चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Wednesday, October 27, 2010

दर्द का दवा हो जाना




उसने कहा दर्द बहुत है
जाने क्यों मै भी कराहती रही
न सोई न जागी
रात भर दर्द को पुकारती रही
उसने कहा ये दर्द
उसका अपना हो गया है
उसके साथ सोता है
जागता है रात भर
मुझसे अधिक वही तो
रहता है उसके खयालों मे
बस यही बात
मेरे मन को सालती रही
ये दर्द लगता है
अपनी हद पार कर गया
झलकता था जो आँखों से उसकी
आज सीने में उतर गया
मेरी तमाम कोशिशे
मुझे मुह चिढाती रही
बेदर्द तो है दर्द
बेवफ़ा भी हो जाता काश
छटपटाता,करवट बदलता
जाने कैसे-कैसे
मन को मै मनाती रही
किन्तु
बहुत मुश्किल है दर्द का
बेवफ़ा हो जाना
हद से गुजरना दवा हो जाना।

सुनीता शानू

40 comments:

  1. ye to chirsathee hai jee..
    acchee abhivykti.

    ReplyDelete
  2. हम्म वाकई बहुत मुश्किल है .बहुत बढ़िया.

    ReplyDelete
  3. गजब की अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  4. हां, दर्द बेवफा नहीं हो सकता। वे लोग बहुत खुश हो जाते हैं, जो दर्द को अपना साथी बना लेते हैं। दर्द बेदर्द कहां होता है..। यदि यह ना हो तो फिर सुख का भी कहां अहसास हो पाएगा। कभी-कभी दर्द प्‍यार भी लगता है और इतना कि उससे भी प्‍यार हो जाए और आप कह उठें कि यह दर्द कभी ना जाए..। दर्द पर आपकी दर्द भरी अभिव्‍यक्ति बहुत अच्‍छी बन पड़ी है। शुक्रिया अच्‍छी लेखनी के लिए...।

    ReplyDelete
  5. usne kaha, aur uske dard ko aapne apna liya......:)

    ek achchhi rachna!!

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन रचना.. बधाई...

    नीरज

    ReplyDelete
  7. कविता भाषा शिल्‍प और भंगिमा के स्‍तर पर समय के प्रवाह में मनुष्‍य की नियति को संवेदना के समांतर, दार्शनिक धरातल पर अनुभव करती और तोलती है। “दर्संद" शब्‍द अलग से ध्‍यान खींचता है। इसका अपना विशिष्‍ट महत्‍व है। यह एक ऐसी बौद्धिक अवस्‍था है जिससे बाहर निकलना ही होता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
    राजभाषा हिन्दी पर - कविताओं में प्रतीक शब्दों में नए सूक्ष्म अर्थ भरता है!
    मनोज पर देसिल बयना - जाके बलम विदेसी वाके सिंगार कैसी ?

    ReplyDelete
  8. क्या कर सकते है, इसी का नाम जीवन है, लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है... इंतज़ार कीजिये, गुज़र ही जाएगा ये वक़्त भी ... लिखते रहिये ...

    ReplyDelete
  9. हमेशा की तरह एक बेहतरीन रचना, धन्यवाद

    ReplyDelete
  10. बेदर्द तो है दर्द
    बेवफा भी हो जाता काश

    बहुत ही सारगर्भित पंक्तियां।

    ReplyDelete
  11. सुनिता, बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    ReplyDelete
  12. sundar, ehsaason se bahrpur kavita

    badhai

    ReplyDelete
  13. dard kahin saathi na ban jaaye..
    khushiyan bhi kabhi aa zaayen...
    rakhana hai khayal hame itna
    zise pyaar karen woh doon na zaaye.

    ReplyDelete
  14. काफी अर्से के बाद तुम्हारी रचना पढने का अवसर मिला. मन को बडा सकून मिला. इस रचना में गजब की मानवीय अभिव्यक्ति है. प्रभु करे कि तुम इसी तरह रचना कारती रहो.

    सस्नेह -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
    मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
    लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

    http://www.Sarathi.info

    ReplyDelete
  15. bahut hee khoobsurat rachna ...man ko chhoo lene walee...badhayi

    ReplyDelete
  16. बहुत मुश्किल है
    दर्द का बेवफा हो जाना...

