चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Tuesday, May 1, 2012

सेवा सम्पादक

गुगल से साभार तस्वीर बच्चे की ही मिल पाई :)







मुझे देख कर वो मुस्कुराता है
पानी रख धीरे से पूछता है
चाय?
मै भी उसकी मुस्कुराहट की
अभ्यस्त सी हो चली हूँ
मुझे भी इंतजार रहता है कि
अब वो मुस्कुरायेगा
चाय या कॉफ़ी कुछ कुछ
कहेगा अवश्य
मेरी हाँ सुनकर
वह एक बार फिर मुस्कुराता है
सैंडविच या कुछ औरले आऊँ
अटक-अटक कर कुछ शब्द
फ़ूटते है उसके मुह से
और मै ना चाहते हुए भी कह देती हूँ
नही बस चाय।
स्निग्ध कोमल सी मुस्कुराहट
चेहरे पर चस्पाये
चल देता है वो बाहर
कभी-कभी लगता है
कितना आवश्यक है
उसका होना
एक भी दिन उसका आना
मेरी सोच से परे होगा
हाँ शायद-
कुछ प्यास लगी है
चाय मिल जाती अगर
साथ सैंडविच चलेगी
कुछ खाया भी नही सुबह
आवाज लगाती हूँ
श्याम
ओह्ह सॉरी आज वह छुट्टी पर है J

19 comments:

  1. मजदूर दिवस पर बाल मजदूर पर भावपूर्ण सामयिक प्रस्तुति... आभार

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  2. ओह ओह ..बेहद भावुक ..एक संवेदनशील दिल से निकली आवाज.

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  3. बेहद खूबसूरती से बयान की आपने 'बाल श्रमिक' की संवेदना को

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  4. भावपूर्ण ...... मर्मस्पर्शी

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  5. आज के दिन के मुताबिक ...सार पूर्ण अभिव्यक्ति

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  6. उसके बगैर हमारी ज़िन्दगी की गाड़ी खिसकती नहीं। बेचारा कुछ सुस्ता ले ..

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  7. रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में हर व्यक्ति का इतना महत्त्व होता है,चाहे वाला हो या काम वाली बाई ,उनके बिना कुछ अधूरा सा लगता है ...उनका महत्त्व ही नहीं उनका सम्मान भी ज़रूरी है

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  8. अच्छे भावों का संयोजन किया है आपने.
    हृदयस्पर्शी और मार्मिक.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपको देखकर अच्छा लगा.
    पर मेरी पोस्ट पर आपकी टिपण्णी की अपेक्षा
    अभी भी हृदय में विद्यमान है.आपकी हलचल
    पर मैं नहीं आ पाया इसका अफ़सोस है मुझे.

    मैंने २४ अप्रैल वाली पोस्ट लिखने में दो महीने से अधिक समय
    लिया.अब यू एस जाने का प्रोग्राम है.इस बार भी लिखने में
    देरी होगी.आजकल कम आ पाना हो रहा है ब्लॉग पर.

    मुझे खुशी है कि ब्लॉग पर आपकी सक्रियता बढ़ी है.

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  9. गनीमत है कि आज श्याम की छुट्टी है.......... उस जैसे न जाने कितने होंगें जो आज भी काम पर गए होंगे और अपने गालों पर आंसुओं की सूखी लकीरें ले कर घर लौटे होंगे जिससे घर में आज भी चूल्हा जल सके.............

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  10. बच्चे की मुस्कान,मन में करुणा जगा जाती है जब वह दैड़-दैड़ कर चाय-नाश्ते का फ़र्माइशें पूरी करता है -अभी तो उसके खाने-खेलने के दिन थे, केतली की जगह स्कूल का बस्ता थामने के दिन थे ! .

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  11. भावुक कर देने वाली रचना .. पर वास्‍तविकता और वीभत्‍य है .. संडे को भी नहीं होती हैं उनकी छुट्टियां !!

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  12. This comment has been removed by the author.

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  13. बच्चे के हाथ में चाय की केतली जैसे चिढ़ा रही हो सरकार के सक्षरता अभियान को और NGOs को जो करोड़ों $ इसके नाम के कमा रहे हैं

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  14. सुंदर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  15. ओह .... मासूम बच्चा .... चाय की केतली की जगह कॉपी किताब होनी चाहिए थीं

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  16. बहुत बढ़िया ...

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य