चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Saturday, July 28, 2007

एक अजनबी




चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा,
क्यूँ कोई दिल में आज मेरे धड़कने लगा…


किससे मिलने को बेचैन है चाँदनी,
क्यूँ मदहोश है दिल की ये रागिनी,
बनके बादल वफ़ा का बरसने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा



गुम हूँ मै गुमशुदा की तलाश में
खो गया दिल धड़कनो की आवाज़ में
ये कौन सांस बनके दिल में महकने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा



हर तरफ़ फ़िजाओं के हैं पहरे मगर,
दम निकलने न पायें जरा देखो इधर,
जिसकी आहट पर चाँद भी सँवरने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा



रात के आगोश में फ़ूल भी खामोश है
चुप है हर कली भँवरा भी मदहोश है
बन के आईना मुझमें वो सँवरने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा




ना मै जिन्दा हूँ ना मौत ही आयेगी
जब तलक न तेरी खबर ही आयेगी
बनके आँसू आँख से क्यूँ बहने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा




सुनीता(शानू)

13 comments:

  1. मनुष्य मन की भावनाओं का सशक्त एवं सचित्र वर्णन मालूम पडता है!

    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

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  2. बहुत भावपूर्ण रचना है।मनोभावों को बहुत संतुलित शब्दों मे संजोया है।

    ना मै जिन्दा हूँ ना मौत ही आयेगी
    जब तलक न तेरी खबर ही आयेगी
    बनके आँसू आँख से क्यूँ बहने लगा,
    एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा

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  3. प्रवाहपूर्ण एक भावनात्मक रचना. अच्छा लगा पढ़कर. बधाई.

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  4. बहुत ही भावुक व सशक्त् रचना है ये. इसे अनेक दृष्टिकोणों से देखा, पढा व महसूस किया जा सकता है. अच्छी रचना हेतु बधाई

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  5. रात के आगोश में फ़ूल भी खामोश है
    चुप है हर कली भँवरा भी मदहोश है
    बन के आईना मुझमें वो सँवरने लगा
    एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा

    अच्छी है कविता और फोटो दोनो!

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  6. इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई !

    और रंगबिरंगा अंदाज (आपके नाम का) बहुत पसंद आया।

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  7. इस कविता पर तो अपन ने पहले ही टिपिया दिया है ना जी !!
    पर एक बात है आजकल आप नए नए रंगों मे आ रही है क्या बात है!
    बढ़िया लिखा है आपने!

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  8. सुन्‍दर व दिल को छू लेने वाले भाव हैं फोटू भी सटीक लगाया है । कवि मन को बधाई हो ।

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  9. गुम हूँ मै गुमशुदा की तलाश में
    खो गया दिल धड़कनो की आवाज़ में
    ये कौन सांस बनके दिल में महकने लगा,
    एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
    सुनिता जी बहुत खूब लिखा है ।

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  10. अच्छे भाव पिरोये तुमने, और ध्यान थोड़ा सा यदि दो
    तो प्रवाह भी उत्तम होगा और गेयता श्रेष्ठ बनेगी
    भावों की फुलवारी में लय से जब तक न सिंचित होगी
    तब तक शब्दों की डाली पर कली गीत की नहीं खिलेगी

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  11. आपकी कविताएँ पढकर मेरा मन भी कविताएँ लिखने का कर रहा है,
    रचना में गांभीर्य है और डुबने को मन करता है उत्कृष्ट भावप्रवण कविता के लिये बधाई !

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  12. khubsurat....
    kavita khubsurat hai...flow bhi itana achha hai..ki gaayii jaa sakti hai...
    aur achhi aawaz me samaa.N bandh degi..ye kavita :-)

    esa mujhe lagta hai.

    with love
    ..masto...

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  13. ise qtaa-band ghazal kahte hain. ye ghazal kaa ek mushkil roop hotaa hai. aapne ismen likhaa ye prashansneey hai. bhaav achchhe hain, unmen saghantaa bhi hai. ship kee kamiyaan eemaandaar prayaason se door kee jaa saktee hain.
    anandkrishan, jabalpur
    mob.-9425800818

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य