चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Wednesday, December 10, 2008

जिंदगी



तनहा कँटीळी
खाली बरतन सी जिंदगी
भर गई अचानक
जूही के फूलो की
महक सी
खिल गई शाखों पर
अनगिन पुष्प-गुच्छ
अमलतास सी
भिगो गई
शरद पूर्णिमा की
उजली चाँदनी सी
जिंदगी की राहों में
गुलाब सी खूबसूरत
महक ही देखी मगर
न देख पाई
गुलाब की हिफ़ाजत करते
उन बेहिसाब काटों को...

सुनीता शानू

23 comments:

  1. bahut hi badiya sunita ji. jindagi ki sachhai phool or kanton ki jubani. sadhuvad.
    kabhi mere blog (meridayari.blogspot.com)par bhi daura karen.

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  2. बहुत बढिया रचना है।सुख के साथ दुख तो रहता है।बहुत सुन्दर कहा है_

    "गुलाब सी खूबसूरत
    महक ही देखी मगर
    न देख पाई
    गुलाब की हिफ़ाजत करते
    उन बेहिसाब काटों को..."

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  3. बेहिसाब काटों का...क्या बात है

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  4. सुनीता शानू जी
    अभिवंदन
    आज आपका ब्लॉग पहली बार देखा
    पहली बार आपकी रचना " जिन्दगी " के रूप में पढने का सौभाग्य मिला.
    निश्चित रूप से महकती हुई रचना में दुःख रूपी कांटे दिल को दुखी करते
    प्रतीत हुए.
    एक भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
    आपका
    डॉ विजय तिवारी " किसलय "
    जबलपुर म. प्र.

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  5. और सच भी यही है !बहुत बढिया रचना !

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  6. बहुत बढिया रचना ...

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  7. Bahut kamaal ke vichar...aksar hum ytharth se muhn mod lete hain...
    neeraj

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  8. "खाली बरतन सी जिंदगी" अच्छा लगा |

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  9. बहुत सुन्दर !
    घुघूती बासूती

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  10. न देख पाई
    गुलाब की हिफ़ाजत करते
    उन बेहिसाब काटों को..."

    bahut khoob.... kya baat hai

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  11. रात है....तभी दिन का एहसास है
    दुख हैँ...तभी सुख का मज़ा भी है

    बुराई है...तभी अच्छाई भी है...


    सार्थक कविता

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  12. गुलाब की हिफाजत करने वाले कांटो को न देख पाना =बहुत गहरी बात कहदी जो हमारे घर दे बुजुर्गों पर भी और देश के रक्षकों पर भी लागू होती है

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  13. dear madam,

    i came first time to your blog and read the posts , this one is very impressive . and I enjoyed the poem


    Pls visit my blog : http://poemsofvijay.blogspot.com/

    Vijay

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  14. जब हम को खालीपन का एहसास हो जाता है तो वह हमें पूर्णता की ओर ले जाने का जरिया बन जाता है.

    सस्नेह -- शास्त्री

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  15. बहुत ही सुंदर रचना का रसास्वादन आपने कराया सुनीताजी!...धन्यवाद!

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  16. सच है कि जूही के फूलों की महक में हम गुलाब के काँटों को भूल जाते है...
    वैसे मुझे आपके ब्लॉग के नाम ने ही यहाँ तक खीच लिया...

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  17. बहुत ही खुबसूरती से लिखी है यह रचना बहुत ही सुंदर और ऊपर फोटो सोने पे सुहागा बधाई हो

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  18. काबिलेतारीफ बेहतरीन

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  19. pahli baar padha ..bahut achcha laga ..zindgi ke kareeb...

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  20. काँटों के बीच
    होते हुए भी
    गुलाब मन को
    लुभाते हैं
    सुन्दर कविता ,
    और क्या लिखूं

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य