चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Sunday, October 14, 2007

ऎ जिन्दगी

ऎ जिन्दगी तुझको अब मैने पुकारा नहीं
सारे जहाँ में तुझको कोई भी प्यारा नहीं

खो गई हूँ खुदी में,जब मिली खुद से मै
लेकिन लबो पर नाम भी अब तुम्हारा नहीं

छोड़ दे तनहा मुझको अब ना तड़पा मुझे
ऎसा नहीं कि तुझ बिन अब मेरा गुजारा नहीं

तेरी बेवफ़ाई कि तुझको, मै दूँ क्या खबर
मेरे दिल का एक टुकड़ा भी अब तुम्हारा नहीं

मेरी पलकों पे ठहरे अश्क न बहेंगे कभी
वेवजह मिट्टी मे मिलना इनको गवाँरा नहीं

मेरी खामोशियों को न बहला चली जा अभी
मेरी यादों का एक लम्हा भी अब तुम्हारा नहीं

जिन्दगी ख्वाब है ख्वाब बन मिली थी कभी
मेरी पलको को ख्वाबों का भी अब सहारा नहीं

तेरी चाहत नही,तुझसे कोई तमन्ना भी नहीं
तेरे गुलशन का कोई फ़ूल भी अब बेसहारा नहीं...

सुनीता(शानू)

19 comments:

  1. सुन्दर कविता ! किन्तु वास्तविक जीवन में क्या यह संभव है ? किसी को जीवन से यूँ काटकर अलग तो नहीं किया जा सकता चाहे वह या उसके साथ के अनुभव कितने ही कटु हों ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  2. अगर अपने ब्लोग पर " कापी राइट सुरक्षित " लिखेगे तो आप उन ब्लोग लिखने वालो को आगाह करेगे जो केवल शोकिया या अज्ञानता से कापी कर रहें हैं ।

    ReplyDelete
  3. सुनीता जी, मुझे भी पता है कि यह केवल कविता है । मैं केवल जीवन के एक दर्शन की बात कर रही थी, यह कि कोई भी ऐसे सुखद या दुखद अनुभवों से पल्ला नहीं झाड़ पाता ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  4. छोड़ दे तनहा मुझको अब ना तड़पा मुझे
    ऐसा नहीं कि तुझ बिन अब मेरा गुजारा नहीं

    --बहुत उम्दा. बधाई.

    बाजू में तस्वीरें कवि सम्मेलन से बहुत बढ़िया लग रही हैं.

    ReplyDelete
  5. wah khuda kare zore kalam aur zyada

    ReplyDelete
  6. सुन्दर कविता,ऐसे ही लिखते रहिय्रे।

    ReplyDelete
  7. वाह बहुत सुन्‍दर कविता है। पर आपके जिन्‍दादिल विचारों एवं ख्‍वाबों से मेल नहीं खाती । हॉं कवि सम्‍मेंलनों की तस्‍वीरें अच्‍छी लगी। आज ब्‍लॉंग का रूप निखरा निखरा लगा।

    ReplyDelete
  8. आप तो दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही है..लिखने में.. मेरी शुभकमनाएं स्वीकारिये..कवि कुलवंत

    ReplyDelete
  9. अहा । दर्द नें शव्‍दों का रूप धर लिया हैं, कविता की हर पंक्ति में आंसू झलक रहे हैं, आपने दिल से लिखा है, बेहतर भावप्रधान कविता के लिए धन्‍यवाद कविता में आपका असीम प्रेम शव्‍द शब्‍द में झलक रहा है, बेरूखी का दर्द भी छलक पडा है । बधाई स्‍वीकारें, एक और बेहतर रचना ।

    ReplyDelete
  10. apane prashan kaa utaar annam tippani kae sandarbh mae naii pst ke ruup mae deakhe

    ReplyDelete
  11. बहुत बढ़िया. कुछ शेर विशेष रूप से बहुत ही बढ़िया हैं. इस रचना का एक न एक शेर / भाव हर शख्स को किसी न किसी रूप से छू लेगा. पढ़ कर अच्छा लगा. बधाई.

    मीत

    ReplyDelete
  12. मेरी पलकों पे ठहरे अश्क न बहेंगे कभी
    वेवजह मिट्टी मे मिलना इनको गवाँरा नहीं
    जितने सुंदर विचार उतनी सुंदर रचना. बहुत खूब.

    ReplyDelete
  13. छोड़ दे तनहा मुझको अब ना तड़पा मुझे
    ऎसा नहीं कि तुझ बिन अब मेरा गुजारा नहीं


    ग़ज़ल का ये शेर बेहद पसंद आया. काफ़ी व्यवस्थित बंद रचे हैं.

    ReplyDelete
  14. कवि सम्मेलन की तस्वीरें बाज़ू में वाह वाह.. पूरा एलबम बनाइए. किंतु ये कैसे पता चलेगा कि किस आयोजन की तस्वीरें हैं और कब की.. लिहाज़ा कैप्शन तो होना ही चाहिए ना.

    ReplyDelete
  15. आपके प्रोफ़ाइल पर और भी ब्लाग हैं क्या आप के हैं सारे ब्लाग? इतना समय कैसि मिल जाता है.. इतने ब्लाग्स के लिए..?
    सुनीता जी..आप ने शून्य से अवतरित हो कर
    मेरी शून्यता (कविता) को अपने बहुमूल्य शब्दों से भरकर..उस शून्य को सार्थकता प्रदान की.. बहुत बहुत धन्यवाद...

    ReplyDelete
  16. बहुत ही बढ़िया कविता, मजा दुगुना हो जाता जब आप इसे अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर हमें सुनवाती।

    ReplyDelete
  17. मेरी पलकों पे ठहरे अश्क न बहेंगे कभी
    वेवजह मिट्टी मे मिलना इनको गवाँरा नहीं

    ye aadhunik yug ke yathaarthwaadi aur apne mahatw ko pahchaanne waale kee hee abhivyakti ho saktee hai. ghazal kee paramparik maansaltaa se baahar aakar use saty kaa maarg dikhaane wale sambodhak kaa roop dene men aap kaamyaab hui hain.

    anandkrishan, jabalpur
    phone- 09425800818

    ReplyDelete

स्वागत है आपका...

अंतिम सत्य