कल बड़े दिन की खुशी में हम भूल गये उन सड़क किनारे के बच्चों को जिनके आगे से न जाने कितने सांता गाड़ियों में आये और रेड लाईट से होकर गुजर गये। उसी एक वाकये पर यह कविता लिखी है...देखिये जरा...
तेरी किस्मत बाबू
थोड़ा सा दे दो..
मेरी क्रिसमस...
नही… तेरी किस्मत
नही बच्ची कहो मेरी क्रिसमस
मगर कैसे कहे वो मेरी क्रिसमस
सान्ता आया था
गाड़ी में बैठ कर
कभी इस नेता के घर
कभी उस अभिनेता के घर
गाड़ी के शीशे पर गंदले हाथों से
थाप देती रही
मांगती रही वो बच्ची
कहती रही
बाबू आज तेरी किस्मत है
मुझे भी दे दो थोड़ा सा कुछ
मगर फ़ुर्सत नही
उस सांता बने बाबू को
इतना भरा था थोली में
लेकिन नही आता था नज़र
थोड़ा सा
झोली के किसी कौने में भी...:(
सुनीता शानू
very good presention
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (27-12-13) को "जवानी में थकने लगी जिन्दगी है" (चर्चा मंच : अंक-1474) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ahsas hain ye....apni kismat ka mila bhi agar thoda sa baant len ...kya harz hai ....kisi man ko gar thodi khushi de den...
ReplyDeleteशांता का भी एक क्लास है ...गिफ्ट तो उसी क्लास में दिया जायेगा !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !