मन के
आँगन की माटी को
सौंप दिये
अरमानों के बीज
सौंधी खुशबू से लिपटे
आशाओं के पानी से सीँचें
स्वर्ण किरणों ने प्यार उड़ेला
तब नन्हे-नन्हे अँकुर फ़ूटे
सौंप दिये
अरमानों के बीज
सौंधी खुशबू से लिपटे
आशाओं के पानी से सीँचें
स्वर्ण किरणों ने प्यार उड़ेला
तब नन्हे-नन्हे अँकुर फ़ूटे
मीठा-मीठा कोमल मखमली
कोपल के जैसा
अहसास हृदय में जागा
विश्वास ने जड़े फ़ैलाई
सुन्दर मधुर संगीत लिये
फ़ैलाती बाहें पुरवाई
कोपल के जैसा
अहसास हृदय में जागा
विश्वास ने जड़े फ़ैलाई
सुन्दर मधुर संगीत लिये
फ़ैलाती बाहें पुरवाई
मन में सोये तार बजे
सपनों ने ली अंगड़ाई
सोई हूक जगाने वाला
स्वर्णिम पल है आने वाला
सपने जब होंगे पूरे
सुन्दर-सुन्दर रंग-बिरंगे
आँगन में खूब खिलेंगे
भाव घनेरे
स्वर्णिम पल है आने वाला
सपने जब होंगे पूरे
सुन्दर-सुन्दर रंग-बिरंगे
आँगन में खूब खिलेंगे
भाव घनेरे
सूने मन में बातें होंगी
चिडियों सी
चहचहाहट होगी
रंग-बिरंगी तितली के जैसी
खूशबू होगी
छूकर मुझको यहाँ-वहाँ
फ़ैलेगी वो
जाने कहाँ-कहाँ...
सुनीता शानू
अंकुर से परवाज़ का सफर, खूब्सूरत अंदाज़ में संजोया है
ReplyDeleteसुंदर कविता
मखमली और खुबसूरत कविता बहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteसुन्दर कोमल अभिव्यक्ति. बधाई.
ReplyDeleteSunder sapno ko bahut pyar se seencha hai aapane.
ReplyDeleteमन के
ReplyDeleteआँगन की माटी को
सौंप दिये
अरमानों के बीज
बहुत ही ख़ूबसूरत मनमोहक रचना . बधाई
सुंदर कविता
ReplyDeleteउम्मीद पे दुनिया कायम है....
ReplyDeleteआँखे बन्द कर सपने लेती रहें....
अच्छी कविता
रंग बिखेरता चित्र और इन्द्रधनुषी कविता....दोनों ही लाजवाब...
ReplyDeleteनीरज
achchhi kavita hai.
ReplyDeleteआदरणीय सुनीता जी ,
ReplyDeleteकाफ़ी दिनों बाद आपकी एक और ऊर्जावान रचना पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ .
जैसा कि मैं शायद पहले भी मैंने लिखा है कि आशा , आस्था , विश्वास और आदमी ऊर्जा के साथ जीवन्तता और जिजीविषा आपकी कविता के मूल स्वर हैं . इन सकारात्मक रचनात्मक मूल्यों का निर्वहन समकालीन युगीन परिस्थितियों में दुह्साद्ति है . इस मुश्किल कार्य को आपकी लेखनी अत्यन्त सहजता के साथ कर पा रही है , यह तथ्य संतुष्टि और आश्वस्ति देता है .
मुक्त छंद की कविता लिखने को मैं कई अर्थों में छंद -बद्ध कविता लिखने से अधिक कठिन मानता हूँ . मुक्त कविता में लयात्मकता सूक्ष्मतर होती है जिसका निर्वहन छान्दिकता से अधिक कठिन होता है . भावों की लयात्मकता , उनका व्यवस्थित प्रवाह मुक्त कविता की गुणात्मकता का प्रमुख माप -दंड है . कविता की दूसरी शिल्पगत विशेषताएँ , आलंकारिकता आदि से उसे अतिरिक्त गुरुत्व मिलता है .
उपरोक्त विमर्श के साथ आपकी इस कविता पर "तबसरा - ऐ - आनंदकृष्ण " -
अनुभूतियों का घनीभूत होना , सृजन के किसी भी माध्यम या रूपंकर का प्राथमिक चरण होता है . इस कविता के प्रारंभ में ही रचनाकार ने अपनी अनुभूतियों के सघन होने के कारण को रूपायित कर कविता के सृजन - औचित्य का सार्थक तर्क रख दिया है . यह तत्व रचनाकार की गहन व सूक्ष्म संवेदनशीलता को रेखांकित करता है .
