चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Sunday, April 8, 2007

बच्चे ऒर उनकी परवरिश

फ़ैशन की मारी है ये दुनिया सारी,
देश भर में फ़ैली रहे चाहे बेकारी।

हमारी सभ्यता,संस्कृति,परम्पराएँ सारी,
सिसक रही है पहन के छः मीटर साड़ी।

आधा मीटर कपडा़ काफ़ी हो गया है,
अच्छा खासा लहंगा मिनी स्कर्ट हो गया है।

किसको दे ताने किस पर लगायें लांछ्न,
खुद हमसे उजड़ गया है आज हमारा आंगन।

न जाने कैसी चली है ये हवा...
फ़ैशन में गिरफ़्तार है हर एक जवां।

ऎश्वर्या जैसी चाल रितिक जैसे बाल,
चाहते है सारे आज माँ के ये लाल।

आज युवा पीढी दिशाहीन हो गई है,
स्वतंत्रता की आड़ में बेलगाम घोडे़ सी दौड़ रही है।

दौलत ऒर शौहरत पाने की चाह में,
खो गये है, नैतिक मूल्य न जाने किस राह में।

आदर संस्कार जो मिले थे विरासत में,
गंवा बैठे है सभी कुछ परिवर्तन की राह में।

माना कि परिवर्तन है प्रकृति का शाश्वत नियम,
परंतु आगे बढने की चाह ने तोङ दिये सारे संयम।

तुलसी,रहीम,गुरुनानक किताबों में दफ़न हो गये है,
पढना लिखना छोड कर सब फ़ैशन शो में चले है।

माँ से मम्मी, पिता से डैड हो गये है,
अच्छे खासे बच्चे भी आजकल मैड हो गये है।

इसके लिये शर्मिंदा है वे सारे लोग,
जो बिगङते बच्चों पर लगाते नही रोक।

अगर माता-पिता की परवरिश हो अच्छी,
तो कैसे बिगङेगी बच्चो की ये उम्र कच्ची।

कुछ नही कर सकते ये सिनेमां-दूरदर्शन,
अगर बच्चो को मिले घर में थोरा सा मार्गदर्शन।

सुनिता (शानू)

3 comments:

  1. बढि़या है! आपका स्वागत है ब्लाग जगत में!

    ReplyDelete
  2. माँ से मम्मी, पिता से डैड हो गये है,
    अच्छे खासे बच्चे भी आजकल मैड हो गये है।

    बहुत सुंदर ....बधाई

    ReplyDelete
  3. सुनीता, बात ये है कि बहुत से मां बाप मंहगाई का शिकार हो गए हैं, और परवरिश से ज़्यादा कमाई के फ़ेर में पड़ गए है, बहरहाल, एक बहुत ही संवेदनशील विषय को कविता में बांधा..बहुत बधाई
    -रेणू आहूजा.

    ReplyDelete

स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य