उषा कि आंखमिचोली से थक कर,
निशा के दामन से लिपट कर,
जब अहसास तुम्हारा होता है...
अविरल बहते आंसू मेरे
मुझसे पुछ्ते हैं
तुम कैसे हो?
श्यामल चादर ओढ बदन पर
,जो चार पहर मिलते हैं,
मेरे मन के ऐक कोने में,
तेरी आहट सुनते हैं...
डर-डर कर सांसे रुक जाती हैं
धड्कन मुझसे कह्ती है
तुम कैसे हो?
तन्हा रात के काले साये पर,
जब कोई पद्चाप उभरती,
खोई-खोई पथराई आखें...
राह तेरी जब तकती हैं
हर करवट पर मेरी आहें
मुझसे पुछती मुझसे पुछ्ती...
तुम कैसे हो?
सुनिता चोटीय़ा(शानू)
वाह वाह, यहाँ देख कर बड़ा अच्छा लगा. नारद http://narad.akshargram.com/ पर रजिस्टर करवा लिया है? ताकि सारे चिट्ठाकारों को आपके ब्लाग का पता चले.
ReplyDelete-हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है. लिखती रहें.
जो मैं चाहता था, वो आपने कर लिया। मुझे कोई प्रयास भी नहीं करना पड़ा। बहुत खुशी हो रही है, ब्लॉगर पर देखकर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव हैं ...बधाई
ReplyDeleteदिन बीता दुनिया के झमेलो में
ReplyDeleteअब तन्हा रात कोई कैसे बीताए
हर आहट पर देखूं रास्ता तुम्हारा
सजन तुम वादा करके भी ना आए !!
रंजू
बहुत सुंदर लिखा है आपने
तन्हा रात के काले साये पर,जब कोई पद्चाप उभरती,खोई-खोई पथराई आखें...राह तेरी जब तकती हैंहर करवट पर मेरी आहें मुझसे पुछती मुझसे पुछ्ती...तुम कैसे हो?
ReplyDeletewaaha...
bahuta sundara
mana dravita ho gayaa
shaanoo jee
badhaaee
i like this poem, apki kavya rachna yahan par sakar hoti hai,
ReplyDeleteagar aap bura na mane to ek gujarish hai ke aap apni kavitaon ko laybdh kijiyega, ye aur behtar aur gahri ho jayengi.
"उषा कि आंखमिचोली से थक कर,
ReplyDeleteनिशा के दामन से लिपट कर,
जब अहसास तुम्हारा होता है...
अविरल बहते आंसू मेरेमुझसे पुछ्ते हैं
तुम कैसे हो?"
aasuao ka puchana acchi abhivyakti hai, kuch alag sa hai
खुशी को व्यक्त करने को शब्द नहीं है। बहुत ही सुन्दर।
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