चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Wednesday, September 12, 2012

कविताई होती भी नही आजकल

नन्हा अक्षु



हर बात तुमसे कही नही जाती
कविताई होती भी नही आजकल
किसी की प्यारी बातों ने 
बाँधा है कुछ इस कदर 
कि न चाह कर भी लिख बैठी हूँ
कुछ शब्द कागज़ पर बस
हर बात तुमसे कही नही जाती
कविताई होती भी नही आजकल…

साफ़गोई इतनी अच्छी तो नही
मगर पाकिजा सी तेरी मूरत 
टकटकी लगाये निहारती
मोह सा जगा देती है मुझमें 
कि न चाह कर भी लिख बैठी हूँ मै
कुछ शब्द कागज पर बस. 
हर बात तुमसे कही नही जाती
कविताई होती भी नही आजकल

शानू

14 comments:

  1. न चाह कर भी लिख बैठी हूँ मै
    कुछ शब्द कागज पर बस.
    हर बात तुमसे कही नही जाती
    नाजुक से अहसास मासूम़ से शब्‍द
    ..

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  2. आहा ..मीठी मीठी ..

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  3. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .

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  4. ...........मीठी मीठी सुंदर रचना के लिए आपको बधाई

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  5. न चाह कर भी लिख बैठी हैं जो - असली कविता वही है शानू जी !

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  6. इतनी मासूमियत,स्नेह का पारदर्शी रूप- कागज पर नहीं उतर पाते

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  7. प्रेम अपने आप कुछ न कुछ करा देता है ...
    मासूमियत भरा अंदाज़ लिए रचना ..

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  8. यही तो कविताई है ...सुंदर भाव

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  9. भाषा सरल,सहज यह कविता,
    भावाव्यक्ति है अति सुन्दर।
    यह सच है सबके यौवन में,
    ऐसी कविता सबके अन्दर।

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  10. नहीं बनाई जा सके , कविता खुद बन जाय
    कागज पर उतरे नहीं,मन से मन तक जाय
    मन से मन तक जाय ,वही कविता कहलाये
    अनायास उत्पन्न , ह्र्दय का हाल बताये
    युग - परिवर्तन करे , सत्य शाश्वत सच्चाई
    कविता खुद बन जाय , जा सके नहीं बनाई ||

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  11. वाह, कविताई करती भी हो और कहती हो कि होती नहीं!
    घुघूती बासूती

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  12. आपकी कविता मे एक महक सी होती है जो दूर दूर तक बिखर कर मन मोह लेती है

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य