आज बहुत तेज़ बारीश आई बस यूँही लिख डाला एक पैगाम उस आवारा बादल के नाम जो एक हवा के झोंके से कहीं भी बरस जाता है... |
गुगल से साभार |
बहुत दिनों से
घुटन सी
घिर आई थी
कली-कली भी
कुम्हलाई थी
प्यास कोई एक
भटक रही थी
धरती सी
बिन पानी के तड़प रही थी
रुकी-रुकी सी सांसों ने
आधी-अधूरी बातों ने
जाने क्या समझाया
कि
न वादा तोड़ा न साथ चला
बस खामोशी से बरस गया...
शानू
आपकी लिखी रचना की
ReplyDeleteबहुत दिनों से
घुटन सी
घिर आई थी
कली-कली भी
कुम्हलाई थी
ये पंक्तियाँ लिंक सहित
शनिवार 28/09/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनई पोस्ट साधू या शैतान
latest post कानून और दंड
वादे पर कायम रहा ,यही जरुरी था |
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है
ReplyDelete