कविता के प्रारंभ में ही ये पंक्तियाँ सहज ही आकर्षित करती हैं -
मन के
आँगन की माटी को
सौंप दिये
अरमानों के बीज
सौंधी खुशबू से लिपटे
मन को एक आँगन की माटी का और " अरमानों " को " बीज " का सटीक व मौलिक रूपक देते हुए और उन्हें सौंधी खुशबू से लिपटे हुए कह कर रचनाकार ने अपनी भाषा और भाव - भूमि से सम्पृक्तता प्रदर्शित की है . रूपक की मौलिकता श्लाघ्य है .
कविता की यात्रा के अगले हिस्से में -
आशाओं के पानी से
सीँचें
स्वर्ण किरणों ने
प्यार उड़ेला
तब नन्हे-नन्हे अँकुर
फ़ूटे
" आशा " और " स्वर्ण - किरण " स्त्री -वाचक शब्द हैं नन्हे-नन्हे अँकुर फूटने के पीछे आशाओं के पानी और स्वर्ण किरणों के प्यार की अनिवार्यता , नव - सृजन के लिए स्त्री की अनिवार्यता और असंदिग्ध महत्त्व को रेखांकित करती है .
कविता का अगला हिस्सा सृजन के पश्चात की संतुष्टि और प्रतितोष को व्याख्यायित करते हुए नव - सृजन से की जाने वाली अपेक्षाओं और उसके औचित्य की भुमिका लिखता है -
मीठा-मीठा कोमल मखमली
कोपल के जैसा
अहसास हृदय में जागा
विश्वास ने जड़े फ़ैलाई
सुन्दर मधुर संगीत
लिये
फ़ैलाती बाहें पुरवाई
मन में सोये तार बजे
सपनों ने ली अंगड़ाई
इस हिस्से में " मानवीकरण " अलंकार अपने व्यापक रूप में है . सुन्दर मधुर संगीत लिये/ फ़ैलाती बाहें पुरवाई में " प्रकृति का मानवीकरण " और सपनों ने ली अंगड़ाई में "अमूर्त का मानवीकरण " दृष्टव्य है .
कविता का अन्तिम हिस्सा जीवन्तता और जिजीविषा के साथ आशावादी दृष्टिकोण का पोषण करता है -
सोई हूक जगाने वाला
स्वर्णिम पल है आने वाला
सपने जब होंगे पूरे
सुन्दर-सुन्दर
रंग-बिरंगे
आँगन में खूब खिलेंगे
भाव घनेरे
सूने मन में बातें होंगी
चिडियों सी चहचहाहट होगी
रंग-बिरंगी तितली के जैसी
खूशबू होगी
छूकर मुझको यहाँ-वहाँ
फ़ैलेगी वो
जाने कहाँ-कहाँ...
ऐसी ही दुनिया की कल्पना सदियों से की जा रही है और सभी अपने - अपने स्तर पर इसे रचते जा रहे हैं . इसकी अन्तिम पंक्तियाँ भारतीय दर्शन और अध्यात्म के मूलभूत तत्व को पूरी सादगी के साथ व्यक्त कर गई हैं .
समेकित रूप में पूरी कविता में रूपक , मानवीकरण और दृष्टांत अलंकारों के साथ "स्थूल के विरुद्ध सूक्ष्म के निर्वैदिक विद्रोह " की छायावादी पृवृत्ति और "बाह्य से आभ्यांतर की अनंत यात्रा " का रहस्यवादी प्रतिदर्श पूरी ऊर्जा और ईमानदारी के साथ फलीभूत हुए हैं .
अब ये तो तय है कि इतनी महत्वपूर्ण और सशक्त कविता को " मंज़र - ऐ - आम " तक लाने के लिए आपको सिर्फ़ बधाई दिया जाना काफी नहीं है - !!!!!!!! !
सादर -
आनंदकृष्ण , जबलपुर
मोबाइल : 09425800818
visit: www.hindi-nikash.blogspot.com
atyant komal aur atyanta ashavaadi rachana.....!
ReplyDeleteसुन्दर । कया लिखूँ मैं तो लिखना ही भूल गया हूँ।
ReplyDelete.............
ReplyDeleteसुन्दर । कया लिखूँ मैं तो लिखना ही भूल गया हूँ।
God Bless You ! Take Care
बहुत बढ़िया, भई, संवेदनशील
ReplyDelete---
चाँद, बादल, और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
गुलाबी कोंपलें
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अंकुर से परवाज़ का सफर, खूब्सूरत अंदाज़ में संजोया है
ReplyDeleteसुंदर कविता