चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Tuesday, February 12, 2013

तुम यहीं कहीं हो पास मेरे



यादों की स्याही से लिखा था
जो खत तुमने
हर शब्द चूमा है
अधरों ने
तुम्हें याद कर
कि जैसे उभर आई हो
तस्वीर तुम्हारी

इन शब्दों में
तुम दूर हो मुझसे
यह कह भी दिया
किसने तुम्हें
साँसों का कहना है
कि ये
तुमसे होकर
समा जाती है
मुझमें

जब भी उठती है सीने में
एक लहर-सी
तुम आते हो
और हाथ अपना रख
कर देते हो
चुप उसे

हर सिहरन का होना भी
अहसास दिलाता है
कि तुम यहीं कहीं हो
पास मेरे।
शानू (मन पखेरु उड़ चला फिर काव्य-संग्रह से)

12 comments:

  1. सुंदर एहसास सुनीता जी ....
    बहुत सुंदर रचना ...

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  2. बहुत प्यारे कोमल से एहसास ...

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  3. बहुत सुंदर...हृदयस्पर्शी ....

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  4. प्रेम का भीना सा एहसास लिए ... कोमल भाव लिए ...
    सुन्दर रचना ...

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  5. बहुत सुन्दर....
    कुछ अपने से एहसास...

    अनु

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  6. क्या बात है ...प्यार का एक अलग ही अंदाज़ ...बहुत खूब

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  7. बहुत खूसूरत, कोमल एहसास ... दिल को छूता हुआ निकल गया...
    ~सादर!!!

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  8. रोमांटिक रचना | बेहद प्रभावी और खूबसूरत शब्द | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  9. क्या खूब कहा आपने या शब्द दिए है
    आपकी उम्दा प्रस्तुती
    मेरी नई रचना
    प्रेमविरह
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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  10. आज 19/02/2013 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य