चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Sunday, May 26, 2013

मन पखेरु उड़ चला फिर काव्य-संग्रह के लोकार्पण पर एक विशेष रिपोर्ट... (1)


“मन पखेरु उड़ चला फिर” मेरी इकलौती पुस्तक का एक बार नही दो बार विमोचन हुआ। बहुत ही निराली बात है दोस्तों लेकिन मुझ जैसे निराले लोगों से आप उम्मीद कर ही क्या सकते थे?
 

अब बात आती है बहुत सारी बातों की कि रिपोर्ट छप गई समीक्षाऎं हो गई। यानि की जो होना था हो चुका अब खबर बासी हुई। तो मन पखेरु पर ताज़ा क्यों लगी। तो भैया हमें तो आदत है बाल की खाल उधेड़ने की जब तक सारी बातें साफ़ न हो जाये चैन कैसे आये...
  ये 27 अप्रैल का दिन था जब राजस्थान पिलानी में मन पखेरु का लोकार्पण हुआ। आदरणीय गुरुजी केसरी कान्त जी शर्मा के द्वारा दीप प्रज्जवलन के साथ ही कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।
 
 
पिलानी में लोकार्पण करवाने का एक ही मकसद था मै पिलानी में जन्मी हूँ मेरे माता-पिता पिलानी में है मेरे गुरु श्री केसरी कान्त जी शर्मा भी पिलानी के पास एक जगह है मंडावा वही रहते हैं जो राजस्थान के एक बहुत बड़े लेखक है जिन्होनें अनेक किताबें लिखी है राजस्थानी में अनुवाद किये हैं।
 

दोस्तों इस दिन मेरे माता-पिता की शादी की तरेपन्नवी सालगिरह भी मनाई गई थी। मेरे लिये ये क्षण किसी उत्सव से कम नही थे। जब आप मेरी पुस्तक मन पखेरु पढेंगे तो जान पायेंगे मेरे माता-पिता की मेरे अपनों की मेरी ज़िंदगी में क्या भूमिका रही है। खैर इस आयोजन में मन पखेरु पर सभी जाने-माने विद्वजनों ने अपनी बात रखी। इस अवसर पर मैने अपनी सबसे प्रथम क्लास टीचर तारा नौवाल मैडम को शाल भेँट कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया।
 

अन्त में काव्य-गौष्ठी तथा भोजन के साथ ही कार्यक्रम का समापन कर दिया गया।
 

अब बात आती है नया क्या था, नया था... पिलानी में कार्यक्रम करना  जहां से बाईस साल पहले मै दिल्ली आ गई थी|  वहाँ कार्यक्रम कैसे और किस प्रकार से किया जायेगा। पिलानी में सभी मुझे लेखिका तथा कवयित्री सुनीता शानू के नाम से जानते थे। कुछ लोग ही जानते थे कि मै पिलानी  की ही बेटी हूँ और उस दिन सबके सामने ये बात उजागर भी हो गई। पिलानी  में एक इंसान ने शुरु से आखिर तक बहुत मदद की  वो है संजय शर्मा... मरुपन्ना का सम्पादक।
 
 
 लेकिन उसमें एक खास  बात  है कि वह  कब किस समय किस बात पर नाराज हो जाये मालूम नही। तो दोस्तों मुझसे भी वो ऎसे समय पर नाराज़ हो गया जब प्रोग्राम में कुछ ही दिन रह गये थे।  मुझे समझ नही आया कि क्या किया जाये। प्रोग्राम तो होना ही था मगर वो इंसान जो शुरु से साथ था अचानक गुस्सा हो जाये और प्रोग्राम में नज़र ही न आये अज़ीब सी बात थी। सबसे बड़ी बात मै रिश्ते में उसकी मामी भी लगती हूँ भला कैसे छोड़ देती उसे उसकी जिद के साथ। सो जाकर उसे मनाया और सचमुच वो भी बच्चों की तरह मान गया। रिश्ते कितने प्यारे अपने से होते हैं जब हम ज़िंदगी में रिश्तों की अहमियत को समझते हैं।


ऎसे ही दोस्ती के रिश्ते में बँधे पिलानी तक चले आये मेरे कुछ दोस्त जिनमें सबसे पहले नम्बर पर पहुंचे संतोष त्रिवेदी जी ( जिन्हें बात-बात पर महाराज कहने की आदत है)
 
 
इसके साथ ही शैलेश , पवन जी, और बच्चे भी पहुंच गये।
 
 
 
और अंत में ज्योतिर्मय जी भी अपना आशीर्वाद देनें पहुंच गये।
 
 
 
 छोटे से शहर पिलानी में कवियों और श्रोताओं का जमावड़ा इस कदर हुआ दोस्तों की भीड देख कर आँखें भर आई। मै दिल से शुक्रगुजार हूँ अपनी पिलानी की जिसने मन पखेरुं को उड़ने के लिये पख दिये और उसकी उड़ान को अपना आशीर्वाद दिया।

इस तरह मन पखेरु के विमोचन का पहला पड़ाव खत्म हुआ...
 
इंतजार कीजिये अगले पड़ाव का...
शुभ-रात्री
शानू

 

12 comments:

  1. ...आपकी कविताओं का असर अब किताब से निकलकर माहौल में तारी हो चुका है।
    आपका साहित्य के प्रति इत्ता समर्पण आह्लादित करता है।
    .
    .
    हम आपके आतिथेय से लहालोट हो गए महराज :)

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  2. काव्य संग्रह के लोकार्पण पर हार्दिक बधाई शुभकामनाएं ....

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  3. हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ...

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  4. "मन पखेरु उड़ चला फिर" काव्य-संग्रह के लोकार्पण पर बहुत बहुत बधाई!
    सब लोगों के बीच बहुत अच्छा लगता है जब मन की कोई मुराद पूरी होती हैं ...

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  5. बहुत बहुत बधाई। पिलानी में कार्यक्रम रखना सही निर्णय रहा।

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  6. हर वर्ष नए किताब के विमोचन की आशा के साथ शुभकामनाएं

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  7. आपकी यह रचना कल मंगलवार (28 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  8. बहुत बहुत बधाई।

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  9. बहुत - बहुत बधाई और शुभकामनायें |

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य