चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Monday, December 1, 2008

बिल्ली के गले में घण्टी बाँधेगा कौन?

कब मिटेंगे आतंक के साये हर रोज यही सवाल बेचैन करता रहता है? जब कभी घर के किसी सदस्य को चोट लग जाती है हम परेशान हो जाते हैं, देखो सम्भलकर चलना कहीं ठोकर न लग जाये, जल्दी घर लौटना, किसी अजनबी से बात मत करना। न जाने कितनी ही हिदायतें हम बच्चों को दिया करते हैं, किन्तु यह बताना नही भूल पाते जब कभी आतंकी हमला हो जाये बेटा चुपके से छुप जाना या फ़िर भाग आना। चाहे कितने ही लोग पकड़ लिये गये हों तुम्हारी जान बहुत कीमती है, तुम हमारे घर के चिराग हो तुम्हारे बिना हम जी नही सकेंगे। क्या देश पर जो कुर्बान हो गये वो किसी के बेटे नही थे, किसी के पति नही थे? मगर नही हम बस खुद के बारे में सोचते हैं, मुम्बई का ब्लॉस्ट इतना गहरा नही था, अगर यही दिल्ली में होता तो शायद ज्यादा असर करता हम पर, और अगर उस ब्लॉस्ट में हमारे अपने भी शामिल होते तो कितनी गालियाँ निकालते इस भ्रष्ट राजनीति को की हम बता नही सकते। सारा दोष ही इस भ्रष्ट शासन प्रणाली का है।

मुझे समझ नही आता ये नेता क्या घास काटते रहते हैं, मेरे ख्याल से इन्हें खाकी वर्दी पहन कर रात को गश्त लगानी चाहिये...जागते रहो...हाँ जागते रहो का नारा ही ठीक रहेगा। एक ओर हम मंत्रियों से ये सवाल करते हैं की देश में आतंकवादी कैसे घुस गये, दूसरी तरफ़ हम खुद सरकार से चोरी छिपे कई काम कर जाते हैं, अगर कहीं पकड़े गये अमुक मंत्री या ऑफ़िसर का हवाला देकर या पुलिस को हजार-पाँच सौ देकर अपना पिंड छुड़ाते हैं। कितनी ही बार जाली लाईसेंस या जाली पासपोर्ट यहाँ तक की जाली साइन तक कर लेते हैं, हाँ जी आज नकली पुलिस का कार्ड, प्रेस का कार्ड, रखना हमारी शान हो गई है। यह कार्ड ही तो हमे हर चेकिंग से बचा ले ते हैं। जब हम यह सब बेफ़िक्री से कर पाते हैं तो हमारे देश में घुसपैठ क्योंकर न होगी?

जो काम बार-बार हमारे देश की सेना को करना पड़ता है हम क्यों नही कर पाते? क्यों चंद आतंकियों को देख कर दहशत में आ जाते है और बस खुद को बचाने की सोचते हैं, हमारे देश की सेना को ही शायद देश पर कुर्बान होने की कसम दी जाती है, यह भी सही है उनको कुर्बानी की कीमत जो मिलती है, यह तो उनकी ड्यूटी है भैया, हमारा काम है मोमबत्ती जलाना या दो मिनिट का मौन करना, हम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से जानते हैं।

बड़ी मुश्किल से आज मीडिया यहाँ तक पहुँची है कि हमे देश के हालात का पता चल पाता है। दंगे-फ़साद कल भी इतने ही होते थे, मगर एक आम नागरिक को अपराध और अपराधी की झलक नही मिल पाती थी। किन्तु मीडिया ने यह कर दिखाया है। क्या जरूरत थी दीपक चौरसिया को कारगिल पर जाकर हमारे देश के सिपाहियों का हाल बताने की। क्या जरूरत थी मुम्बई काण्ड में छत्तीस घंण्टे से लेकर साठ घण्टे तक इन नौजवानो को दहशत में रहने की? क्या जरूरत थी रिपोर्टर्स को नजदीक से उस आतंक को देखने की? हमने तो नही कहा था ऎसा करने के लिये, कहीं एक बंदूक की गोली या एक धमाका उनकी जिंदगी ले लेता, और उनके परिवार को क्या मिलता? रिपोर्टिंग के लिये शहीद होने पर कुछ पैसा या पदक? लेकिन अभी भी लगता है ये सब टी. आर. पी. का ही चक्कर है? लेकिन क्या हममे से कोई वहाँ जा सकता था? या हम किसी अपने को वहाँ मदद के लिये भेज सकते थे? हम घर बैठे सब कुछ देख रहे थे। और देख रहे थे कि इन मरने वालो या बंधकों की भीड़ में हमारा अपना तो कोई नही? कितने घायल हुए कितने शहीद हुए...हम लम्हा रौंगटे खड़े करने वाला था। ऎसा जान पड़ता था कि आतंक के काले बादल हमारे घर पर छाये हुए हैं,फ़िर भी हम खा पी रहे थे। क्योंकि हम अपने घर में सुरक्षित थे।

