चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Saturday, September 21, 2013

फिर आई एक याद पुरानी...

ये वो कविता है जिसे हिन्दी के अक्षरों में लिखने में बहुत समय लग गया था। मै देवनागरी से परीचित नही थी और बहुत मुश्किल से सुषा फोंट्स का जुगाड़ कर लिख पाई थी। इसके बाद कृति देव और अब बराहा देवनागरी :) बहुत ही आसान हो गया है हिन्दी लिखना...बहुता पुरानी कविता है जिसे पुराने ई कविता ग्रुप के लोगों ने पढ़ा और सराहा भी था... तथा कमिया भी बताई थी।



Ref :-102_sunita         DATE_05.08.2006

ना जाने क्या हो जाता है ...

ना जाने क्या हो जाता है...आती है जब याद तेरी...
दिल खो जाता है... जाने क्या हो जाता है...

तनहा-तनहा दिन कटते हैं, तनहा-तनहा राते है ;
तनहा-तनहा मन है मेरा... तनहाई मे बातें हैं ।
तेरे आने की खुशी में...जाने कब वक्त कट जाता है
जाने क्या हो जाता है,

जबसे तुझसे लगन लगी है...एक तस्वीर बसी है मन में,
रातों में तेरे सपने हैं...एक हुक जगी है तन में।
तुझको पाने की चाहत में...दिल बाग-बाग हो जाता है
जाने क्या हो जाता है...

कल मुलाकात हुई तुमसे तो...दिल को कोई होश नही है
तन-मन मेरा  ऎसे डोले,..आंखें भी खामोश नही हैं।
बेचैनी बड. जाने से...दिल को रोग लग जाता है।
जाने क्या हो जाता है...

...गर है मरहम कोई तो...इस दिल को आज दवा देदो,
मायूस ना हो जाये ...दिल में थोङी जगह देदों।
मिल जाने दो दिल को दिल से...दिल आज मेहरबां हो जाता है,
ना जाने क्या हो जाता है...

सुनीता चोटिया   
 (सुनीता शानू)


13 comments:

  1. भंते को यह पढ़ना नहीं आया.
    शायद कंप्‍यूटर पि‍छड़ा हुआ है या फि‍र फ़ॉंट नदारद.
    बहुत फ़ोटो बहुत अच्‍छी है जी :)

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  2. ना जाने क्या हो जाता है ...
    ना जाने क्या हो जाता है...आती है जब याद तेरी...
    दिल खो जाता है... जाने क्या हो जाता है...

    तनहा-तनहा दिन कटते हैं, तनहा-तनहा राते है ;
    तनहा-तनहा मन है मेरा... तनहाई मे बातें हैं ।
    तेरे आने की खुशी मंे...जाने कब वक्त कट जाता है
    जाने क्या हो जाता है,

    जबसे तुझसे लगन लगी है...एक तस्वीर बसी है मन में,
    रातों में तेरे सपने हैं...एक हुक जगी है तन में।
    तुझे पाने की चाहत में...दिल बाग-बाग हो जाता है
    जाने क्या हो जाता है...

    कल मुलाकात हुई तुमसे तो...दिल को कोई होश नही है
    तन-मन मेरा एसे डोले,..आंखें भी खामोश नही हैं।
    बेचैनी बड. जाने से...दिल को रोग लग जाता है।
    जाने क्या हो जाता है...

    ...गर है मरहम कोई तो...इस दिल को कोई दवा देदो,
    मायूस ना हो जाये ये...दिल में थोङी जगह देदों।
    मिल जाने दो दिल को दिल से...दिल आज मेहरबां हो जाता है,
    ना जाने क्या हो जाता है...

    सुनीता चोटिया

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    Replies
    1. धन्यवाद विनोद जी मैने पुराने फ़ोन्ट्स में ही जस का तस पोस्ट कर दिया था मेरे कंप्यूटर में दिखाई दे रहे थे...

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  3. तरुणाई भरी सुन्दर कविता और फोटो ।

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  4. सादगी से सुन्दर कुछ भी नहीं. आपके सीधे सच्चे शब्द और हृदय से निकली संगीतमय पंक्तिया किसी शास्त्रीय विवेचना से बहुत ऊपर है, क्यूकी ये स्वतः स्फूर्त है. आपने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम जो चुना है वही बड़े बडो से भी नहीं हो पाता है, क्युकि इसे पढ़ कर जाने क्या हो जाता है.

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  5. “अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
    -खूबसूरत लेखन |
    सच्चे मन से अभिव्यक्ति |

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  6. मन से लिखी रचना है।

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  7. जब सामने तुम आजते हो क्या जानिए क्या हो जाता है कुछ मिल जाता है कुछ खो जाता है क्या जानिए क्या हो जाता है...:) आज जाने क्यूँ आपकी यह पोस्ट पढ़कर यह गीत याद आगया सुंदर भावभिव्यक्ति ...

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  8. बहुत ही प्यारी रचना...
    सुन्दर
    :-)

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  9. सलाम। बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आया हूं। व्यस्तताओं और उलझनों में फंसा मन आपकी कविता में इस कदर उलझ गया कि खुद को भूल गया। बहुत ही अच्छी कविता। बधाई।

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य