google se sabhar |
हल्लो कौन!
घरवाली?
नही मै कामवाली….
खट
और कनैक्शन कट
लेकिन मै जानती हूँ तुम्हारी उपयोगिता
सच कहूँ
तुम्हारे होने से
घरवाली का ठाठ-बाठ
उसका सजना सँवरना हो पाता है
नख से शीश तक सजी-धजी वह
डरती है
तुम कहीं अवकाश न ले लो
तुम् अपने सिर दर्द, बदन दर्द की
परवाह किये बिना
दो कप चाय पीकर
लगा देती हो सिर में तेल
मल देती हो कमर भी
गुदड़ी में छिपे लाल सी
खूबसूरती तुम्हारी
छिपी रहती है
बेतरतीब उलझे बालों और
मैली कुचैली पेबंद लगी साड़ी
या पसीने से उठती दुर्गंध
के बीच…
मगर फिर भी
कुछ भी आपत्तिजनक नही होता
लेकिन हाँ
भूल कर भी मत चली आना
केश संवार कर
या इस्त्री किये कपड़े पहन कर
काम से हटा दी जाओगी
इर्ष्यावश या भयवश
घरवाली के सौंदर्य का खयाल रख तुम्हें
बने रहना है पूर्ववत
कामवाली तुम्हे बस काम से मतलब रखना है
तुम्हारा पति
तुम्हारे बच्चे
तुम्हारा सजना सँवरना
शाम होने और दिन निकलने के
बीच का मामला है
तुम जानती हो
बेचारी, गरीब, अनपढ़
सभी नाम तुम पर फ़बते हैं मगर,
पढ़ी-लिखी खूबसूरत जवान कामवालियाँ
शिकार हो जाती हैं
किसी की हवस का
या फ़िर रह जाती हैं बेरोजगार
सुनो!
तुम्हारी ढकी-छुपी अप्रतिम सुंदरता
बन सकती है तुम्हारी दुश्मन
ये मैली कुचैली साड़ी,
तुम्हारे चारों तरफ़ लिपटी ये पसीनें की दुर्गंध
रक्षाकवच है तुम्हारा
इस आवरण से निकल कर
झाँकने की कोशिश भी
तुम्हे कामवाली रहने नही देगी
लेकिन
तुम फ़िक्र मत करो
घर का बचा खाना
मेरे और बाबूजी के पुराने कपड़े
बच्चों के पुराने कपड़े और खिलौने
सब दूँगी तुम्हे
पगार भी बढ़ा दूँगी मगर
ऎ कामवाली
तुम्हे बस
कामवाली ही बने रहना है...
बेजोड़ कविता है ....एक गंभीर बात कह गई .....
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी।
ReplyDeleteश्रम के साथ जब शर्म जुड़ जाए तो श्रमिक का सम्मान जाता रहता है।
http://tobeabigblogger.blogspot.com/2012/04/blog-post.html
बेमिसाल रचना , यही विरोधाभास है हमारे समाज , श्रम को मान ही नहीं दे पाते......
ReplyDeleteNice Lines.
ReplyDeletebahut hi khubsurat bhaw hai is kavita ke , nitya ke jiwan se judi is kawita ke liye badhai ho aapko sahnaw ji..
ReplyDeleteकाम वाली बाई बड़े काम की होती है .......
ReplyDeleteबढ़िया रचना....सादर।
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत पैनी धारदार नजर है आपकी शुक्रिया ।
ReplyDeleteकामवाली की पूरी जिंदगी, उनकी नियति और समाज का नजरिया... विशेषकर घरवाली की इर्ष्या... बहुत सशक्त रचना, बधाई.
ReplyDeleteकामवाली बस कामवाली ही बने रहना ... गंभीर बात कहती हुई सच्ची रचना
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
अब कामवालियों में भी बदलाव आ रहा है .वे सचेत हो गई हैं और देख कर अच्छा4 लगता है कि नई पीढ़ी काफ़ी सजग है !
ReplyDeleteमार्मिक है ........ मन तक पहुच गयी
ReplyDeletebahut marmik sachchaai ko kabool karti rachna dil tak pahuch gai.
ReplyDeleteBahut hi sunder rachna....
ReplyDeleteबहुत ही गहन और मार्मिक अभियक्ति.
ReplyDeleteआपकी कलम की निराली शान है,
हृदयस्पर्शी,दिल को झकझोरती हुई
प्रस्तुति के लिए शब्द नहीं हैं मेरे
पास कुछ और कहने के लिए.
May God bless you.
Beautifully crafted poem...very thought-provoking! I am glad I stumbled on your blog.
ReplyDeletehttp://swatienegi.hindiblogs.net/