भंग की तरंग
ढोलक और मॄदंग
होली के रंग
नाचे संग-संग .....
फ़ागुन के दोहे
डाल-डाल टेसू खिले,आया है मधुमास,
मै हूँ बैठी राह में,पिया मिलन की आस।
हो रे पिया मिलन की आस
फ़ागुन आया झूम के ऋतु वसन्त के साथ
तन-मन हर्षित हों रहे,मोदक दोनो हाथ
हो रे मोदक दोनो हाथ
मधुकर लेके आ गया, होठों से मकरंद
गाल गुलाबी हो गये, हो गई पलकें बंद।
हो रे हो गई पलकें बंद
पिघले सोने सा हुआ,दोपहरी का रंग
और सुहागे सा बना,नूतन प्रणय प्रसंग
हो रे नूतन प्रणय प्रसंग
अंग-अंग में उठ रही मीठी-मीठी आस
टूटेगा अब आज तो तन-मन का उपवास
हो रे तन-मन का उपवास
इन्द्र धनुष के रंग में रंगी पिया मै आज
संग तुम्हारे नाचती , हो बेसुध बे साज
हो रे हो बेसुध बे साज
तितली जैसी मैं उड़ू चढ़ा फ़ाग का रंग
गत आगत विस्मृत हुई,चढी नेह की भंग
हो रे चढ़ी नेह की भंग
रंग अबीर गुलाल से,धरती भई सतरंग
भीगी चुनरी रंग में,हो गई अंगिया तंग
हो रे हो गई अंगिया तंग
गली-गली रंगत भरी,कली-कली सुकुमार
छली-छली सी रह गई,भली भली सी नार
हो रे भली-भली सी नार
सुनीता शानू
बहुत खूब दीदी,
ReplyDeleteहोली की बधाई
सही है। होली मुबारक।
ReplyDeleteवाह... आपको और आपके पूरे परिवार को होली की ढेरों शुभकामनाएं
ReplyDeleteवाह भई! बहुत सुंदर दोहे हैं. मजा आ गया.
ReplyDeleteहोली की अनेकानेक शुभकामनायें!
- अजय यादव
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रंग अबीर गुलाल से,धरती भई सतरंग
ReplyDeleteभीगी चुनरी रंग में,हो गई अंगिया तंग
हो रे हो गई अंगिया तंग
bahut sundar,har rang samaya hai kavita mein,holi mubarak ho.
होली की शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुनीता जी
ReplyDeleteआपको होली की बहुत बहुत बधाई, हमारी कामना है कि आप इसी तरह अपने शब्दों के रंग भरते हुए अपनी रचनाएं लिखतीं रहें और हम उन्हें पढ़कर आनंद उठाते रहें.
सुनीता जी,आपको भी होली की बहुत-बहुत बधाई.
ReplyDeleteशुक्र हॆ,हमारा ’कवि-सप्लाई केन्द्र’देख्नने’नया घर’तो आई.
होली पर आज के संदर्भ में,एक दोहा कहीं मॆंने पढा था-आप भी पढिये-
"लॆन्डलाईन पत्नी हुई,घीसी-पीटी सी टोन
होली में साली लगे,ज्यों मोबाईल फोन".
आप को होली की बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteसुनीता जी आप कॊ ओर आप के परिवार कॊ होली की बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteसुंदर!!
ReplyDeleteआपको भी होली की बधाई व शुभकामनाएं
sundar dohe
ReplyDeleteबहुत सुंदर। होली की बधाई
ReplyDeleteAre wah bahut khoobsurat likhe hai.. dohe aap ne.. kamaal kar diya..
ReplyDeletedohe dekhe aapke .. bahut khoob.. lazwaab... dil se mubarakbaad deta hun kabool pharmaayen..
dohe aur gazal me adhik phark nahi hai.. matlab aap ne gazal ek tarah se sikh li..
kavi kulwant
"तितली जैसी मैं उड़ू चढ़ा फ़ाग का रंग
ReplyDeleteगत आगत विस्मृत हुई,चढी नेह की भंग
हो रे चढ़ी नेह की भंग"
दोहे का बासंती उमंग सराबोर कर गया ...
श्रृंगार आपकी कविताओं मुख्य स्वर है -होली की बधाई!
ReplyDeleteसुंदर .
ReplyDeleteइनकी चोरी की निंदा करते हैं.