Wednesday, October 27, 2010
दर्द का दवा हो जाना
उसने कहा दर्द बहुत है
जाने क्यों मै भी कराहती रही
न सोई न जागी
रात भर दर्द को पुकारती रही
उसने कहा ये दर्द
उसका अपना हो गया है
उसके साथ सोता है
जागता है रात भर
मुझसे अधिक वही तो
रहता है उसके खयालों मे
बस यही बात
मेरे मन को सालती रही
ये दर्द लगता है
अपनी हद पार कर गया
झलकता था जो आँखों से उसकी
आज सीने में उतर गया
मेरी तमाम कोशिशे
मुझे मुह चिढाती रही
बेदर्द तो है दर्द
बेवफ़ा भी हो जाता काश
छटपटाता,करवट बदलता
जाने कैसे-कैसे
मन को मै मनाती रही
किन्तु
बहुत मुश्किल है दर्द का
बेवफ़ा हो जाना
हद से गुजरना दवा हो जाना।
सुनीता शानू
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सबसे पहले आप सभी को नव-वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनायें... कुछ हॉस्य हो जाये... हमने कहा, जानेमन हैप्पी न्यू इयर हँसकर बोले वो सेम टू यू माई डिय...
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एक छोटा सा शहर जबलपुर... क्या कहने!!! न न न लगता है हमे अपने शब्द वापिस लेने होंगे वरना छोटा कहे जाने पर जबलपुर वाले हमसे खफ़ा हो ही जायेंगे....
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ye to chirsathee hai jee..
ReplyDeleteacchee abhivykti.
हम्म वाकई बहुत मुश्किल है .बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteगजब की अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteहां, दर्द बेवफा नहीं हो सकता। वे लोग बहुत खुश हो जाते हैं, जो दर्द को अपना साथी बना लेते हैं। दर्द बेदर्द कहां होता है..। यदि यह ना हो तो फिर सुख का भी कहां अहसास हो पाएगा। कभी-कभी दर्द प्यार भी लगता है और इतना कि उससे भी प्यार हो जाए और आप कह उठें कि यह दर्द कभी ना जाए..। दर्द पर आपकी दर्द भरी अभिव्यक्ति बहुत अच्छी बन पड़ी है। शुक्रिया अच्छी लेखनी के लिए...।
ReplyDeleteusne kaha, aur uske dard ko aapne apna liya......:)
ReplyDeleteek achchhi rachna!!
बेहतरीन रचना.. बधाई...
ReplyDeleteनीरज
कविता भाषा शिल्प और भंगिमा के स्तर पर समय के प्रवाह में मनुष्य की नियति को संवेदना के समांतर, दार्शनिक धरातल पर अनुभव करती और तोलती है। “दर्संद" शब्द अलग से ध्यान खींचता है। इसका अपना विशिष्ट महत्व है। यह एक ऐसी बौद्धिक अवस्था है जिससे बाहर निकलना ही होता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी पर - कविताओं में प्रतीक शब्दों में नए सूक्ष्म अर्थ भरता है!
मनोज पर देसिल बयना - जाके बलम विदेसी वाके सिंगार कैसी ?
क्या कर सकते है, इसी का नाम जीवन है, लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है... इंतज़ार कीजिये, गुज़र ही जाएगा ये वक़्त भी ... लिखते रहिये ...
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक बेहतरीन रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteबेदर्द तो है दर्द
ReplyDeleteबेवफा भी हो जाता काश
बहुत ही सारगर्भित पंक्तियां।
सुनिता, बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
ReplyDeletesundar, ehsaason se bahrpur kavita
ReplyDeletebadhai
dard kahin saathi na ban jaaye..
ReplyDeletekhushiyan bhi kabhi aa zaayen...
rakhana hai khayal hame itna
zise pyaar karen woh doon na zaaye.
काफी अर्से के बाद तुम्हारी रचना पढने का अवसर मिला. मन को बडा सकून मिला. इस रचना में गजब की मानवीय अभिव्यक्ति है. प्रभु करे कि तुम इसी तरह रचना कारती रहो.
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
http://www.Sarathi.info
bahut hee khoobsurat rachna ...man ko chhoo lene walee...badhayi
ReplyDeleteबहुत मुश्किल है
ReplyDeleteदर्द का बेवफा हो जाना...
अच्छी भावाभिव्यक्ति।
आज पहली बार ब्लॉग पर आया हूँ आपके ... आप बहुत अच्छा लिखती हैं... मै फुरसत में और पोस्टें भी पढ़ना चाहूँगा ... फिलहाल तो आज के ब्लागर मीट की यादों का रस ले रहा हूँ ...
