-हर रोज-
-दिन निकलने के साथ-
-मेरे पास होते हैं कई सवाल-
-तुम्हारे लिये-
-खोज-खोज कर-
-सहेज लेती हूँ उन्हे-
-कि तुम्हारे कुछ कहने से पहले ही-
-पूछूंगी तुमसे-
-उन सवालों के जवाब-
-परंतु मेरे कुछ कहने से पहले ही-
-तुम समझ जाते हो-
-मेरी हर बात-
-और बिन कहे ही-
-रख देते हो जवाबों का पुलिंदा-
-मेरे हाथों में और-
-तुम्हारी मीठी-मीठी-
-बातों का जादू-
-समेट देता है मुझे-
-मेरे शब्दो के साथ-
-चिपक जाती है जीभ तालू में-
-और सोचती हूँ-
-आखिर झगडा़ किस बात पर हो-
-कि तुम मुझे मनाओ-
-और मै रूठ पाऊँ...
सुनीता शानू
आपने बेहतरीन कविता लिखी है सानू।
ReplyDeletebahut hi achhi kavita .
ReplyDeleteMere kuchh kahne se pahle hi samjh jate ho meri har baat, bahut achhi panktiyan hain, poori kavita uttam hai. Sunitaji badhai swikar karen.
ReplyDeleteबहुत खुब...
ReplyDeleteरंजन
aadityaranjan.blogspot.com
वाह भई क्या बात है? सुनीता जी इस रचना के लिए बधाई ।आपने बहुत अच्छी तरह से अभिव्यक्ति को प्रस्तुत किया है।धन्यवाद
ReplyDeleteaapko pahale bhi paDha hai, achchha likhti hain!
ReplyDeleteहमेशा की तरह से एक सुन्दर कविता,
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत उम्दा, क्या बात है!
ReplyDeleteवाह सुनीता जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।
सृजनशीलता कायम रहे ।
ReplyDelete-आखिर झगडा़ किस बात पर हो-
ReplyDelete-कि तुम मुझे मनाओ-
-और मै रूठ पाऊँ...
यहाँ पर कविता अपने चरम पर लगी
अच्छी कविता
बेहतरीन
वीनस केसरी
Aap abhi kaisi hain? Tabiyat kaisi hai..?
ReplyDeleteyeh kavita ..bhavon ki itnai saralta ke sath..utkrishtata ka namuna hi nahi hai.. sochane ko mazboor karti hai...
ek gaana yaad aata hai.. tum roothi raho mai manata rahun...
jhagada karne ke to bahut se karan hote hain.. kisi bhi bat par jhagad lo...
जब आपको सब सवालों के जबाब बिना मांगे ही मिल गये तो आप रूठना क्यों चाहती हैं उनसे? ये बात समझ मे नही आई.
ReplyDeleteaapne bahut pyara likha hai mmmmmmmmmmooooooooooosssssssssssssssiiiiiiiiiiiiiiiiiii
ReplyDeleteअनकहे शब्दो मे बहुत कुछ कह गयी आप
ReplyDeletewww.qatraqatra.yatishjain.com
सादर ब्लॉगस्ते!
ReplyDeleteकृपया निमंत्रण स्वीकारें व अपुन के ब्लॉग सुमित के तडके (गद्य) पर पधारें। "एक पत्र आतंकवादियों के नाम" आपकी अमूल्य टिप्पणी हेतु प्रतीक्षारत है।
मैंने आपकी पाँचों रचनाएं पढी इनमे सबसे ज़्यादा मन पखेरू वाली लगी /परन्तु इसके बाद कोई रचना प्रस्तुत नहीं की /अच्छी रचनाओं का बैसे ही तोबहुत आभाव है और अच्छे साहित्यकार एकदो रचनाये लिख कर बंद कर देते है और पाठक बेचारे सत्साहित्य से बंचित रह जाते है
ReplyDeleteबेहतरीन कविता .बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteहिन्दी - इन्टरनेट की तरफ से दीपावली व नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeletemeri bhi shubhkamnayen
ReplyDeleteऐसा लगता है कि आपका ब्लाग जगत से मोहभंग जैसा कुछ हो गया है तभी तो कोई पोस्ट नहीं कुछ नहीं ।
ReplyDeletenice written.....
ReplyDeleteespecially
"aakhir kis baat par jhagda ho...
ki tum mujhe manao"...
congratulations..