    अच्छी भावाभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  17. आज पहली बार ब्लॉग पर आया हूँ आपके ... आप बहुत अच्छा लिखती हैं... मै फुरसत में और पोस्टें भी पढ़ना चाहूँगा ... फिलहाल तो आज के ब्लागर मीट की यादों का रस ले रहा हूँ ...
    शुभकामनाएँ
    पद्म सिंह
    http://padmsingh.wordpress.com

    ReplyDelete
  18. भविष्य में आपको पढता रहूँ अतः आजसे आपके ब्लाग का प्रसंशक बन रहा हूँ ..शुभकामनायें

    ReplyDelete
  19. bahut hi acchi abhivyakti ji

    badhayi ho

    vijay
    kavitao ke man se ...
    pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete
  20. सुन्दर प्रस्तुति!
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    ReplyDelete
  21. सुन्दर व भावपूर्ण कविता

    ReplyDelete
  22. बहुत अच्छी प्रस्तुति। धन्यवाद|

    ReplyDelete
  23. नव वर्ष
    नव सृजन, नव हर्ष की,
    कामना उत्कर्ष की,
    सत्य का संकल्प ले
    प्रात है नव वर्ष की .

    कल्पना साकर कर,
    नम्रता आधार कर,
    भोर नव, नव रश्मियां
    शक्ति का संचार कर .

    ज्ञान का सम्मान कर,
    आचरण निर्माण कर,
    प्रेम का प्रतिदान दे
    मनुज का सत्कार कर .

    त्याग कर संघर्ष का,
    आगमन नव वर्ष का,
    खिल रही उद्यान में
    ज्यों नव कली स्पर्श का .

    प्रेम की धारा बहे,
    लोचन न आंसू रहे,
    नवल वर्ष अभिनंदन
    प्रकृति का कण कण कहे .

    कवि कुलवंत सिंह

    ReplyDelete
  24. अति सुंदर सब्द जैसे भाव बन गए है !
    ...............अदभुत !!
    शुभकामनाये

    ReplyDelete
  25. बस यही बात
    मेरे मन को सालती रही
    ये दर्द लगता है
    अपनी हद पार कर गया... bahut badhiyaa

    ReplyDelete
  26. बहुत सुन्दर
    अच्छी रचना
    बहुत बहुत शुभकामना

    ReplyDelete
  27. पैरों के छालों के दर्द से डराते हो

    कई हलाहल पीने हैं, मुझे उन मंजि‍लों के लि‍ये

    नारी को नमन, हमारी रचना देखें
    http://rajey.blogspot.com/ पर

    ReplyDelete
  28. बहुत खूब सुनीता जी ! शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  29. बहुत सुंदर रचना है

    ReplyDelete
  30. सुनीता शानू जी
    जय हो !
    आज आपके ब्लोग पर दूसरी बार आया हूं ।
    पहली बार तो यूं ही सरसरी नज़र डालक र चला गया था । आज तो लगभग आधा घंते से यहां हूं ।
    आपका यह ब्लोग पूरा खंगाल लिया !
    बहुत शानदार एवम जानदार ब्लोग है !
    आप लिखती भी बहुत अच्छा हैं ।
    बधाईह ो !
    आप की ताज़ा रचना का यह अंश अच्छा लगा-
    "बहुत मुश्किल है दर्द का
    बेवफ़ा हो जाना
    हद से गुजरना दवा हो जाना।"
    पुन: बधाई !
    जय हो !

    ReplyDelete
  31. बेदर्द तो है दर्द
    बेवफ़ा भी हो जाता काश
    छटपटाता,करवट बदलता
    जाने कैसे-कैसे
    मन को मै मनाती रही
    किन्तु
    बहुत मुश्किल है दर्द का
    बेवफ़ा हो जाना
    हद से गुजरना दवा हो जाना।


    Sundar.....

    ReplyDelete
  32. बेदर्द तो है दर्द
    बेवफ़ा भी हो जाता काश.....

    इसे रहने दो ... कुछ तो रहने दो जो वफादार हो !

    सुनीता जी बहुत सुंदर रचना !

    ReplyDelete
  33. दर्द ताउम्र साथ निभाते हैं...इंसा वफादार नहीं कोई .सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  34. बहुत मुश्किल है दर्द का
    बेवफ़ा हो जाना
    हद से गुजरना दवा हो जाना।

    बहुत खूब कहा है आपने ..आभार ।

    ReplyDelete
  35. मन को मै मनाती रही
    किन्तु
    बहुत मुश्किल है दर्द का
    बेवफ़ा हो जाना
    हद से गुजरना दवा हो जाना।

    वाह ! क्या गजब का लिख दिया है आपने।

    सादर

    ReplyDelete
  36. किन्तु
    बहुत मुश्किल है दर्द का
    बेवफ़ा हो जाना
    हद से गुजरना दवा हो जाना……………बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।

    ReplyDelete
  37. dard ek hi keemat par bewafa ho sakta hai gar aap bhi us se bewafayi karne ki thaan lo aur uski dushman khushi se dosti kar lo.

    ReplyDelete
  38. बहुत मुश्किल है दर्द का
    बेवफ़ा हो जाना
    हद से गुजरना दवा हो जाना।

    ओह! तो यह बात है,सुनीता जी
    व्यंग्य में दर्द ? कमाल है जी कमाल.

    ReplyDelete

स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य