सचमुच उन जाँबाज पुलिस अफ़सरों, उन वतनपरस्त देशभक्तों का और अपनी जान की परवाह न करके रिपोर्टिंग करने वालो का हमें शुक्रिया करना चाहिये, जिन्होने सारा ऑपरेशन हमे लाइव दिखा कर हमारे अंदर देशभक्ति का जज्बा पैदा किया और हम उन नेताओं को कुर्सी से हटा पाये जो सही चोकीदारी नही कर रहे थे? और अब उन रिपोर्टर्स को भी मूर्ख, अशिक्षित बता पायेंगे जो वहाँ खड़े नही, पड़े रह कर( चाहे गोली उनके सिर के ऊपर से चली जाती) रिपोर्टिंग कर रहे थें। और उन शहीद जवानों को तो सलामी मिलनी ही चाहिये जो निस्वार्थ भाव से देश की रक्षा के लिये कूद पड़े। अब ये और बात है कि किसी को उनकी कुर्बानी में भी राजनीति की रोटियां सेकने की मोहलत मिल गई।

खैर इस बात का शुक्र मनाओ हम तो बच गये, हमला पडौस की मुम्बई में हुआ दिल्ली में नही। लेकिन सोचो जरा कब तक? चार-पाँच महिने बाद अगर फ़िर कोई धमाका हुआ। फ़िर कोई हमारा अपना शहीद हुआ। किसे कुर्सी से हटायेंगे? किसे गाली निकालेंगे? या फ़िर हम भी उन लाखों करोडो की तरह आँसू बहायेंगे।और इस बार इन पागल रिपोर्टरो ने भी हमे न बताया न लाइव दिखाया कि हमले में हमारा कोई अपना तो नही, हम तो कहीं के न रहे न। और अगर हमला हम पर ही हुआ तो क्या इस बार हमारा फ़ोटो टीवी पर भी नही आ पायेगा। मोमबत्ती कौन-कौन जलायेगा कैसे पता चलेगा? चलो हम भी आतंकवाद के खिलाफ़ एक मुहिम चलायें, लेकिन पहले हम ये सुनिश्चित कर ले की बिल्ली के गले में घण्टी बाँधेगा कौन?

19 comments:

  1. आज हम पर हमला हुआ है...इसलिए हम सरकार को....नेताओं को और आंतक वादियों को कोस रहे हैँ
    कुछ दिन बाद जब मामला ठण्डा पड़ जाएगा....
    तब किसी को कुछ याद नहीं रहेगा ...


    तगड़ा व्यंग्य...तीखे कटाक्ष....बढिया लेख...

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  2. अरे वाह आप ने तो खुब खरी खरी ओर सच बात कह दी, ओर हम सब को नंगा कर दिया, लेकिन बिलकुल सही लिखा है, यह सब मेने देखा है अपनी आंखो से ओर इन सब बातो के लिये मै लड भी पडता हुं
    काश हम सब आप की तरह से सोचे,ओर अगर ऎसा नही होता तो हम सब युही मरेगे, युही पिटेगे, युही गुलाम रहे गे, युही एक दुसरे पर कीचड उछालते रहेगे.
    जीना अगर इसे ही कहते है( जो अब हम जी रहे है) तो इस से अच्छा तो जानवर जीता है
    सुनीता जी आज आप को सलाम

