मिला हमें जब नेह निमंत्रण,
जा पहुँचे हम दिल्ली हॉट,
टिकिट कटा भागे भीतर को,
जहाँ सब देख रहे थे बाट।
सबने बोला हल्लो हाय
हाथ मिले और गले लगाय,
बैठा अपने पास हमें फ़िर
शुरू किया अगला अध्याय।
जान-पहचान हुई सबकी
नये पुराने सब फ़रमायें
कौन लगा किसको कैसा
बिना डरे सच-सच बतलायें।
प्रेम ही सत्य है प्रेम करो
मीनाक्षी जी ने समझाया
उठो नारी के सम्मान में सब
सुजाता जी ने फ़रमाया।
रन्जू जी कविता के जैसे
महक रही थी महफ़िल में
अनुराधा भी दिखा रही थी
रंग-बिरंगे जीवन के सपने।
मनविन्दर जी आई मेरठ से
सबका स्नेह बतायें
चेहरे से था रोब झलकता
भीतर-भीतर मुस्कायें।
रचना जी ने कहा सभी से
अब सक्रिय हो जायें
योगदान दें सभी लेखन में
अपना फ़र्ज निभायें।
काव्य की गंगा में बही जब
सुजाता जी की मीठी बोली
छेड़ा तार मीनाक्षी जी ने
गीतों में मिश्री सी घोली।
रन्जू जी की प्यारी कविता
सुनकर रचना जी भी जागी
सपने तो सपने होते है
झट पुरानी कविता दागी।
छेड़ हृदय की सरगम तब
मन पखेरू फ़िर उड़ चला
हुई सभा सम्पन्न और ये
सौहार्द मिलन लगा बहुत भला।
आधी मीटिंग ही कर पाये थे
सो चर्चा रही अधूरी हमारी
सतरंगी चर्चा के बाद शायद हो
पचरंगी खट्टी-मीठी अचारी।
सुनीता शानू
जा पहुँचे हम दिल्ली हॉट,
टिकिट कटा भागे भीतर को,
जहाँ सब देख रहे थे बाट।
सबने बोला हल्लो हाय
हाथ मिले और गले लगाय,
बैठा अपने पास हमें फ़िर
शुरू किया अगला अध्याय।
जान-पहचान हुई सबकी
नये पुराने सब फ़रमायें
कौन लगा किसको कैसा
बिना डरे सच-सच बतलायें।
प्रेम ही सत्य है प्रेम करो
मीनाक्षी जी ने समझाया
उठो नारी के सम्मान में सब
सुजाता जी ने फ़रमाया।
रन्जू जी कविता के जैसे
महक रही थी महफ़िल में
अनुराधा भी दिखा रही थी
रंग-बिरंगे जीवन के सपने।
मनविन्दर जी आई मेरठ से
सबका स्नेह बतायें
चेहरे से था रोब झलकता
भीतर-भीतर मुस्कायें।
रचना जी ने कहा सभी से
अब सक्रिय हो जायें
योगदान दें सभी लेखन में
अपना फ़र्ज निभायें।
काव्य की गंगा में बही जब
सुजाता जी की मीठी बोली
छेड़ा तार मीनाक्षी जी ने
गीतों में मिश्री सी घोली।
रन्जू जी की प्यारी कविता
सुनकर रचना जी भी जागी
सपने तो सपने होते है
झट पुरानी कविता दागी।
छेड़ हृदय की सरगम तब
मन पखेरू फ़िर उड़ चला
हुई सभा सम्पन्न और ये
सौहार्द मिलन लगा बहुत भला।
आधी मीटिंग ही कर पाये थे
सो चर्चा रही अधूरी हमारी
सतरंगी चर्चा के बाद शायद हो
पचरंगी खट्टी-मीठी अचारी।
सुनीता शानू
छेड़ हृदय की सरगम तब
ReplyDeleteमन पखेरू फ़िर उड़ चला
हुई सभा सम्पन्न और ये
सौहार्द मिलन लगा बहुत भला।
bahut sunder prastoti
kabhi hamra blog visit kijiye
regards
अन्दाजे बयाँ तो गजब का है । मजा आ गया ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आपके साथ हम भी शामिल हो गये महफिल में... धन्यवाद
ReplyDeleteहम से मिल कर आप को जो खुशी हुई
ReplyDeleteआपने शब्दों मे बयाँ की
आप से मिल कर हमे जो खुशी हुई
शब्द ही नहीं हैं कैसे बयां करे
aare wah ek kavita roop mein sab ka khubsurat parichay hua hai,bahut hi sundar andaaz.
ReplyDeleteमिलन की यह कविता हम सबको बहुत है भायी
ReplyDeleteआप सबसे हुई यह मुलाक़ात दिल पर रहेगी छाई :)
अनुभव को अच्छी अभिव्यक्ति दी है। बहुत खूब।
ReplyDeleteरपट लिखने की यह शैली है नई!
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteये काव्यत्मक रपट भी सही रही. बधाई.
ReplyDelete"आधी मीटिंग ही कर पाये थे
ReplyDeleteसो चर्चा रही अधूरी हमारी"
आधी चर्चा इतनी गजब की रही तो पूरी चर्चा के क्या कहने होंगे!!
गिटर पिटर की बेहद खूबसूरत लयमय व्याख्या ...बहुत खूब
ReplyDeleteवाह क्या बात है !
ReplyDeleteमनोयोग से लिकी स्नेहपूर्ण कविता
बहुत पसँद आई नेह निमँत्रण के आयोजन होते रहेँ
और उससे जुडी बातेँ सुनाते रहीये -
- लावण्या
कविता जानदार है सुनीता जी !
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleterang rang ke phool khile hain..
ReplyDeleteati sundar...
उस मीटिंग मे क्या हुआ, बिना गये ही पता चल गया. आशा है आगे भी आप हमे मीटिंग मे हुई चर्चाओं से अवगत करवाती रहेंगी. आपका तालमय व्याख्यान काफ़ी पसंद आया.
ReplyDeleteवाह वाह.
ReplyDeleteहाट मिलन की चाट रूपी कविता पढ कर स्वाद आ गय :)