चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Thursday, September 26, 2013

खामोशी से बरस गया

आज बहुत तेज़ बारीश आई बस यूँही लिख डाला एक पैगाम  उस आवारा बादल के नाम जो एक हवा के झोंके से कहीं भी बरस जाता है...


गुगल से साभार





बहुत दिनों से
घुटन सी
घिर आई थी
कली-कली भी
कुम्हलाई थी
प्यास कोई एक
भटक रही थी
धरती सी
बिन पानी के तड़प  रही थी
रुकी-रुकी सी सांसों ने
आधी-अधूरी बातों ने
जाने क्या समझाया
कि
न वादा तोड़ा न साथ चला
बस खामोशी से बरस गया...
शानू

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना की
    बहुत दिनों से
    घुटन सी
    घिर आई थी
    कली-कली भी
    कुम्हलाई थी
    ये पंक्तियाँ लिंक सहित
    शनिवार 28/09/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

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  2. वादे पर कायम रहा ,यही जरुरी था |

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  3. बहुत अच्छी रचना है

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य