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  3. Suneetaji,
    Aapse pehli baar rubaru ho rahee hun...aapko maine forward to nahi bheji, ek open letter ke tehet kiseeko jawab zaroor diya tha..khair..mai ab eksaath kayi billiyonke galeme ghanti bandhne jaa rahee hun...ek behad abyaspoorn lekin jhakjhor denewali documentery banake..kuchhhi maah pehle maine movie making ka ek behadhi kathin course poora kiya..kayi vishay aankhonke aage the...par finance nahee tha..aur Mumbaiki ye ghatna ghat gayi...ab mujhe peechhe mudke nahi dekhna ...finance ka intezaam ho raha hai...deshpremse prerit logonke sahkaryki zaroorat hai...aur mujhe dinraat mehnat karnee hogi...India Penal Code ko chhan marna hoga, 200/250 saal purane ghisepite qanoonke tehat ho rahee andhadund baaten, sainkdon commeeties ke reports aur qanoonki ki gayi avhelana...har cheez exampleke saath jantake aage lanee hai...yeh ek zabardast zimmedaree hai...mai kaheenbhi chook nahee sakti iska mujhe poora dhyan hai...ab saraam mujhe apnee kurseepe dante in ....ka pardafaash karna hai...jobhi sahkary, mujhe milega swagat hai...jeeven ab mere Hindustanke prati samarpit hai...mujhe shubhkamnayen den ki apne maqsadme kamyabi haasil kar paun..
    shensahit
    Shama
    Thakre aur Modiko to aade haathon lehee liya hai..jab ookhalime sir diya to moosalise kya darna?

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  4. बहुत सटीक विश्लेषण लगा तुम्हारा.

    सवाल यह है कि क्यों ये आक्रमण बार बार हो रहे हैं. उत्तर साफ है -- जिन लोगों के हाथ में देश की बागडोर है वे मजबूत नहीं हैं. इतना ही नहीं, यदि वे कुछ कडाई का प्रयोग करें तो जनता उनके विरुद्ध हो जाती है.

    जब तक देश में एक नैतिक-धार्मिक नवीकरण नहीं आयगा तब तक ऐसा ही होता रहेगा

    सस्नेह -- शास्त्री

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  5. सच कहा आपने तभी तो मै बार बार कहता हूँ इस बैचनी ओर आक्रोश को अपने भीतर संजो कर रखना है

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  6. बहुत दिनों बाद पढ़ा आप को...आप का गुस्सा बिल्कुल जायज है...बहुत सधे शब्दों में अपनी बात कही है आपने...
    नीरज

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  7. सुनीता जी,मेरा इरादा नहीं था कि आपके चिट्ठे पर आता लेकिन जैसे आपने मुझ निरीह प्राणी से किसी और का बदला लिया वो मेल फारवर्ड करके तो मैं अपनी खिसियाहट इधर निकालने आ गया,दोबारा किसी बिल्ली की घण्टी मैं सुनना नहीं चाहता कि आप उसे उतार कर मुझ गरीब को सुनाएं:)

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  8. चंद लोगो की गलती की घण्टी सभी के गले में बाँधने का कोई इरादा नही था, आप मेरे चिट्ठे पर आने के लिये कदापि बाध्य नही हैं...यह सिर्फ़ एक हल्का सा हास्य किया गया था...स्पेशियली डॉ रूपेश जी से क्षमा प्रार्थी हैं उन्हे बुरा लगा...आप सभी भी कृपया इस मेल को अन्य मेल समझ भूला दे...

    सुनीता शानू

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  9. सशक्त व्यंग्य..

    किचिंत हम सिर्फ़ चाय के प्याले पर ही तुफ़ान खडा करते हैं और स्थिति समानय होते है कल क्या हुआ उसे भूल जाते हैं.. अपने पर लगी चोट को जिन्दगी भर याद रखते हैं और दूसरी बडी से बडी घटना दूसरे दिन बासी हो जाती है.. इस मानसिकता से उबर कर हमे सब के दुख सुख का साझी बनना है तभी समाज में परिवर्तन आ सकता है

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  10. तीखे कटाक्ष, बढिया लेख

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  11. sunitaa ji aapkaa artikal padha, aapne jin bhavnaao ko prastut kiyaa hai vastav me vah har hindustani ke man ki vyatha hai .......... ukt aalekh padhakar ek bargi vidroh ki jwalaa man me utpann ho jati hai ........ achchhi abhivyakti hai ... VINOD

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  12. aapka lekh bahut ullekhniya hai , isme deshbahkti ka jo bhav hai wo prabhavshali ban pada hai

    bahut badhai

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

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  13. Shanoo ji
    bahut hi achcha likha hai, ki itna sab hone ke babjood ham apna hi sochte hain/ doosron main khamiya ya matlab hi nikalte hain. nice atricle.

    Gaurav vashisht

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  14. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 15 -09 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में ... आईनों के शहर का वो शख्स था

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  15. दिल से निकली सशक्त आवाज..सटीक व्यंग...बधाई..

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  16. एकदम साधी बात काही है आपने।

    सादर

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  17. अब तो दिल्ली में भी हो गया धमाका ... सरकार के कान सुनते नहीं हैं ... सटीक लेख

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स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य