ऎसे ही लिख डाली बैठे ठाले..आप भी पढ़ लो बैठे ठाले जी... इस मुई ब्लॉगिंग ने रात के दो बजा दिये...:( ये सब दोस्त लोगों की जिद की वजह से हुआ है...कुछ लिखो कुछ लिखो बस...चलिये शुभरात्री..
जो पास होते हैं वही जब दूर जाते हैं
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैंभीड़ में कोई ही लगता है अपना सा
सभी नज़रों मे कब अपनी समाते हैं
मुझे देख कर उसका सीटी बजा देना
अकेली देख कर मेरा दुप्पटा उड़ा देना
अकेले में ख्याल सारे गुदगुदाते हैं
तनहाई में अक्सर हमे वो याद आते हैं।
कहा था उसने कि मै खूबसूरत हूँ
दीवानगी में जब कभी मुस्कुराती हूँ
देख कर आईने भी कई टूट जाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।
चाँद को देखूं तो चाँदनी दिल जलाती है
और नींद भी आंखों से जब रूठ जाती है
रात भर ख्वाबों में वही तो आते जाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।
बचपन में बनाये उस घरौंदे की कसम
जो साथ खेले थे इक्का दुक्का हम
आज भी वो नीम पीपल बरगद बुलाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।
अति सुन्दर
ReplyDeleteजब वैठे ठाले यह है तो फिर मनन के बाद क्या होगा ? सुंदर रचना ........
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंदाज़ में अपने मन की बात लिखी है ...
ReplyDeleteरोचक ...खिले-खिले से शब्द.....
बहुत अच्छी लगी रचना..
बचपन में बनाये उस घरौंदे की कसम
ReplyDeleteपेड़ से तोड़ी कच्ची इमली की कसम
जो साथ खेले थे इक्का दुक्का हम
आज भी वो नीम पीपल बरगद बुलाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।
सच ...
बहुत सुंदर ....
जन्मदिन मनाकर बहुत खूबसूरत कविता लिखी है सुनीता जी ।
ReplyDeleteसुन्दर अहसास संजोये हुए ।
नीली वाली पंक्तियाँ तो सच ही लगती हैं ।
नीम,पीपल,बरगद का उल्लेख का आपने पर्यावरण रक्षा का अच्छा संदेश दिया है।
ReplyDeleteजिन्हें हम भूलना चाहें, वो अक्सर याद आते हैं...
ReplyDeleteसुनीता जी,
तीस अप्रैल को आपने और आपके पतिदेव ने ब्लॉगर मंडली का अपने घर पर जिस स्नेह के साथ सत्कार किया था, वो मैं कभी नहीं भुला सकता...
जय हिंद...
खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
बेहतरीन!
ReplyDeleteसादर
बचपन में बनाये उस घरौंदे की कसम
ReplyDeleteपेड़ से तोड़ी कच्ची इमली की कसम
जो साथ खेले थे इक्का दुक्का हम
आज भी वो नीम पीपल बरगद बुलाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।
Nice post .
http://mushayera.blogspot.com/2011/08/boat.html
कल 09/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
bhaut hi sundar rachna...
ReplyDeletebhaut hi sundar rachna...
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी रचना..
sundar....sach,sab bahut yaad aate hai!!बचपन में बनाये उस घरौंदे की कसम
ReplyDeleteपेड़ से तोड़ी कच्ची इमली की कसम
जो साथ खेले थे इक्का दुक्का हम
आज भी वो नीम पीपल बरगद बुलाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।.....behatreen
'मुझे देख कर उसका सीटी बजा देना'......
ReplyDeleteकोई लोटा दे मेरे बीते हुए दिन......|
बचपन में बनाये उस घरौंदे की कसम
ReplyDeleteपेड़ से तोड़ी कच्ची इमली की कसम
जो साथ खेले थे इक्का दुक्का हम
आज भी वो नीम पीपल बरगद बुलाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।
तन्हाई में तो रहा ही न कीजिये ... पर यह ख़याल भी आने ज़रुरी हैं ... बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
कहा था उसने कि मै खूबसूरत हूँ
ReplyDeleteप्रेम में लिपटी अजंता की मूरत हूँ
दीवानगी में जब कभी मुस्कुराती हूँ
देख कर आईने भी कई टूट जाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।
बहुत खूब सुनीता जी...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना. शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुंदर, बधाई,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हमने बैठे ठाले पढ़ ली...:) आपको दोस्तों ने कहा लिखो...हमें दिल ने कहा पढो...ब्लॉगिंग है ही ऐसी...
