वाकई सुनिता जी,आँखों की भाषा भी बडी अजीब है-बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह देती हैं,शर्त ये है कि उन आँखों को देखने वाली आँखें भी वह भाषा समझती हों! सारगर्भित रचना ।
ये तो सच है देखने वाले की आँखें भी समझती हों...लेकिन एक और बड़ा सच है कविता सिर्फ़ कल्पना ही नही होती कुछ होता है तो कविता बनती है तो समझिये कि भाषा समझने वाला भी है उन्ही पर लिखी है ये पंक्तियाँ :)
और क्या क्या कहती है ये आँखे :)
ReplyDeleteखुद ही समझ लो अंजू जी :)
Deleteकिसकी हैं ये आखें, बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें!
ReplyDeleteसुनीता जी की ही लगती हैं।
Deleteशुक्रिया डॉ साहब दोस्त हैं तो पहचान ही लेंगे... :) अज़नबी की तरह सवाल तो न होंगे :)
Deleteअरविंद जी पहचानने की कोशिश कीजिये...अरे हाँ आपका चश्मा कहाँ है? :)
तस्वीर से झर रहा है यह मुक्तक।
ReplyDeleteउम्दा। .
दिल का राज खोलने लगती है,
ReplyDeleteनिगाहें जबभी बोलने लगती हैं।
उम्दा शानू जी !
क्या बात है शुक्रिया गोदियाल साहब।
Deleteबहुत ही प्यारी बात कही है आपने ...
ReplyDeleteबहुत खूब।।
:-)
शुक्रिया रीना जी।
Deleteवाकई सुनिता जी,आँखों की भाषा भी बडी अजीब है-बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह देती हैं,शर्त ये है कि उन आँखों को देखने वाली आँखें भी वह भाषा समझती हों! सारगर्भित रचना ।
ReplyDeleteये तो सच है देखने वाले की आँखें भी समझती हों...लेकिन एक और बड़ा सच है कविता सिर्फ़ कल्पना ही नही होती कुछ होता है तो कविता बनती है तो समझिये कि भाषा समझने वाला भी है उन्ही पर लिखी है ये पंक्तियाँ :)
Deleteखामोश आँखें बहुत कुछ कहती हैं ...
ReplyDeleteजी रश्मि जी :)
Deleteआँखें बहुत कुछ बोलती हैं ....
ReplyDeleteजी हाँ आँखें दिल की जुबाँ होती हैं...
ReplyDeleteबहुत भावनात्मक अभिव्यक्ति कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
ReplyDeleteशुभकामनायें !!
ReplyDeleteबोलती आंखें, गुनगुनाती आंखें, बिना होंठों के फुसफुसाती आंखें,
ReplyDeleteआखों की भाषा है अलग ,
बिना भाषा के नयी परिभाषा हैं आंखें..
बेहतरीन ...
वाह .... बहुत खूब .... आज कल कहाँ हैं आप ?
ReplyDeletebahot achche.....
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