
जिन्दगी में
क्योंकि तुम बुलाते हो,
मगर कैसे
कौन चाहेगा दुखी होना
गम से सराबोर जिन्दगी
किसे पसंद है
गम से सराबोर जिन्दगी
किसे पसंद है
मगर यही सच है
तुम्ही बुलाते हो
याद रखते हो हर पल
पिता का वो चाँटा
जो लगाया था तुम्हारी नादानियों पर,
या गुरू की वो फ़टकार
जो कभी लगाई थी तुम्हारी शैतानियों पर,
मगर भूल जाते हो,
पिता के दुलार को,
गुरू के आशीर्वाद को,
जो दिया था कभी
जो दिया था कभी
तुम्हारी हर कामयाबी पर,
हर कड़वी बात याद रहती है
अपने अज़ीज की तरह
सोचो
जिससे इतनी चाहत है
हर पल अहसास है जिसका
वो भला क्यों नही आयेंगे
वो भला क्यों नही आयेंगे
खड़े रहेंगे तुम्हारे दरवाजे पर
मेहमान बनकर
जब भी बुलाओगे
चले आयेंगे
आने का प्रयोजन
मै तुम्हारे हर पल साथ हूँ
तुम भी तो मुझे भूलते नही
खुशी के क्षणों में भी
तो मै बेवफ़ा कैसे हो सकता हूँ
जब भी बुलाओगे दौड़ा चला आऊँगा
तुम भी तो मुझे भूलते नही
खुशी के क्षणों में भी
तो मै बेवफ़ा कैसे हो सकता हूँ
जब भी बुलाओगे दौड़ा चला आऊँगा
और आना कैसा मै तो रहता हूँ
दिल में तुम्हारे
जरा गौर से देखो
गमों ने तुम्हारे दिल को छलनी कर दिया है
जैसे कि दीमक
मन की दिवारों को खा गई हो
आलस्य बढ़ता जाता है,
आलस्य बढ़ता जाता है,
चारों और बेचारगी ओर तनहाई का आलम है
ये सब मेरे मित्र है
जब भी आता हूँ
इन्हे भी साथ ही लाता हूँ
इतना बेगैरत नही हूँ
"जब बुलाते हो
तब ही आता हूँ"
सुनीता(शानू)
"हर कड़वी बात याद रहती है
ReplyDeleteअपने अज़ीज की तरह
सोचो
जिससे इतनी चाहत हैहर पल अहसास है जिसका
वो भला क्यों नही आयेंगे
खड़े रहेंगे तुम्हारे दरवाजे पर
मेहमान बनकर"
बडे सुन्दर भाव हैं, पूरी कविता एक बार में पढ गया और फ़िर कई बार पढी ।
गालिबजी कह गये हैं,
उल्मत कदे में मेरे शब-ओ-गम का जोश है,
इस शम्मा रह गयी है सो वो भी खामोश है ।
और एक जगह कहते हैं,
हुआ जब गम से यूँ बेहिस तो गम क्या सर के कटने का,
न होता गर जुदा तन से तो जानों पर पडा होता ।
आपने एक नये तरीके से व्याख्या दी है,
साधुवाद स्वीकार करें,
बहुत बढिया रचना।
ReplyDeleteइतना बेगैरत नही हूँ
ReplyDelete"जब बुलाते हो
तब ही आता हूँ"
---बस, गमों की यही हालत है और आपने बहुत खूब पकड़ा है. बहुत सुन्दरता से उनकी तबियत को चित्रित किया है. बधाई. लिखती रहें.
गम पर आधारित आपकी यह कविता पढ़कर मुझे यह गीत याद आ गया--" तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसे छिपा रहे हो"।
ReplyDeleteलगता है गहन चिंतन के बाद लिखी हैआपने यह रचना, इस शानदार अभिव्यक्ति के लिए बधाई!!
आभार!
