चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Sunday, April 8, 2007

तुम कैसे हो



उषा कि आंखमिचोली से थक कर,
निशा के दामन से लिपट कर,
जब अहसास तुम्हारा होता है...
अविरल बहते आंसू मेरे
मुझसे पुछ्ते हैं
तुम कैसे हो?
श्यामल चादर ओढ बदन पर
,जो चार पहर मिलते हैं,
मेरे मन के ऐक कोने में,
तेरी आहट सुनते हैं...
डर-डर कर सांसे रुक जाती हैं
धड्कन मुझसे कह्ती है
तुम कैसे हो?
तन्हा रात के काले साये पर,
जब कोई पद्चाप उभरती,
खोई-खोई पथराई आखें...
राह तेरी जब तकती हैं
हर करवट पर मेरी आहें
मुझसे पुछती मुझसे पुछ्ती...
तुम कैसे हो?
सुनिता चोटीय़ा(शानू)

8 comments:

  1. वाह वाह, यहाँ देख कर बड़ा अच्छा लगा. नारद http://narad.akshargram.com/ पर रजिस्टर करवा लिया है? ताकि सारे चिट्ठाकारों को आपके ब्लाग का पता चले.

    -हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है. लिखती रहें.

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  2. जो मैं चाहता था, वो आपने कर लिया। मुझे कोई प्रयास भी नहीं करना पड़ा। बहुत खुशी हो रही है, ब्लॉगर पर देखकर।

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  3. बहुत सुंदर भाव हैं ...बधाई

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  4. दिन बीता दुनिया के झमेलो में
    अब तन्हा रात कोई कैसे बीताए
    हर आहट पर देखूं रास्ता तुम्हारा
    सजन तुम वादा करके भी ना आए !!

    रंजू


    बहुत सुंदर लिखा है आपने

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  5. तन्हा रात के काले साये पर,जब कोई पद्चाप उभरती,खोई-खोई पथराई आखें...राह तेरी जब तकती हैंहर करवट पर मेरी आहें मुझसे पुछती मुझसे पुछ्ती...तुम कैसे हो?
    waaha...
    bahuta sundara
    mana dravita ho gayaa
    shaanoo jee
    badhaaee

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  6. i like this poem, apki kavya rachna yahan par sakar hoti hai,
    agar aap bura na mane to ek gujarish hai ke aap apni kavitaon ko laybdh kijiyega, ye aur behtar aur gahri ho jayengi.

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  7. "उषा कि आंखमिचोली से थक कर,
    निशा के दामन से लिपट कर,
    जब अहसास तुम्हारा होता है...
    अविरल बहते आंसू मेरेमुझसे पुछ्ते हैं
    तुम कैसे हो?"
    aasuao ka puchana acchi abhivyakti hai, kuch alag sa hai

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  8. खुशी को व्‍यक्‍त करने को शब्‍द नहीं है। बहुत ही सुन्‍दर।

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य