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteजो पास होते हैं वही जब दूर जाते हैंतनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं
ReplyDeleteभीड़ में कोई ही लगता है अपना सा
सभी नज़रों मे कब अपनी समाते हैं
bahut sunder soch liye hue shaandaar rachanaa.badhaai aapko,
कमाल की अभिव्यक्ति। बहुत पसंद आई।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता लिखी है सुनीता जी ।
ReplyDeleteजय हिंद...
ओ जी कमाल है कमाल.क्या खूब लिखतीं हैं आप.
ReplyDeleteचाँद को देखूं तो चाँदनी दिल जलाती है
उसका नाम ले लेकर सखियां सताती हैं
और नींद भी आंखों से जब रूठ जाती है
रात भर ख्वाबों में वही तो आते जाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।
आपकी प्रस्तुति ने तो दिल ही चुरा लिया है.
शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार,सुनीताजी.
मेरे ब्लॉग पर दर्शन दीजियेगा.
भक्ति,शिवलिंग पर अपने सुविचार
प्रकट कीजियेगा.
बचपन में बनाये उस घरौंदे की कसम
ReplyDeleteपेड़ से तोड़ी कच्ची इमली की कसम
जो साथ खेले थे इक्का दुक्का हम
आज भी वो नीम पीपल बरगद बुलाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।
बहुत सुंदर अभिब्यक्ति /यादों के साथ किसी की याद में पल पल याद करती हुई शानदार रचना /बधाई आपको /
please visit my blog.thanks.
www.prernaargal.blogspoy.com
ये लीजिये दुबारा आगये हैं आपकी 'नई पुरानी हलचल' से यहाँ.
ReplyDeleteक्या कमाल का लिखतीं हैं आप.
पिछली बार तो कचोरियों के झाँसे में आये थे.
पर आपकी कविता बार बार पढकर भी मन नहीं भरता.
Wo jab yaad aaye, bahut yaad aaye!
ReplyDeletekhoobsurat tabadla-e-khayaal hai ye aapka!
sundar!
जी शानू जी,एक बार फिर से आपकी इस 'पुरानी कविता' को पढ़ने के लिए नई पुरानी हलचल से.
ReplyDeleteपहली बात तो यह है कि कविता पुरानी जरूर है पर पढने पर हर बार नई लगती है.दूसरी बात यह है कि आपने इसे पढ़ने पर कचौरियाँ खिलाने का वादा भी किया हुआ है.
आप् मेरे ब्लॉग पर 'नई पुरानी हलचल'पर मेरी पोस्ट सम्मलित करने के लिए आयीं, अच्छा लगा.परन्तु,यदि आप अलग से टिपण्णी भी कर देंगीं तो बहुत बहुत अच्छा लगेगा.
बचपन में बनाये उस घरौंदे की कसम पेड़ से तोड़ी कच्ची इमली की कसम........बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति... ।
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
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शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ!
चर्चा मंच के माध्यम से यहाँ आई हूँ|
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...बधाई|
देख कर आईने भी टूट जाते हैं ...
ReplyDeleteगज़ब का आत्मविश्वास है :)
इमली , पीपल और बरगद के साथ जुडी खुशनुमा यादें ...
सुन्दर अभिव्यक्ति !
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति .....
ReplyDeleteसुंदर भावों से भरी रचना.
ReplyDeleteरचना मे जिक्र किया है नीम, पीपल और बरगद का लेकिन तस्वीर लगाई है बबूल के पेङ की. कुछ समझ मे नही आया.
ReplyDeleteसुंदर रचना!
ReplyDeleteआज अपने एक ब्लॉग ‘टेक एग्रीगेटर‘ का स्टैट चेक करते हुए यहां आ पहुंचा और एक बार फिर आपका कलाम पढ़ा और वाक़ई बचपन के पीपल, नीम और बरगद याद आ गए।
ReplyDeleteआप का एक बार फिर से शुक्रिया अदा करने को जी चाहता है।
शुक्रिया !!
very very nice
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