चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Sunday, March 2, 2014

एक हॉस्य कविता



जब से सिमट गया है
सारा घर मोबाइल में
इमोशन खो गये हैं 
व्वाट्स अप की स्माइल में
बच्चे सामने आने से 
कतराते हैं
अब बस मोबाइल पर ही
बतियाते हैं
पहले यदा-कदा
प्यार भरे दो बोल 
कह दिया करते थे
डाल गले में बाहें
झूल लिया करते थे
अब तो मोबाइल पर ही
मुस्कुराते हैं
टाटा बाय-बाय
हाथ हिलाते है
बस लव यू मम्मा
कह पाते हैं....
शानू

8 comments:

  1. ओह - आप इसे हास्य कविता कहती हैं :-(

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  2. हा हा हा हा ……… हँसना जरुरी है

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  3. प्यार के नियम कड़े हो गए हैं ,
    बच्चे अब कहीं बड़े हो गए हैं !

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  4. इतनी गंभीरता इस हास्य में …

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  5. बहुत ही बेहतरीन रचना...
    लाजवाब....
    :-)

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  6. आजकल भावनाएं भी इलेक्ट्रोनिक हो गयी है

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य