गुगल से साभार तस्वीर बच्चे की ही मिल पाई :) |
मुझे देख कर वो मुस्कुराता है
पानी रख धीरे से पूछता है
चाय?
मै भी उसकी मुस्कुराहट की
अभ्यस्त सी हो चली हूँ
मुझे भी इंतजार रहता है कि
अब वो मुस्कुरायेगा
चाय या कॉफ़ी कुछ न कुछ
कहेगा अवश्य
मेरी हाँ सुनकर
वह एक बार फिर मुस्कुराता है
सैंडविच या कुछ और… ले आऊँ
अटक-अटक कर कुछ शब्द
फ़ूटते है उसके मुह से
और मै ना चाहते हुए भी कह देती हूँ
नही बस चाय।
स्निग्ध कोमल सी मुस्कुराहट
चेहरे पर चस्पाये
चल देता है वो बाहर…
कभी-कभी लगता है
कितना आवश्यक है
उसका होना
एक भी दिन उसका न आना
मेरी सोच से परे होगा
हाँ शायद-
कुछ प्यास लगी है
चाय मिल जाती अगर
साथ सैंडविच चलेगी
कुछ खाया भी नही सुबह
आवाज लगाती हूँ
श्याम…
ओह्ह सॉरी आज वह छुट्टी पर है J
मजदूर दिवस पर बाल मजदूर पर भावपूर्ण सामयिक प्रस्तुति... आभार
ReplyDeleteओह ओह ..बेहद भावुक ..एक संवेदनशील दिल से निकली आवाज.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरती से बयान की आपने 'बाल श्रमिक' की संवेदना को
ReplyDeletebechara......
ReplyDeleteभावपूर्ण ...... मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteआज के दिन के मुताबिक ...सार पूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteउसके बगैर हमारी ज़िन्दगी की गाड़ी खिसकती नहीं। बेचारा कुछ सुस्ता ले ..
ReplyDeleteरोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में हर व्यक्ति का इतना महत्त्व होता है,चाहे वाला हो या काम वाली बाई ,उनके बिना कुछ अधूरा सा लगता है ...उनका महत्त्व ही नहीं उनका सम्मान भी ज़रूरी है
ReplyDeleteअच्छे भावों का संयोजन किया है आपने.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी और मार्मिक.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपको देखकर अच्छा लगा.
पर मेरी पोस्ट पर आपकी टिपण्णी की अपेक्षा
अभी भी हृदय में विद्यमान है.आपकी हलचल
पर मैं नहीं आ पाया इसका अफ़सोस है मुझे.
मैंने २४ अप्रैल वाली पोस्ट लिखने में दो महीने से अधिक समय
लिया.अब यू एस जाने का प्रोग्राम है.इस बार भी लिखने में
देरी होगी.आजकल कम आ पाना हो रहा है ब्लॉग पर.
मुझे खुशी है कि ब्लॉग पर आपकी सक्रियता बढ़ी है.
गनीमत है कि आज श्याम की छुट्टी है.......... उस जैसे न जाने कितने होंगें जो आज भी काम पर गए होंगे और अपने गालों पर आंसुओं की सूखी लकीरें ले कर घर लौटे होंगे जिससे घर में आज भी चूल्हा जल सके.............
ReplyDeleteबच्चे की मुस्कान,मन में करुणा जगा जाती है जब वह दैड़-दैड़ कर चाय-नाश्ते का फ़र्माइशें पूरी करता है -अभी तो उसके खाने-खेलने के दिन थे, केतली की जगह स्कूल का बस्ता थामने के दिन थे ! .
ReplyDeleteभावुक कर देने वाली रचना .. पर वास्तविकता और वीभत्य है .. संडे को भी नहीं होती हैं उनकी छुट्टियां !!
ReplyDeletedil ko chhoone wali rachna
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबच्चे के हाथ में चाय की केतली जैसे चिढ़ा रही हो सरकार के सक्षरता अभियान को और NGOs को जो करोड़ों $ इसके नाम के कमा रहे हैं
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteओह .... मासूम बच्चा .... चाय की केतली की जगह कॉपी किताब होनी चाहिए थीं
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
ReplyDelete