गम, दुख कविता का स्थाई भाव है इसके साथ कविता अपने वास्तविक रूप में प्रकट होती है । आपका चित्रण जीवंत है । बधाई हो कविता के हर पहलुओं में सिद्धस्थता के लिए ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है दो लाईने ये भी देखिये,,ये मेरी है..:)
ReplyDeleteगजल में बंदिश-ओ-अलफाज ही नहीं काफी
जिगर का खून भी चाहिए कुछ असर के लिये
उम्र गुजरना ही जिन्दगी मे नही काफ़ी,
दिल मे कोई दर्द भी चहिये इस सफ़र के लिये
हर किसी को नही मिलती यहां खुशिया साकी,
शमा भी ढूढती है रात का आँचल यँहा जलने के लिये
जी बिल्कुल सटीक... अकसर हम दुखों को याद रखते हैं और सुखों को भूल जाते हैं... शायद छोटे छोटे खुशी के पलों का हम हिसाब ही नहीं रखना चाहते यही दुख का मूल कारण हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छे प्रकार से व्यक्त किया है आपने भावों को। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteगम ,दुःख का इतना संतुलित चित्रण करने के लिए आप की जितनी तारीफ की जाये कम है।
ReplyDeleteऔर यही जीवन है।
bahut khoob kaha apney
ReplyDeleteमगर यही सच है
तुम्ही बुलाते हो
याद रखते हो हर पल
पिता का वो चाँटा
जो लगाया था तुम्हारी नादानियों पर,
या गुरू की वो फ़टकार
जो कभी लगाई थी तुम्हारी शैतानियों पर,
मगर भूल जाते हो,
पिता के दुलार को,
गुरू के आशीर्वाद को,
जो दिया था कभी
तुम्हारी हर कामयाबी पर,
dil ko chu gayi apki yeh panktiyan
शानू जी,बहुत बढिया भावपूर्ण रचना है। बहुत सही कहा है-
ReplyDelete"हर कड़वी बात याद रहती है
अपने अज़ीज की तरह
सोचो
जिससे इतनी चाहत हैहर पल अहसास है जिसका
वो भला क्यों नही आयेंगे
खड़े रहेंगे तुम्हारे दरवाजे पर
मेहमान बनकर
जब भी बुलाओगे चले आयेंगेआने का प्रयोजनमै तुम्हारे हर पल साथ हूँ"
और आना कैसा मै तो रहता हूँ
ReplyDeleteदिल में तुम्हारे
जरा गौर से देखो
वाह कितनी खूबसूरती से गमों को जीने का अंदाज बयां किया है। बहुत बहुत बधाई । एक नया एहसास, नई विविधता आपकी कविता में देखने को मिली है। और नई उँचाइयॉं छूने की शुभकामना के साथ।
AAP NE SAHI KAHA HAI
ReplyDeleteAUR AANA KAISA MAI TO REHTA HU DIL ME TUMHARE YE BAAT SAHI HAI HUM AKSAR GUM KO DIL ME HAMESHA HI RAKHTE HAIN
ITS A VERY NICE POEM KEEP IT UP !!!!
वाह सुनीता जी!
ReplyDeleteआप तो दर्शन-साहित्य को भी काव्य में इतनी सहजता से पिरोती हैं कि वह भी सामान्य पाठकों के लिये सुग्राह्य हो जाता है.
बहुत ही सुंदर भाव और उतने ही सुंदर शब्द. बधाई स्वीकारें.
aacha laga yahaan phir se aakar....
ReplyDeleteaacha likha hai aapne....likhti rahiye...
मेरे अनुभव तो बहुत उलटे हैं आपसे । विशेषरूप से जो आपने उदाहरण लिये हैं। दीर्घकालिक सत्यता यह है कि गुरु का ज्ञान याद रहता है और पिता की पुचकार। क्षणिक अहसास आपका वाला हो सकता है।
ReplyDeleteहमेशा की तरह बेहतरीन चिंतनशील रचना…।
ReplyDeleteक्या हो शानू जी…दर्द ज्यादा जहाँ भी होता है वह लम्बे समय तक याद रह जाता है… तमाचा अगर धीमें लगायें तो फिर शोध हो…नहीं :)
मगर यही सच है
ReplyDeleteतुम्ही बुलाते हो
याद रखते हो हर पल
पिता का वो चाँटा
जो लगाया था तुम्हारी नादानियों पर,
या गुरू की वो फ़टकार
जो कभी लगाई थी तुम्हारी शैतानियों पर,
मगर भूल जाते हो,
पिता के दुलार को,
गुरू के आशीर्वाद को,
जो दिया था कभी
तुम्हारी हर कामयाबी पर,
हर कड़वी बात याद रहती है
अपने अज़ीज की तरह
सुनीता जी इस कविता के साथ आपकी कवितायी को एक नया आयाम मिल है .......एक अलग अंदाज़ एक अलग तरह कि अभिव्यक्ति
aapki kavita dil chu gayi.. kasak hei aapke sabdo mei.
ReplyDeleteKya aapko www.shayeri.net/board per invite karne ki ijaazat milegi?
Khushi hogi shayaro ki mehfil mei aap jaisi sakhsiyat ko dekh kar!
Sukhriya
padh kar laga ki ek jaise hi vicharo ne alag alag shabdo ka roop le liya ho...
ReplyDeletepar aapki kavita dil choo gayi