ReplyDeleteशुभकामनाएँ
पद्म सिंह
http://padmsingh.wordpress.com
भविष्य में आपको पढता रहूँ अतः आजसे आपके ब्लाग का प्रसंशक बन रहा हूँ ..शुभकामनायें
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.. बधाई...
ReplyDeletebahut hi acchi abhivyakti ji
ReplyDeletebadhayi ho
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सुन्दर व भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। धन्यवाद|
ReplyDeleteनव वर्ष
ReplyDeleteनव सृजन, नव हर्ष की,
कामना उत्कर्ष की,
सत्य का संकल्प ले
प्रात है नव वर्ष की .
कल्पना साकर कर,
नम्रता आधार कर,
भोर नव, नव रश्मियां
शक्ति का संचार कर .
ज्ञान का सम्मान कर,
आचरण निर्माण कर,
प्रेम का प्रतिदान दे
मनुज का सत्कार कर .
त्याग कर संघर्ष का,
आगमन नव वर्ष का,
खिल रही उद्यान में
ज्यों नव कली स्पर्श का .
प्रेम की धारा बहे,
लोचन न आंसू रहे,
नवल वर्ष अभिनंदन
प्रकृति का कण कण कहे .
कवि कुलवंत सिंह
अति सुंदर सब्द जैसे भाव बन गए है !
ReplyDelete...............अदभुत !!
शुभकामनाये
बस यही बात
ReplyDeleteमेरे मन को सालती रही
ये दर्द लगता है
अपनी हद पार कर गया... bahut badhiyaa
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअच्छी रचना
बहुत बहुत शुभकामना
पैरों के छालों के दर्द से डराते हो
ReplyDeleteकई हलाहल पीने हैं, मुझे उन मंजिलों के लिये
नारी को नमन, हमारी रचना देखें
http://rajey.blogspot.com/ पर
बहुत खूब सुनीता जी ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है
ReplyDeleteसुनीता शानू जी
ReplyDeleteजय हो !
आज आपके ब्लोग पर दूसरी बार आया हूं ।
पहली बार तो यूं ही सरसरी नज़र डालक र चला गया था । आज तो लगभग आधा घंते से यहां हूं ।
आपका यह ब्लोग पूरा खंगाल लिया !
बहुत शानदार एवम जानदार ब्लोग है !
आप लिखती भी बहुत अच्छा हैं ।
बधाईह ो !
आप की ताज़ा रचना का यह अंश अच्छा लगा-
"बहुत मुश्किल है दर्द का
बेवफ़ा हो जाना
हद से गुजरना दवा हो जाना।"
पुन: बधाई !
जय हो !
बेदर्द तो है दर्द
ReplyDeleteबेवफ़ा भी हो जाता काश
छटपटाता,करवट बदलता
जाने कैसे-कैसे
मन को मै मनाती रही
किन्तु
बहुत मुश्किल है दर्द का
बेवफ़ा हो जाना
हद से गुजरना दवा हो जाना।
Sundar.....
बेदर्द तो है दर्द
ReplyDeleteबेवफ़ा भी हो जाता काश.....
इसे रहने दो ... कुछ तो रहने दो जो वफादार हो !
सुनीता जी बहुत सुंदर रचना !
दर्द ताउम्र साथ निभाते हैं...इंसा वफादार नहीं कोई .सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत मुश्किल है दर्द का
ReplyDeleteबेवफ़ा हो जाना
हद से गुजरना दवा हो जाना।
बहुत खूब कहा है आपने ..आभार ।
मन को मै मनाती रही
ReplyDeleteकिन्तु
बहुत मुश्किल है दर्द का
बेवफ़ा हो जाना
हद से गुजरना दवा हो जाना।
वाह ! क्या गजब का लिख दिया है आपने।
सादर
किन्तु
ReplyDeleteबहुत मुश्किल है दर्द का
बेवफ़ा हो जाना
हद से गुजरना दवा हो जाना……………बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।
dard ek hi keemat par bewafa ho sakta hai gar aap bhi us se bewafayi karne ki thaan lo aur uski dushman khushi se dosti kar lo.
ReplyDeletebahut sundar...
ReplyDeleteबहुत मुश्किल है दर्द का
ReplyDeleteबेवफ़ा हो जाना
हद से गुजरना दवा हो जाना।
ओह! तो यह बात है,सुनीता जी
व्यंग्य में दर्द ? कमाल है जी कमाल.