ये वो कविता है जो हर दिल की आवाज़ है इस कविता को मैने पढ़ा। मै मलाला और उसके पिता की बहादुरी को सलाम करती हूँ...और साथ ही हिंदुस्तान के वरिष्ठ सम्पादक प्रताप सोमवंशी जी को धन्यवाद करती हूँ...
ये वो कविता है जो हर दिल की आवाज़ है इस कविता को मैने पढ़ा। मै मलाला और उसके पिता की बहादुरी को सलाम करती हूँ...और साथ ही हिंदुस्तान के वरिष्ठ सम्पादक प्रताप सोमवंशी जी को धन्यवाद करती हूँ...
आप सब भी पढ़े...
ये वो कविता है जो हर दिल की आवाज़ है इस कविता को मैने पढ़ा। मै मलाला और उसके पिता की बहादुरी को सलाम करती हूँ...और साथ ही हिंदुस्तान के वरिष्ठ सम्पादक प्रताप सोमवंशी जी को धन्यवाद करती हूँ...
आप सब भी पढ़े...
ये कैसा पिता
है जियाउद्दीन युसफजई
*(पाकिस्तान
की स्वातघाटी का
एक शिक्षक जो
उस 14 साल की
लड़की मलाला का
पिता है, जिसपर
तालिबानियों ने स्कूल
छोड़ने का फरमान
न मानने के
विरोध में जानलेवा
हमला किया था)
----
कौन है ये
जियाउद्दीन युसुफजई
क्या चाहता है
जब पूरी स्वात
घाटी बंद कर
लेती है किवाड़े
तालिबानियों
की दशहत से
लोग दुबके जाते हैं
घरों में
एक फरमान की बेटियां
गई स्कूल
तो फेंक दिया
जाएगा उनके चेहरे
पर तेजाब
माएं आंचल में
छुपा लेती हैं
बेटियां
लेकिन ठीक इसी
वक्त एक शिक्षक
जियाउद्दीन युसुफजई
बो रहा होता
है अपनी बेटी
मलाला में हिम्मत
के बीज
इस उम्मीद के साथ
कि जब ये
बीज पौधा फिर
पेड़ बनेगा
तब आएंगे फल और
बंजर नहीं कही
जाएगी स्वात घाटी
स्वात घाटी का
मशहूर कवि जियाउद्दीन
युसुफजई
अपनी बेटी के
हाथ में रखता
है रवींद्रनाथ टैगोर
की किताब
समझाता है एकला
चलो रे का
सबक
बेटी मलाला निकल पड़ती
है स्कूल के
लिए
उस वक्त भी
जब सड़को पर
साथ होती है
सिर्फ दहशत
टेलीविजन के कैमरों
के सामने निडर
मलाला
पूछ रही होती
है सवाल कि
क्यों नहीं जा
सकती है वह
स्कूल
कौन सा मजहब
इजाजत देता है
कि बेटियां स्कूल जाएं
तो उन पर
फेंक दिया जाए
तेजाब
बरसाए जाएं कोड़े,
मार जी जाएं
गोलियां
गर्व से छाती
फुला रहा होता
है कवि
जियाउद्दीन
युसुफजई
ये वो क्षण
हैं जब वो
कविता लिख नहीं
जी रहा होता
है घाटी की
सड़को पर
बेटी मलाला बनना चाहती
है डाक्टर
पिता चाहता है कि
वह बनें सियासतदां
और करे लोगों
में छिपे डर
का इलाज
ताकि बेटियां वो बन
सकें जो बनना
चाहती हैं
न कि किसी
मलाला नाम के
डाक्टर को
किसी दहशतगर्द के तेजाब
से डरना पड़े
बेटी मलाला के सिर
पर हाथ रखे
हिमालय की तरह
खड़ा है जियाउद्दीन
युसुफजई
दहशतगर्दों
को इस जवाबी
ऐलान के साथ
कि
वो न घाटी
छोड़ेगा न मलाला
स्कूल
क्योंकि अब डरने
की बारी तुम्हारी
है
-प्रताप सोमवंशी
जियाउद्दीन युसुफजई और मलाला को मेरा सलाम
ReplyDeleteकुछ अलग ही होते हैं ये जिगर वाले...सलाम.
ReplyDeleteएक ज्वलंत प्रश्न लिए कविता ...दर्द और बेबसी की कहानी
ReplyDeletewonderful..
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 29/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDelete
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24-01-2013 को यहाँ भी है
....
बंद करके मैंने जुगनुओं को .... वो सीख चुकी है जीना ..... आज की हलचल में..... संगीता स्वरूप
.. ....संगीता स्वरूप
. .
मलाला की कहानी एक इन्कलाब है .. और उनके पिता के लिए कहे शब्द एक अलग ही दृष्टिकोण देते हैं .. सार्थक रचना।
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
पिता ऐसे ही होना चाहिए
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको ...
बहुत अच्छे! गर्व होता है ऐसी बेटी और पिता पर !
ReplyDelete~सादर!!!
मन को हौसला देते शब्द.......।
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... इस रचना को यहाँ सांझा करने के लिए आभार
ReplyDelete