माँ आज फिर ’तुम’
याद आने लगी हो
कई सालों से
’वो आँचल’ जिसकी ओट में
खेलती थी छुपछुपाई
वो आँचल जिसके कौने से
पोंछती थी तुम मेरे आँसू
उसी आँचल की छाँव में
बसता था मेरा नन्हा संसार
कई बार
तुमसे डाँट खा कर
छुपा लेता था वही आँचल
माँ आज फिर तुम
बहुत याद आने लगी हो
आज फिर जरूरत है
तुम्हारी गोद की…
तुम्हे याद है न
रात को अचानक
किसी बात से डर कर
मेरा चौंक कर उठना
और तुम्हारे सीने से लिपट
सो जाना
जैसे कुछ हुआ ही नही
आज फिर जरूरत है माँ
तुम्हारी
मेरे चारों तरफ
बुन गया है भयानक
मकड़जाल
और मेरी साँसे घुटने लगी हैं
शायद अब मै चौंक कर उठने वाली हूँ
लेकिन ऎ माँ अब कौन सुलायेगा
फिर से मुझे?
ऎ माँ आ जाओ एक बार
कई दिनों से
’मै’
सोई नही हूँ…
अच्छॆ भाव
ReplyDeleteअच्छी कविता
बहुत मार्मिक।
ReplyDeleteमाँ का कोई विकल्प भी तो नहीं होता।
माँ .........
ReplyDeleteकोई और उसकी जगह कहाँ ले सकता है भला?
~सादर!!!
बाद मुद्दत के मयसर हुआ मां का आँचल
ReplyDeleteबाद मुद्दत के हमें नींद सुहानी आई ।
मां तो आखिर मां ही हैं ........
बहुत अच्छी कविता :)
ReplyDeleteआज तलक वह मद्धम स्वर
ReplyDeleteकुछ याद दिलाये, कानों में !
मीठी मीठी धुन लोरी की ,
आज भी आये , कानों में !
आज मुझे जब नींद न आये, कौन सुनाये आ के गीत ?
काश कहीं से, मना के लायें, मेरी माँ को , मेरे गीत !
माँ का कोई विकल्प नहीं .... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमन को छूते भाव ....माँ तो माँ ही होती है
ReplyDeleteमाँ!
ReplyDeleteबस स्मृतियाँ हैं ,जो मन को सिक्त कर देती हैं.अब तो वे घर भी नहीं बचे जहाँ माँ की छाँह मिली थी
सच में माँ रब की तरफ से बहुत बड़ा तोहफा है इंसानियत के लिए।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है सुनीता जी!
क्या कहूँ... वैसी नीद तो अब नसीब नहीं.
ReplyDeletemaa ka aanchal, nind aa hi jaye.....
ReplyDeleteगया वक्त कहां लौटता है
ReplyDeleteमाँ की भावभीनी स्मृतियों में भीगी बहुत ही प्यारी रचना ! गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !
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